निकेश जैन, इन्दौर मध्य प्रदेश
लगता है, पश्चिम का मीडिया चुनिन्दा चीज़ों को भूल जाने की बीमारी की शिकार है। हिन्दी में यह बीमारी ‘स्मृति-लोप’ कहलाती है, जिसमें कोई याददाश्त के कुछ-कुछ हिस्से भूल जाता है। मैंने अभी अमेरिकी समाचार समूह सीएनएन के ऑनलाइन मंच पर प्रकाशित एक लेख पढ़ा। उसे पढ़ने के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ।
लेख में मराठा वीर- छत्रपति सम्भाजी महाराज के जीवन से प्रेरणा लेकर बनी फिल्म ‘छावा’ के बारे में बात की गई है। लेकिन फिल्म से ज़्यादा जोर इस बात पर दिया गया कि मुग़लों के प्रति सहानुभूति पैदा हो। उदाहरण के तौर पर लेख लिखने वाले ने बताया है- ताज महल, लाल किले जैसी तमाम मशहूर इमारतें भारत में मुग़लों ने बनवाईं। मतलब कि उससे पहले तो हिन्दुस्तान की ज़मीन बंजर ही रही होगी जैसे! यहाँ कुछ रहा ही नहीं होगा!
लेख में इसी तरह की और भी तमाम बातें लिखी गई हैं, यह बताने के लिए कि मुग़ल बादशाहों के दौर में ही अस्ल में भारत की उल्लेखनीय प्रगति हुई। आज भारत जो भी है, वह मुग़ल बादशाहों की वज़ह से है। इतना ही नहीं, हिन्दुस्तान में साम्प्रदायिक सद्भाव भी मुग़ल शासकों की ही देन है। आदि, आदि।
हँसिए…, हँसना स्वास्थ्य के लिए बहुत फ़ायदेमन्द होता है और ऐसी बातों, जानकारियों पर खुलकर हँसा जा सकता है। क्योंकि सच्चाई यह है कि सीएनएन के कार्यक्रम प्रस्तोता (एंकर) या इस लेख के लेखक मेरे साथ दो दिन का वक़्त भी बिता लें, तो मैं उनकी आँखों पर चढ़ा मुग़लों का चश्मा उतार सकता हूँ।
मुझे बहुत ज़्यादा दूर जाने की ज़रूरत नहीं है। मैं बेंगलुरू के आस-पास 500 किलोमीटर के दायरे में ही 10 से ज्यादा पुरातात्त्विक स्थल और इमारतें दिखा सकता हूँ, जो प्राचीन स्थापत्य का बेजोड़ नमूना है। ये दुनियाभर में मशहूर हैं और भारत में मुग़लों के आने से भी पहले से मौज़ूद हैं। जैसे- हम्पी, श्रवणबेलगोला, बेलूर, आदि। ये और हिन्दुस्तान में मौज़ूद ऐसे तमाम पुरातात्त्विक स्थल, इमारतें, आदि अद्वितीय वैज्ञानिक सटीकता के साथ बनाई गईं हैं। आज भी शान से खड़ी रहकर ये इमारतें अपने श्रेष्ठता और उत्कृष्टता के प्रमाण ख़ुद देती हैं।
तिस पर अभी तो मैंने ऋग्वेद काल (वैदिक युग) की तो बात ही नहीं की है। वह युग और उससे जुड़ा स्थापत्य तो इतना पुराना है कि तब इस्लाम ही अस्तित्त्व में नहीं आया था। लेकिन कुछ लोगों को यह सब याद नहीं रहता। हो सकता है, ‘स्मृति-लोप’ की बीमारी के कारण उनके साथ ऐसा होता हो, या फिर यह भी सम्भव है कि वे अपनी सुविधा से कुछ तथ्यों को भूल जाने का स्वाँग किया करते हों।
जो भी हो अलबत्ता, हमें पढ़ते-लिखते वक़्त अपने स्तर पर यह ध्यान रखना चाहिए कि ग़लत स्रोत से कोई जानकारी न लें। आधे-अधूरे, तोड़े-मरोड़े गए तथ्य और जानकारियाँ हमेशा ही ख़तरनाक होती हैं। दुर्भाग्यवश, सीएनएन जैसे पश्चिमी मीडिया के मंच चुनिन्दा तौर पर ऐसी ग़लत और भ्रामक जानकारियों का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। इसलिए सावधानी बरतें। अगर कोई भारत के बारे में सही तरीके से जानना-समझना चा6हता है, तो उसे मुग़ल-काल से भी बहुत पीछे जाकर उपलब्ध साहित्य का अध्ययन करना चाहिए। मैं ख़ुद भी यही कर रहा हूँ।
क्या कहते हैं?
