Mahavir

जैन धर्म, जिसने भारतीय सनातन का विशिष्ट अंग होकर सार्थकता बनाए रखी

अनुज राज पाठक, दिल्ली से, 17/5/2022

एक सुदर्शन युवा अपना समस्त वैभव, सुख, सुविधाएँ त्याग कर निकल पड़ता है। एक ऐसी खोज में जो सदियों से महान लोग करते आ रहे थे। संसार को बदलने वाले मनीषियों की परम्परा को आगे बढ़ाते हुए युवा ‘जिन’ हो जाता है। आम जन के बीच जिन की परम्परा और मत जैन नाम से प्रसिद्ध हो जाता है। जिन के मत को मानने वाला जैन। जिन महावीर स्वामी के नाम से जगत में सूर्य की भाँति अपना प्रकाश फैलाते हैं। अपने वैभव को त्यागने वाले वे महावीर अपने उपदेशों में त्याग को जीवन में स्थान देने का महत्त्व समझाते हैं। क्योंकि त्याग करने से व्यक्ति के मन का अंहकार दूर होता है।

जैन स्वामी महावीर के मुख्य सिद्धान्तों में अहिंसा सबसे प्रबल है। अहिंसा बिना इन्द्रियों के संयम से सम्भव नहीं। इसी को ध्यान में रखकर जैन दार्शनिक कहते हैं कि तीन रत्नों सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान, सम्यक् चरित्र को धारण करने वाला व्यक्ति ही मोक्ष को प्राप्त करने का अधिकारी बनता है। ज्ञान और श्रद्धा वाला व्यक्ति अगर चरित्रवान हो तभी उसका कल्याण होगा, और मोक्ष का अधिकारी बन जाएगा। त्रिरत्नों का अपनाना जिन को आत्मविश्वास से भर देता है। सम्भवत: इसी कारण जिन निरीश्वरवादी भी हो उठते हैं। या फिर उपनिषदों के ऋषिवाक्य ‘अहंब्रह्मास्मि’ से प्रभावित होकर एक कदम आगे बढ़ते हुए ईश्वर के अस्तित्व पर ही प्रश्न चिह्न लगा देते हैं। वैसे, यह भी सच है जब व्यक्ति मानवीय हो उठेगा, तब स्वयं वह भगवत्ता को धारण कर लेगा। उसका अहम्, उसका वहम् दोनों मिट जाएगा। आत्म साक्षात्कार उसे ईश्वर से अभिन्न ही सिद्ध कर देगा।

इसी आत्म साक्षात्कार के कारण ही जैन आचार्य किसी अन्य के मत को भी महत्त्व देने में सफल हुए। उनके अहम (मैं) भाव नष्ट होकर वयम (हम) के भाव में परिणत हो स्यातवाद के रूप में हमें दिखाई देता है। जैन आचार्य आत्मशुद्धि पर बल देते हैं। जिन ने जीवन जीने के लिए एक समन्वित जीवन शैली का मंत्र दिया। आज हम सामंजस्य और सह-अस्तित्व पूर्ण विश्व की चर्चा करते हैं। उस सह-अस्तित्त्व का जीवन्त प्रयोग महावीर स्वामी ने भारतीय भूमि पर कई वर्ष पूर्व प्रारम्भ किया था। वह निश्चित रूप से सार्थक और सफल प्रयोग था, जो आज भी जीवन्त है।

भारत में उद्भूत अनेक मत-मतान्तर काल के गाल में समा गए। या फिर भारतीय सनातन से विरोध करते-करते अपने उद्देश्यों से भटक गए। वहीं जैन धर्म भारतीय सनातन का विशिष्ट अंग होकर अपनी सार्थकता और जीवन्तता को आज भी बनाए हुए है। हम पाते हैं कि कहीं न कहीं जैन सिद्धान्त व्यावहारिक भी हैं। इसीलिए जिन इन्हें ही अपनाने का आदेश देते हैं। और इन सिद्धान्तों का जीवन में प्रवेश होते ही व्यक्ति सामान्य जन से जिन में परिवर्तित हो जाता है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि वह युवा जिस महान उद्देश्य से समाज के कल्याण हेतु अपना समस्त वैभव त्याग कर बढ़ा था, निश्चित उस युवा संन्यासी का उद्देश्य और जीवन सार्थक सिद्ध हुए। उस युवा ने अपने जीवन को ही नहीं बल्कि समाज के आम जन को वेदना और पीड़ा से मुक्ति दिलाकर असंख्य व्यक्तियों को जिन में परिवर्तित कर समाज पर महान उपकार किया है।
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(अनुज, मूल रूप से बरेली, उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं। दिल्ली में रहते हैं और अध्यापन कार्य से जुड़े हैं। वे #अपनीडिजिटलडायरी के संस्थापक सदस्यों में से हैं। यह लेख, उनकी ‘भारतीय दर्शन’ श्रृंखला की 57वीं कड़ी है।) 

