ज़ीनत ज़ैदी, शाहदरा, दिल्ली से
हम एक ऐसे दौर में ज़िन्दगी गुजर रहे हैं, जहाँ हमारे करीबियों के पास भी हमारे लिए वक्त नहीं है। या कह लीजिए कि वे हमें सुनने में दिलचस्पी नहीं रखते। विद्यार्थियों के साथ ऐसा अक्सर होता है। वे ऐसा सोचते हैं कि उनके माता पिता उन्हें समझते नहीं।और इसका नतीज़ा निकलता है चिन्ता (anxiety) और अवसाद (depression) जेसी गम्भीर बीमारियों के रूप में।
ऐसे में हमें चाहिए कि हम उन्हें भले ही न समझ सकें लेकिन उनको कुछ देर के लिए सुन तो लें। जिससे उन्हें ये भरोसा हो जाए कि जीवन की इस लड़ाई में वे अकेले नहीं है। कहें उनसे कि हम हैं तुम्हारे साथ। हर वक्त। तुम्हें सँभालने के लिए। समझने के लिए। सब ठीक हो जाएगा। तुम बस, हिम्मत मत हारना। जीत तुम्हारी होगी।
हम हर बच्चे की परेशानी हल नहीं कर सकते। लेकिन हम उसे यह एहसास दिला सकते हैं कि तुम अकेले नहीं हो। ऐसा कर के हम उसकी ज़िन्दगी बरबाद होने से बचा सकते हैं। इसलिए उन्हें अनुसुना न करें। सुनें उन्हे इससे पहले कि वे बोलने छोड़ दें। शान्त हो जाएँ। इंट्रोवर्ट हो जाएँ। अपने तक सिमट जाएँ।
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(ज़ीनत #अपनीडिजिटलडायरी के सजग पाठकों में से एक हैं। दिल्ली के आरपीवीवी, सूरजमलविहार स्कूल में 10वीं कक्षा में पढ़ती हैं। उन्होंने यह आर्टिकल सीधे #अपनीडिजिटलडायरी के ‘अपनी डायरी लिखिए’ सेक्शन पर पोस्ट किया है।)
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You have raised an important topic.
Keep it up..
Thank you ❣️🥰🥰
Yaar koi kitna bhi ahsas dila de ki wo apke sath hai par.. Maan ko hamesha lagta hai wo akela hai 🥺