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निकेश का मूल लेख
Western media is suffering with selected amnesia – I just read a CNN article which prompted me to write this post.
This article talks about movie Chaava and tries to generate sympathy about Mughal era and emperors.
The funniest thing the writer says that Mughal emperors built structures like Taj Mahal and Red Fort as if India was a barren land or a desert before that 😁.
In one breath the writer counts names of all the Mughal emperors and promotes that they were the ones who developed India of today. They are the ones who brought religious harmony etc etc.
If a CNN anchor or this writer just gives me 2 days, I can show them 10 such architecture within 500 km of Bangalore that were built hundreds of years before Mughals even arrived in India!
Halebidu, Belur, Hampi , Shravanbelgola are just few of them.
These are architectures built in the most scientific way and are still standing tall.
I am not even going to Rigved era!
The knowledge gathered through a wrong source is always dengerous and unfortunately western media specially likes of CNN are famous for spreading wrong and selective information.
If one wants to learn about India, they need to go way beyond Mughal era.
Agree?
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(निकेश जैन, कॉरपोरेट प्रशिक्षण के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनी- एड्यूरिगो टेक्नोलॉजी के सह-संस्थापक हैं। उनकी अनुमति से उनका यह लेख अपेक्षित संशोधनों और भाषायी बदलावों के साथ #अपनीडिजिटलडायरी पर लिया गया है। मूल रूप से अंग्रेजी में उन्होंने इसे लिंक्डइन पर लिखा है।)
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निकेश के पिछले 10 लेख
53 – भगवान महावीर के ‘अपरिग्रह’ सिद्धान्त ने मुझे हमेशा राह दिखाई, सबको दिखा सकता है
52 – “अपने बच्चों को इतना मत पढ़ाओ कि वे आपको अकेला छोड़ दें!”
51 – क्रिकेट में जुआ, हमने नहीं छुआ…क्योंकि हमारे माता-पिता ने हमारी परवरिश अच्छे से की!
50 – मेरी इतिहास की किताबों में ‘छावा’ (सम्भाजी महाराज) से जुड़ी कोई जानकारी क्यों नहीं थी?
49 – अमेरिका में कितने वेतन की उम्मीद करते हैं? 14,000 रुपए! हम गलतियों से ऐसे ही सीखते हैं!
48 – साल 2047 तक विकसित भारत का लक्ष्य क्या वाकई असम्भव है? या फिर कैसे सम्भव है?
47 – उल्टे हाथ से लिखने वाले की तस्वीर बनाने को कहा तो एआई ने सीधे हाथ वाले की बना दी!
46 – ‘ट्रम्प 20 साल पहले अमेरिकी राष्ट्रपति बन जाते, तो हमारे बच्चे ‘भारतीय’ होते’!
45 – 70 या 90 नहीं, मैंने तो हफ़्ते में 100 घंटे भी काम किया, मगर उसका ‘हासिल’ क्या?
44 – भोपाल त्रासदी से कारोबारी सबक : नियमों का पालन सिर्फ़ खानापूर्ति नहीं होनी चाहिए