श्रृंखला की पिछली कड़ियााँ 
56. जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी 
55. जो दिख रहा हो वास्तव में उतना ही सच नहीं होता
54. सिक्के के कितने पहलू होते हैं.. एक, दो या ज्यादा.. जवाब यहाँ है! 
53. हम सब कुछ पाने के लिए ही करते हैं पर सुख क्यों नहीं मिलता?
52. कर्म केवल शरीर से कहीं होना नहीं है….
51. जो जीव को घुमाता रहता है, जानिए उस पुद्गल के बारे में
50. यह ज्ञान बड़ी विचित्र चीज है! जानते हैं कैसे…
49. संसारी और मुक्त जीव में क्या भेद है, इस छोटी कहानी से समझ सकते हैं
48. गुणवान नारी सृष्टि में अग्रिम पद धारण करती है…
47.चेतना लक्षणो जीव:, ऐसा क्यों कहा गया है? 
46. जानते हैं, जैन दर्शन में दिगम्बर रहने और वस्त्र धारण करने की परिस्थितियों के बारे में
45. अपरिग्रह : जो मिले, सब ईश्वर को समर्पित कर दो
44. महावीर स्वामी के बजट में मानव और ब्रह्मचर्य
43.सौ हाथों से कमाओ और हजार हाथों से बाँट दो
42. सत्यव्रत कैसा हो? यह बताते हुए जैन आचार्य कहते हैं…
41. भगवान महावीर मानव के अधोपतन का कारण क्या बताते हैं?
40. सम्यक् ज्ञान : …का रहीम हरि को घट्यो, जो भृगु मारी लात!
39. भगवान महावीर ने अपने उपदेशों में जिन तीन रत्नों की चर्चा की, वे कौन से हैं?
38. जाे जिनेन्द्र कहे गए, वे कौन लोग हैं और क्यों?
37. कब अहिंसा भी परपीड़न का कारण बनती है?
36. सोचिए कि जो हुआ, जो कहा, जो जाना, क्या वही अंतिम सत्य है
35: जो क्षमा करे वो महावीर, जो क्षमा सिखाए वो महावीर…
34 : बौद्ध अपनी ही ज़मीन से छिन्न होकर भिन्न क्यों है?
33 : मुक्ति का सबसे आसान रास्ता बुद्ध कौन सा बताते हैं?
32 : हमेशा सौम्य रहने वाले बुद्ध अन्तिम उपदेश में कठोर क्यों होते हैं? 
31 : बुद्ध तो मतभिन्नता का भी आदर करते थे, तो उनके अनुयायी मतभेद क्यों पैदा कर रहे हैं?
30 : “गए थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास”
29 : कोई है ही नहीं ईश्वर, जिसे अपने पाप समर्पित कर हम मुक्त हो जाएँ!
28 : बुद्ध कुछ प्रश्नों पर मौन हो जाते हैं, मुस्कुरा उठते हैं, क्यों?
27 : महात्मा बुद्ध आत्मा को क्यों नकार देते हैं?
26 : कृष्ण और बुद्ध के बीच मौलिक अन्तर क्या हैं?
25 : बुद्ध की बताई ‘सम्यक समाधि’, ‘गुरुओं’ की तरह, अर्जुन के जैसी
24 : सम्यक स्मृति; कि हम मोक्ष के पथ पर बढ़ें, तालिबान नहीं, कृष्ण हो सकें
23 : सम्यक प्रयत्न; बोल्ट ने ओलम्पिक में 115 सेकेंड दौड़ने के लिए जो श्रम किया, वैसा! 
22 : सम्यक आजीविका : ऐसा कार्य, आय का ऐसा स्रोत जो ‘सद्’ हो, अच्छा हो 
21 : सम्यक कर्म : सही क्या, गलत क्या, इसका निर्णय कैसे हो? 
20 : सम्यक वचन : वाणी के व्यवहार से हर व्यक्ति के स्तर का पता चलता है 
19 : सम्यक ज्ञान, हम जब समाज का हित सोचते हैं, स्वयं का हित स्वत: होने लगता है 
18 : बुद्ध बताते हैं, दु:ख से छुटकारा पाने का सही मार्ग क्या है 
17 : बुद्ध त्याग का तीसरे आर्य-सत्य के रूप में परिचय क्यों कराते हैं? 
16 : प्रश्न है, सदियाँ बीत जाने के बाद भी बुद्ध एक ही क्यों हुए भला? 
15 : धर्म-पालन की तृष्णा भी कैसे दु:ख का कारण बन सकती है? 
14 : “अपने प्रकाशक खुद बनो”, बुद्ध के इस कथन का अर्थ क्या है? 
13 : बुद्ध की दृष्टि में दु:ख क्या है और आर्यसत्य कौन से हैं? 
12 : वैशाख पूर्णिमा, बुद्ध का पुनर्जन्म और धर्मचक्रप्रवर्तन 
11 : सिद्धार्थ के बुद्ध हो जाने की यात्रा की भूमिका कैसे तैयार हुई? 
10 :विवादित होने पर भी चार्वाक दर्शन लोकप्रिय क्यों रहा है? 
9 : दर्शन हमें परिवर्तन की राह दिखाता है, विश्वरथ से विश्वामित्र हो जाने की! 
8 : यह वैश्विक महामारी कोरोना हमें किस ‘दर्शन’ से साक्षात् करा रही है?  
7 : ज्ञान हमें दुःख से, भय से मुक्ति दिलाता है, जानें कैसे? 
6 : स्वयं को जानना है तो वेद को जानें, वे समस्त ज्ञान का स्रोत है 
5 : आचार्य चार्वाक के मत का दूसरा नाम ‘लोकायत’ क्यों पड़ा? 
4 : चार्वाक हमें भूत-भविष्य के बोझ से मुक्त करना चाहते हैं, पर क्या हम हो पाए हैं? 
3 : ‘चारु-वाक्’…औरन को शीतल करे, आपहुँ शीतल होए! 
2 : परम् ब्रह्म को जानने, प्राप्त करने का क्रम कैसे शुरू हुआ होगा? 
1 : भारतीय दर्शन की उत्पत्ति कैसे हुई होगी? 

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