संस्कृत की संस्कृति : वर्ण यानी अक्षर आखिर पैदा कैसे होते हैं, कभी सोचा है? ज़वाब पढ़िए!

अनुज राज पाठक, दिल्ली

संस्कृत अध्येताओं द्वारा वर्णों के शुद्ध उच्चारण के महत्त्व पर दिए उदाहरणों को मैंने कई बार देखा। इस प्रक्रिया के दौरान मन में प्रश्न उत्पन्न हुआ कि ये वर्ण आखिर उत्पन्न कैसे होते हैं? यहाँ वर्णों के उत्पन्न होने से तात्पर्य है कि हमारे मुख से निकलने वाली ध्वनियाँ कैसे पैदा होती हैं? क्या अलग-अलग स्थानों में अलग बोली और भाषा बोलने वाले लोगों के वर्णों की ध्वनियाँ एक ही तरह से पैदा होती हैं? इस विषय में हम सब ने बुज़ुर्गों से अक्सर सुना होगा “कोस कोस पर बदले वानी चार कोस पर पानी”। यानी थोड़ी-थोड़ी दूरी पर भी लोगों की भाषा-बोली में अन्तर दिखाई देता है। हालाँकि यह अन्तर वर्णों के सुनाई देने वाले उच्चारण भर का है न कि वर्ण उत्पत्ति प्रक्रिया में अन्तर का। उत्पत्ति प्रक्रिया सभी स्थानों पर एक सी ही पाई जाती है। वर्णों की उत्पत्ति प्रक्रिया का ‘शिक्षा’ नामक वेदाङ्ग में वर्णन है।

वैसे, शिक्षा ग्रन्थ बहुत से हैं। जैसे- वासिष्ठी, कात्यायनी आदि। लेकिन इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण है- ‘पाणिनीय शिक्षा’। इसे सबसे प्रामाणिक भी माना जाता है। इसमें वर्णों की उत्पत्ति के बारे में बड़ी लम्बी और गहन विवेचना की गई है। हमारे ग्रन्थों में वर्ण उत्पत्ति की प्रक्रिया कुछ यूँ बताई गई है। जब व्यक्ति की आत्मा का बुद्धि से सम्पर्क होता है, तब वह आत्मा अपने भाव को, विचार को व्यक्त करने की इच्छा से मन को प्रेरित करती है। यही मन शरीर की शक्ति को, ऊर्जा को प्रेरित करता है। यह ऊर्जा शरीर में रहने वाली वायु को प्रेरित करती है। शरीर की ऊर्जा से प्रेरित वायु या प्राणवायु फेफड़ों में गतिशील होकर ऊपर की तरफ बढ़ती है। गतिशील प्राणवायु सिर के भाग में पहुँचती है। लेकिन सिर से और ऊपर जाने का मार्ग न मिलने से वह मूर्द्धा से टकराकर कंठ से होते हुए मुख से बाहर आ जाती है। बाहर निकलते समय मुख के विभिन्न भागों के टकराती है और सम्बन्धित वर्ण रूप में बदल जाती है। हमें सुनाई देती है। 

वर्ण उत्पत्ति की प्रक्रिया यह सार-संक्षेप है। वास्तव इसमें अन्य भी सूक्ष्म चरण हैं। लेकिन इन तमाम चरणों की ऐसी लम्बी प्रक्रिया इतनी जल्दी होती है कि वक्ता को अलग-अलग वर्णों के उच्चारण प्रक्रिया की अनुभूति ही नहीं हो पाती। और जब स्वयं वक्ता को पता नहीं चलता तो श्रोता को तो क्या ही पता चलेगा। इसलिए सामान्य तौर पर हम केवल वर्णों को सुन पाते हैं। उनकी पूरी प्रक्रिया को कभी नहीं जान पाते। लेकिन संस्कृत के आचार्यों ने संस्कृत वर्ण माला के प्रत्येक वर्ण को समझने, उसकी प्रक्रिया जानने हेतु बहुत परिश्रम किया है। वह भी बिना किन्हीं उपकरणों के। 

आश्चर्य होता है कि इतने प्राचीन समय में वर्ण अर्थात् मनुष्य द्वारा उत्पन्न ध्वनि के विषय में इतना गम्भीर अध्ययन चिन्तन-मनन कर लिया गया। इतनी सूक्ष्मता से निरीक्षण कर वर्ण की उत्पत्ति सिद्धान्त का सटीक वर्णन कर लिया गया। जबकि आज आधुनिक भाषा-विज्ञान बिना यंत्रों से इस प्रक्रिया को समझने में असफल है। आधुनिक भाषा-विज्ञान आज भी पूर्व आचार्यों द्वारा संस्कृत भाषा और वर्णों की उत्पत्ति पर किए गए कार्य तक पहुँच नहीं पाया है। 
—— 
(नोट : अनुज दिल्ली में संस्कृत शिक्षक हैं। #अपनीडिजिटलडायरी के संस्थापकों में शामिल हैं। अच्छा लिखते हैं। इससे पहले डायरी पर ही ‘भारतीय दर्शन’ और ‘मृच्छकटिकम्’ जैसी श्रृंखलाओं के जरिए अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं। समय-समय पर दूसरे विषयों पर समृद्ध लेख लिखते रहते हैं।) 
——-
इस श्रृंखला की पिछली कड़ियाँ 

4- दूषित वाणी वक्ता का विनाश कर देती है….., समझिए कैसे!
3- ‘शिक्षा’ वेदांग की नाक होती है, और नाक न हो तो?
2- संस्कृत एक तकनीक है, एक पद्धति है, एक प्रक्रिया है…!
1. श्रावणी पूर्णिमा को ही ‘विश्व संस्कृत दिवस’ क्यों?

सोशल मीडिया पर शेयर करें
From Visitor

Share
Published by
From Visitor

Recent Posts

तिरुपति बालाजी के लड्‌डू ‘प्रसाद में माँसाहार’, बात सच हो या नहीं चिन्ताजनक बहुत है!

यह जानकारी गुरुवार, 19 सितम्बर को आरोप की शक़्ल में सामने आई कि तिरुपति बालाजी… Read More

4 hours ago

‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह रो रहा था क्योंकि उसे पता था कि वह पाप कर रहा है!

बाहर बारिश हो रही थी। पानी के साथ ओले भी गिर रहे थे। सूरज अस्त… Read More

1 day ago

नमो-भारत : स्पेन से आई ट्रेन हिन्दुस्तान में ‘गुम हो गई, या उसने यहाँ सूरत बदल’ ली?

एक ट्रेन के हिन्दुस्तान में ‘ग़ुम हो जाने की कहानी’ सुनाते हैं। वह साल 2016… Read More

2 days ago

मतदान से पहले सावधान, ‘मुफ़्तख़ोर सियासत’ हिमाचल, पंजाब को संकट में डाल चुकी है!

देश के दो राज्यों- जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में इस वक़्त विधानसभा चुनावों की प्रक्रिया चल… Read More

3 days ago

तो जी के क्या करेंगे… इसीलिए हम आत्महत्या रोकने वाली ‘टूलकिट’ बना रहे हैं!

तनाव के उन क्षणों में वे लोग भी आत्महत्या कर लेते हैं, जिनके पास शान,… Read More

5 days ago

हिन्दी दिवस :  छोटी सी बच्ची, छोटा सा वीडियो, छोटी सी कविता, बड़ा सा सन्देश…, सुनिए!

छोटी सी बच्ची, छोटा सा वीडियो, छोटी सी कविता, लेकिन बड़ा सा सन्देश... हम सब… Read More

6 days ago