जब हमारे माता-पिता को हमारी ज़रूरत हो, हमें उनके साथ होना चाहिए…

निकेश जैन, इंदौर, मध्य प्रदेश से

मैं सिर्फ़ एक ही कारण से अमेरिका से भारत लौटा। वह कारण थे, मेरे माता-पिता। अमेरिका अच्छा देश है। वहाँ आपको तरक़्क़ी के मौक़े ख़ूब मिलते हैं। सीखने और सूकून से ज़िन्दगी बिताने के भी भरपूर अवसर हैं। इन सब चीज़ों को एक झटके में छोड़ देना, किसी के लिए भी आसान नहीं। 

लेकिन मेरे मामले में मेरी प्राथमिकताएँ बहुत स्पष्ट रहीं हैं। हमेशा से। और इन प्राथमिकताओं में मेरे माता-पिता सबसे ऊपर रहे। मैं हमेशा से ही उनके नज़दीक रहना चाहता था। मैं यह भी जानता था कि अगर मेरे बच्चों ने एक निश्चित उम्र तक ‘बाहरी माहौल’ में वक़्त बिता लिया, तो फिर वापस लौटना मेरे लिए बहुत मुश्किल होगा। इसीलिए जब वे छोटे थे, तभी मैंने वापसी का फ़ैसला कर लिया। लौट भी आया। 

मैं अमेरिका से भारत आकर बेंगलुरू में रहने लगा। हालाँकि मेरे माता-पिता इन्दौर में ही रहे। लेकिन हम लगातार उनसे एक निश्चित समय अन्तराल पर मिलते रहते थे। बीते 8-10 सालों में उनसे मिलने का अन्तराल लगातार छोटा होता गया। लगभग हर महीने हम अपने माता-पिता से मिलने लगे। और बीते तीन साल से, जब से मैंने अपनी कम्पनी (एड्यूरिगो टेक्नोलॉजी, जिसमें मुझे कहीं से भी काम करने की सुविधा है) शुरू की, मैं अपना 50 फ़ीसद से ज़्यादा वक़्त माता-पिता के साथ इन्दौर में ही बिता रहा हूँ। 

अभी हाल ही में, लगातार दो दिन इन्दौर में अच्छी बारिश हुई। तो मैं माता-पिता को यशवन्त सागर बाँध घुमाने ले गया। बहुत अच्छा सफ़र और वक़्त बीता। दरअस्ल, मेरा मानना है कि जब हमें हमारे माता-पिता की ज़रूरत थी, तब वे हमेशा हमारे साथ खड़े थे। सो, जब उन्हें हमारी ज़रूरत हो, हमें उनके साथ होना चाहिए, ये हमारा फ़र्ज़ है। 
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निकेश का मूल लेख नीचे अंग्रेजी में है :     

The only reason for me to return back from US to India was them – my parents….

America is a great country. It offers you growth, learning and luxury and leaving all that is not easy.

But in my case, I had my priorities very clear and staying close to my parents was on top of that.

I also knew if my kids grew above a certain age then going back would be difficult so relocated back at an appropriate time when kids were young.

I moved to Bangalore and my parents were at Indore but still we would see each other more often. In last 8-10 years that frequency has increased and became almost once in a month.

And in last 3 years (since I started Edurigo which allows me to work from anywhere), I am spending 50% of my time with my parents.

Recently, went on a nice drive to Yeshwant Sagar Dam with them after 2 days of continuous rains in the area.

Our parents were there when we needed them and it’s our duty to be there when they need us – that’s my belief… 
——– 
(निकेश जैन, शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनी- एड्यूरिगो टेक्नोलॉजी के सह-संस्थापक हैं। उनकी अनुमति से उनका यह लेख #अपनीडिजिटलडायरी पर लिया गया है। मूल रूप से अंग्रेजी में उन्होंने यह लेख लिंक्डइन पर लिखा है।) 
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निकेश जैन के पिछले लेख 

6- सरकार रोकने का बन्दोबस्त कर रही है, मगर पढ़ने को विदेश जाने वाले बच्चे रुकेंगे क्या?
5. स्वास्थ्य सेवाओं के मामले हमारा देश सच में, अमेरिका से बेहतर ही है
4. शिक्षा, आगे चलकर मेरे जीवन में किस तरह काम आने वाली है?
3. निजी क्षेत्र में काम करने वाले लोग बड़ी संख्या में नौकरियाँ क्यों छोड़ रहे हैं?
2. लक्ष्य पाने के लिए लगातार चलना ज़रूरी है, छलना नहीं
1. संस्कृति को किसी कानून की ज़रूरत कहाँ होती है?

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