समीर शिवाजीराव पाटिल, भोपाल मध्य प्रदेश
कुछ दिन पहले ही यूट्यूब चैनल पर किसी महाराज की शिष्या द्वारा समाधि लेने की ख़बर दिखी, जो नियत समय में समाधि से लौटी ही नहीं। कहा गया कि साध्वी को उनके समाधिस्थ गुरु का आदेश मिला था। गुरु को समाधि से चैतन्य में लाने के उद्देश्य से ही उन्होंने समाधि ली थी। साध्वी के गुरु भी एक दशक से अधिक समय से ‘फ्रीज़र में समाधिस्थ’ हैं। गुरु जी के परिजनों ने अदालत में उनके दाह संस्कार के लिए याचिका भी लगाई, लेकिन शिष्य जीत गए और गुरु के शरीर को फ्रीज़र में समाधिवास की अनुमति मिल गई। हालाँकि उनकी वापसी का इंतिज़ार अब भी है।
वैसे, अगर कोई विवेक का उपयोग करें कि योग साधना के किस ग्रन्थ में समाधिस्थ शरीर को फ्रीज़र में रखने का उल्लेख है? तो ज़वाब शायद ही कोई मिले। इसी तरह, एक बेस्ट सेलर लेखक, सेलिब्रेट्री मोटिवेशनल स्पीकर और इन्फ्लूएंसर के बारे में फिर कुछ बातें सामने आईं। वे हॉलीवुड-बॉलीवुड सहित दुनिया के तमाम धनाढ्य और प्रभावशाली लोगों को आध्यात्मिक ज्ञान देते हैं। उन्हें यूट्यूब पर लगभग 50 लाख लोग फॉलो करते हैं। उनके बारे में ब्रिटेन के अख़बार ‘द गार्ज़ियन’ ने बताया है कि भारत में मंदिरों में रहकर तीन वर्ष तक आध्यत्मिक अनुभव पाने के उनके दावे पर उन्हीं के नज़दीकियों ने सवाल उठा दिए हैं।
यानि पाखंड की इन छोटी सी ख़बरों ने ही तिलिस्म की इमारत को हिला दिया। और मज़े की बात कि इस तिलिस्म से मूढ़ साबित होने वाले कोई मामूली लोग नहीं। वे दुनिया के सबसे बड़े विश्वविद्यालयों में पढ़े लिखे, दुनिया की सफलतम कम्पनियों के प्रमुख, विश्वविख्यात कलाकार हैं। इससे सहज अनुमान लगा सकते हैं कि अध्यात्म मार्ग में भी जब कभी हम विवेक का अनादर करते हैं, तो थोथी तार्किकता और शब्दाें के आडम्बर से छले जाते हैं। इस तरह अनेक मत और मजहबों में अनगिनत लोग श्रद्धा-अश्रद्धा, सत्य-असत्य, यथार्थ-कल्पना के ऊहापोह का अभिशप्त जीवन जी रहे हैं, जहाँ परमात्मा के साथ उनका सत्य, प्रामाणिकता और निजी अस्तित्त्व सब दाँव पर लगा है।
वहीं दूसरी तरफ़ आजकल ऐसे आध्यात्मिक अनुभवों को बेचने वालों की कमी शायद इसलिए भी नहीं कि ऐसे सस्ते, सुन्दर और टिकाऊ दावों की जबरदस्त माँग है। और मज़े की बात है कि पकड़ में न आने वाली और भूल में डाल देने वाली हर बात को हम आसानी से माया का नाम भी दे रहे हैं। जबकि वही ‘माया’ उससे कई गुना अधिक बल लगाकर हमारे पाखंड को अनावृत्त कर निश्छल सत्य का दर्शन कराने के लिए नित् उत्सुक है!
ध्यान रखिए कि आज का युग स्वच्छन्द भोगवृत्ति का है। इस कारण पर्यावरण, मानव-सम्बन्ध और भावों से लेकर हमारे नैतिक मूल्य तक सब कुछ क्षरण की प्रक्रिया से गुजर रहा है। हमारे कालखंड में स्वयं के विवेक को सुरक्षित रखना बड़ा भारी पुरुषार्थ है। भौतिक भोगवाद के ख़तरों से हम सब वाकिफ़ हैं और कमोबेश हम सभी इसे अनेक अवसरों पर अनुभव भी करते हैं। लेकिन जीवन के उच्चतर आयाम का मार्ग कभी सरल नहीं रहा है।
कठोपनिषद् में एक श्लोक आता है –
उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।
क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति॥
(अध्याय-१, वल्ली-३, श्लोक-१४)
अर्थात् : उठो! जागो! वरेण्य पुरुषों को प्राप्त होकर उनसे बोध प्राप्त करो। ज्ञान के बिना इस जगत में कुछ भी उन्नति साध्य नहीं हो सकती। आत्मज्ञान और आत्मोन्नति का यह मार्ग अत्यन्त कठिन है। वैसे ही, जैसे तलवार की तीक्ष्ण धार पर चलना। इस पथ पर सँभलकर चलना चाहिए। पथ से थोड़ा भी डिगे तो पतन निश्चित है।
यानि पुस्तक, प्रवचन, अख़बारों से होते हुए अब टेलीविज़न, यूट्यूब आदि माध्यमों से जो ‘ज्ञानी’ हमें सहज ही समाधि, कुण्डलिनी जागरण, ब्रह्मज्ञान या आत्म साक्षात्कार कराने का दावा करते हैं, उसे परखने की ज़रूरत है। उसे अपने विवेक की कसौटी पर कसना ज़रूरी है। क्योंकि पुरातन काल से ही परम सत्य की अनुभूति का मार्ग अत्यन्त दुर्गम रहा है। यह मार्ग यथार्थ में छुरे की धार पर चलने के समान है। और यह छुरे की धार परमकृपामयी महामाया है। यदि इस पर चलते हुए हमारे चरण कटते हैं, तो यक़ीन मानिए इसकी सीख ही सबसे महत् कृपा है।
तो उठना है! जागना है और छुरे की धार पर पाँव रखकर आगे बढ़ना है। उस विवेकसम्पन्न ‘महापुरुष’ (ईश्वर) के पास जाकर बोध पाने के लिए।
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(नोट : #अपनीडिजिटलडायरी के शुरुआती और सुधी-सदस्यों में से एक हैं समीर। भोपाल, मध्य प्रदेश में नौकरी करते हैं। उज्जैन के रहने वाले हैं। पढ़ने, लिखने में स्वाभाविक रुचि रखते हैं। वैचारिक लेखों के साथ कभी-कभी उतनी ही विचारशील कविताएँ, व्यंग्य आदि भी लिखते हैं। डायरी के पन्नों पर लगातार अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराया करते हैं।)
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