जन गण मन…‘अधिनायक’ की जगह ‘जननायक’ क्यों नहीं?

नीलेश द्विवेदी, 15/8/2022

हिन्दुस्तान ने आज अपना 76वाँ स्वतंत्रता दिवस मना लिया। बीते 75 सालों में इस देश में बहुत कुछ बदला है। मसलन- पहले हम जब छोटे थे, तो प्रभात-फेरियाँ निकला करती थीं। आज़ादी के तराने गाते हुए बच्चे अपने गाँव, क़स्बे, शहरों की गलियों में घूमा करते थे। एकमेव भाव से। लेकिन अभी जब देश ने आज़ादी के 75 साल पूरे किए तो एक आधुनिक क़िस्म की तिरंगा यात्राएँ देखी गईं। इन पर तमाम लोगों की सहमति-असहमतियाँ हुईं। इसी तरह, हमने युद्ध स्मारक को ‘इंडिया गेट’ से हटकर किसी दूसरी जगह जाते देखा। नए कलेवर के साथ। 

संसद की इमारत का चेहरा बदल रहा है। राजधानी दिल्ली का स्वरूप और कश्मीर की वादियों की आब-ओ-हवा भी। कुछ वक़्त पहले ही राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न ‘अशोक स्तम्भ’ के सिंहों को भी अपने तेवर बदलते देखा हमने। पहले वे शान्त हुआ करते थे। अब दहाड़ते हुए नज़र आते हैं। सहमति-असहमतियाँ इन चीज़ों पर भी तमाम सामने आई हैं। इसके बावज़ूद बदलाव हो रहे हैं। इसीलिए प्रश्न है मन में, कि आख़िर हमारे राष्ट्रगान में शामिल ‘अधिनायक’ शब्द अब तक क्यों नहीं बदला गया? इस तरफ़ किसी ने ख़्याल भी क्यों नहीं किया अभी तक? 

ग़ौर कीजिए, हमारा राष्ट्रगान दुनिया के सबसे अच्छे राष्ट्रगानों में गिना जाता है। इसकी धुन इतनी मधुर है, जैसी किसी और की नहीं। इसके बाद भी कई लोग इस पर सवाल उठाया करते हैं। हालाँकि उनकी अपनी भावनाएँ हैं, अपने तर्क हैं। उनसे भी असहमतियाँ हो सकती हैं। हैं भी। लेकिन इस बात से असहमति शायद ही किसी की हो कि हमारा ‘राष्ट्रगान’ एक ‘अधिनायक’ शब्द के इर्द-गिर्द घूमता है। उसकी पूरी रचना, उसका सम्पूर्ण अर्थ, इसी एक शब्द को केन्द्र में रखकर दिया गया है। 

बस, इसी एक शब्द की वज़ह से कुछ लोगों को मौका मिलता है कि वे इस श्रेष्ठ राष्ट्रगान पर सवाल उठा सकें। क्योंकि ‘अधिनायक’ शब्द का मतलब ही है कि जो अधिकारपूर्वक नेतृत्त्व करता हो, नायकत्त्व करता हो। हमारे राष्ट्रगान में इसी ‘अधिनायक’ की जय-जयकार है। अर्थ-सहित देखिए..

जन गण मन अधिनायक जय हे, भारत भाग्य-विधाता…
(जन, गण और मन पर अधिकारपूर्वक नेतृत्त्व करने वाले भारत के भाग्य विधाता, अधिनायक, आपकी जय हो)

पंजाब, सिन्ध, गुजरात, मराठा, द्रविड़, उत्कल बंग, विंध्य, हिमाचल, यमुना, गंगा, उच्छल जलधि तरंग।  
तव शुभ नामे जागे, तव शुभ आशिष माँगे, गाहे तव जय गाथा… 
(पंजाब, सिंध, गुजरात, महाराष्ट्र, द्रविड़, उत्कल जैसे राज्य, विंध्य, हिमाचल से पर्वत, समुद्र सब आपके शुभ की कामना कर रहे हैं। आपके लिए आशीष माँग रहे हैं। आपकी विजय गाथा गा रहे हैं।) 

जन-गण-मंगलदायक जय हे, भारत भाग्य विधाता। जय हे! जय हे! जय हे! जय जय जय जय हे।।
(जन, गण और मन को मंगल देने वाले हे भारत के भाग्य-विधाता, आपकी जय हो, जय हो, जय हो।।)  

