Hanuman ji

हनुमान जयन्ती या जन्मोत्सव? आख़िर सही क्या है?

नीलेश द्विवेदी, भोपाल मध्य प्रदेश

आज चैत्र शुक्ल पूर्णिमा, शनिवार, 12 अप्रैल को श्रीरामभक्त हनुमानजी का जन्मोत्सव मनाया गया। इस दौरान बहुत से लोगों ने आपस में एक-दूसरे बधाईयाँ, शुभकामनाएँ देते हुए इस दिवस को हनुमान जयन्ती लिखा। जबकि जागरूक व समझदार क़िस्म के लोगों ने इस अवसर को हनुमान जन्मोत्सव बताकर शुभेच्छाएँ दीं और लीं। तो यहाँ कुछ जिज्ञासुओं के लिए यह सवाल हो सकता है कि आख़िर ये जयन्ती और जन्मोत्सव का मामला क्या है? दोनों एक हैं या इनका अलग अर्थ हो सकता है? लिहाज़ा, सांस्कृतिक जागरुकता के लिए इन सवालों का उत्तर ज़रूरी है। 

और इन सवालों का सीधा उत्तर यह है कि जयन्ती तथा जन्मोत्सव में बहुत बारीक़ अन्तर है। अलबत्ता, दोनों ही शब्द किसी के जन्म दिवस को इंगित ज़रूर करते हैं। जैसा जानकार बताते हैं- जयन्ती उन लोगों की मनाई जाती है, जो धरती पर सदेह उपस्थित नहीं हैं। अर्थात् जीवनचक्र से मुक्त हो चुके हैं। जबकि, जन्मोत्सव उनका मनाया जाता है, जो अपने ‘शरीर’ के साथ धरा पर, हमारे बीच मौज़ूद हैं। तो इस परिभाषा हिसाब से हर साल चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को हनुमान जी की जन्मतिथि पर मनाया जाने वाला उत्सव उनका जन्मोत्सव हुआ न कि जयन्ती।

हालाँकि, यहाँ फिर एक सवाल हो सकता है कि क्या हनुमान जी अब भी अपने ‘शरीर’ के साथ इस धरती पर मौज़ूद हैं? और अगर हाँ, तो यह सम्भव कैसे है? ख़ास तौर पर तब, जबकि वह कलि युग, द्वापर युग से भी बहुत-बहुत पहले श्रीराम के साथ त्रेता युग में हुआ करते थे? इतने हजारों-हजार वर्षों तक किसी के शरीर में जीवन कैसे सम्भव है? तो, इन प्रश्नों के उत्तर के लिए पहले एक श्लोक पर नज़र डाली जा सकती है। श्लोक नीचे दिया गया है :  

“अश्वत्थामा बलि:व्यासो हनूमांश्च विभीषणः।
कृप: परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविनः॥
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।
जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जितः॥” 

अर्थात् : अश्वत्थामा (गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र), राजा बलि (जिन्होंने वामन भगवान को तीन पग पृथ्वी दान की थी), महर्षि वेदव्यास जी (वेदों के रचयिता), हनुमान जी, विभीषण, कृपाचार्य (अश्वत्थामा के मामा), परशुराम जी और मार्कण्डेय ऋषि ये आठ लोग भारतीय सनातन परम्परा में चिरजीवी माने जाते हैं। इनका नित्य ध्यान करने वाला भी जीवन में रोग आदि से मुक्त रहते हुए 100 वर्ष की आयु पाता है। 

अलबत्ता एक सवाल फिर आ जाता है कि आख़िर निश्चित समयावधि में नष्ट होने वाले शरीर वाला कोई प्राणी चिरजीवी कैसे हो सकता है? तो इस प्रश्न का ज़वाब यह है कि प्राणियों का जो शरीर दिखता है, वही नष्ट होता है। लेकिन दिखने वाला ही कोई इक़लौता शरीर नहीं होता, यह बात हमारे शास्त्रों में वर्णित है।

दरअस्ल, पूरी सृष्टि में हर प्राणी (सब जिसमें प्राण हैं, जीवन है, वह) के तीन शरीर होते हैं। एक- स्थूल शरीर, यानि वह जो हम सबको आँखों से दिखता है। दूसरा- सूक्ष्म शरीर, मतलब पंच तत्त्वों का संगठित आकार जो स्थूल शरीर के भीतर रहता है। पारलौकिक घटनाओं (पैरानॉर्मल इन्सीडेन्ट्स) वाली फिल्मों, धारावाहिकों में अक़्सर एक साया हवा में झूलता हुआ सा दिखाया जाता है न? वही हर स्थूल शरीर में रहने वाला सूक्ष्म शरीर है। 

सूक्ष्म शरीर का मसला एक उदाहरण से और समझिए। मानवी माँ के गर्भ में जब बच्चा आकार लेना शुरू करता है, तो वह पहले 10 हफ़्तों तक महज़ माँस का ढेर होता है। लेकिन यह अवधि बीतते ही अचानक किसी एक दिन उस माँस के ढेर में साँस चलने लगती है। कैसे? वास्तव में तब सूक्ष्म शरीर का उसमें प्रवेश होता है, इसीलिए। तो यह हुई दो शरीरों की बात। इसके बाद अब तीसरा। वह है- कारण शरीर। सृष्टि के सभी प्राणी वास्तव में जिन पंच तत्त्वों- पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु और आकाश से मिलकर बने हैं, उन्हें ही ‘कारण शरीर’ कहते हैं।

किसी प्राणी की उम्र पूरी होने पर स्थूल शरीर नष्ट होता है, तो उसे मृत्यु कहते हैं। अन्तिम संस्कार के बाद सूक्ष्म शरीर निकलकर एक निश्चित समयावधि तक अन्तरिक्ष में रहता है। वहाँ वह अवधि बीत जाने पर सूक्ष्म शरीर वहीं छिन्न-भिन्न होता है और पाँच के पाँचों तत्त्व अपने ‘कारण’ में जाकर मिल जाते हैं। इसे मुक्ति कहते हैं। पारलौकिक घटनाओं वाली फिल्मों, धारावाहिकों, आदि में सबने सूक्ष्म शरीर को छिन्न-भिन्न होते देखा होगा।

साथ में यह भी देखा होगा कि जब तक किसी का सूक्ष्म शरीर अपने किसी भाव या भावना (अच्छे या बुरे दोनों) से बँधा रहता है, वह छिन्न-भिन्न नहीं होता, अपने ‘कारण’ में जाकर नहीं मिलता। बन्धन की यही अवधारणा अष्ट-चिरंजीवियों पर भी लागू है, जिनमें से एक हनुमानजी हैं। हनुमानजी ने भगवान श्रीराम को दिए वचन से बँधे हैं।

ऐसे ही, अश्वत्थामा भगवान श्रीकृष्ण से मिले श्राप से बँधा है। राजा बलि, वेद व्यास जी, परशुरामजी, विभीषण, कृपाचार्य, और मार्कण्डेय ऋषि भी इसी तरह वचन, वरदान आदि से बँधे हुए हैं। इसीलिए अपने सूक्ष्म शरीरोंं ये सब आज भी हमारे बीच हैं। जब तक ये वचन, वरदान या श्राप के बन्धन से छूटेंगे नहीं, तब तक ऐसे ही रहेंगे।

इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर हनुमानजी की जन्मतिथि पर जयन्ती समारोह नहीं, जन्मोत्सव मनाते हैं। श्रीहनुमान जन्मोत्सव की बहुत-बहुत बधाई। 

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