अब इस अर्थ के बाद इन प्रश्नों पर विचार कीजिए। हमारे देश में ‘अधिनायक’ कौन है? और कौन हो सकता है? क्या करोड़ों की आबादी के वोट से चुने जाने वाले प्रधानमंत्री? या फिर हमारे राष्ट्रपति? या कोई और? क्या इससे पहले अब तक हमारे इस लोकतांत्रिक देश में कोई ‘अधिनायक’ हुआ है? हो सका है? अगर किसी ने ‘अधिनायक’ बनने की कोशिश की क्या वह सफल हो पाया? ऐसे तमाम प्रश्नों के उत्तर सिर्फ़ और सिर्फ़ ‘न’ में ही मिलेंगे। 

और सोचिए। कोई-कोई दलील देते हैं कि राष्ट्रगान में ‘अधिनायक’ शब्द हमारे ईश्वर के लिए है। तो इस आधार पर भी, हमारी संस्कृति में कोई ईश्वरीय अवतार ‘अधिनायक’ हुए हैं क्या कभी? श्रीराम, श्रीकृष्ण, बुद्ध, महावीर, गुरु साहिब? यहाँ तक कि विदेश की संस्कृतियों के ईश्वरीय-चरित्र भी कभी, कहीं, किसी स्थिति में ‘अधिनायकत्त्व’ के प्रतिनिधि की तरह नज़र नहीं आते। इन सभी ने ‘जननायक’ की तरह ही अपना किरदार निभाया। अपनी भूमिका अदा की। हमेशा आम जन के भाव को, उनके विचार को महत्त्व दिया। उसका सम्मान किया। बल्कि श्रीराम के बारे में तो कहते हैं कि उन्होंने अपनी जनता में से सिर्फ़ एक व्यक्ति के सवाल करने पर माता सीता को वन में भेज दिया था। 

हालाँकि, फिर भी तमाम संस्कृतियों में ‘अधिनायकत्त्व’ वाले किरदार मिलते हैं। हिन्दू संस्कृति में तमाम दैत्य, दानव ‘अधिनायक’ हुए। विदेश की संस्कृतियों में भी हुए ही होंगे। आधुनिक विश्व-इतिहास में कई तानाशाह हुए, जिन्होंने ‘अधिनायकत्त्व के भाव’ से अपने देशों पर लम्बे समय तक शासन किया। हिन्दुस्तान को ग़ुलाम बनाकर रखने वालों का भी शायद यही भाव रहा हो। लेकिन आज? आज कौन है अधिनायक? कोई नहीं न?

तो फिर जो ‘अधिनायक‘ न हमारे इतिहास में है और न आज वर्तमान में. जिस भाव का हम या हमारी संस्कृति समर्थन भी नहीं करती, उसकी जयकार क्यों? इसके बजाय हम अपने ‘जननायकों’ की जय-जयकार क्यों न करें। वे ‘जननायक’ जिन्हें हम ईश्वर की तरह पूजते हैं। वे ‘जननायक’, जिन्होंने आज़ादी के लिए बलिदान दिए। अपना खून बहाया। वे जननायक, जो आज राष्ट्र-निर्माण में लगे हैं। फिर वे चाहे किसी भी क्षेत्र में क्यों न हों। क्या ऐसे ‘जननायकों’ की जय-जयकार से, उन्हें सम्मान देने से, किसी को आपत्ति हो सकती है भला? 

राष्ट्रगान में महज़ एक शब्द बदल देने से उसका पूरा भाव बदल सकता है। ‘अधिनायक’ की जगह ‘जननायक’ कर देने मात्र से उससे जुड़े सवाल हमेशा के लिए ख़त्म हो सकते हैं। इस पर यदा-कदा ही सही, उठने वाली अँगुलियाँ हमेशा के लिए नीचे हो सकती हैं। उसके प्रभाव के दायरे में अतीत, वर्तमान और भविष्य के हर ‘जननायक’ का सम्मान समाहित हो सकता है। आज़ादी के 75 साल पूरे होने पर देश अपने ‘जननायकों’ को अगर यह सम्मान दे सके, तो यही उनके लिए सच्ची आदरांजलि कही जाएगी। विचार कीजिए। अच्छा लगे तो इसका प्रसार कीजिए। ताकि यह विचार ज़िम्मेदार लोगों के कानों तक पहुँच सके। 

जन गण मन जननायक जय हे भारत भाग्य विधाता….. जय हिन्द! 

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