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प्रेम की अभिव्यक्ति अगर ऐसे भाव और समर्पण से हो, तो बात दूर तक जाती है

टीम डायरी

पश्चिम की संस्कृति ने प्रेम के लिए जो दिन और हफ़्ता निर्धारित कर रखा है, वह 14 फरवरी को वेलेन्टाइन-डे मनाने के साथ ही निकल गया। लेकिन भारतीय संस्कृति में प्रेम का दायरा किसी दिन, हफ़्ते तक सीमित नहीं। यहाँ प्रेम की जो अवधारणा है, वह समय के इतने से हिस्से से समेटी भी नहीं जा सकती। लिहाज़ा, इस देश में प्रेम की अभिव्यक्ति का कोई न कोई पहलू कभी भी सामने आ जाता है। जैसे- यह भजन, जो इन दिनों बच्चे-बच्चे की ज़ुबान पर है। 

सुनिए इसे, और गाने वाले तथा लिखने वाले ने शब्दों के साथ जिस भाव और समर्पण का मिश्रण किया है, उस पर गौर कीजिए। इसके बाद नीचे जो कहने-बताने की कोशिश है, उस पर निगाह डालिए। गुत्थियाँ ख़ुद सुलझ जाएँगी।      

तो बात यूँ है कि यह भजन नया नहीं है। और इस वीडियो में जो गाने वाले हैं, न ही वे कोई नए भजन गायक है। गायक का नाम पंडित सुधीर व्यास है। इन्दौर, मध्य प्रदेश के रहने वाले हैं। बीते क़रीब दो-तीन दशकों से ये भजन गा रहे हैं। मगर इन्हें इनके हिस्से की ख्याति अभी लगभग चार-पाँच हफ़्ते पहले ही मिली, जब उन्होंने भगवान के दरबार में ऐसे भाव और समर्मण के साथ प्रेम में पगे शब्दों को अभिव्यक्ति दी। 

इसके बाद तो हालत ये है कि इस भजन को इनके अपने यूट्यूब चैनल पर ही 30 लाख से अधिक बार देखा जा चुका है। इसके अलावा दीगर यूट्यूब चैनलों पर इसकी प्रतियाँ (कॉपीराइट की सूचना के बावज़ूद) भी मौज़ूद हैं। उन तमाम जगहों पर भी इसे देखे और सुने जाने की संख्या लाखों में है। कुल मिलाकर यह करोड़ों में जा चुकी है। और आँकड़ा लगातार बढ़ ही रहा है क्योंकि इसे लोग वॉट्स सन्देशों के जरिए और सोशल मीडिया के दूसरे मंचों पर भी अलग-अलग तरीकों से साझा कर रहे हैं। प्रचारित, प्रसारित कर रहे हैं। 

जबकि इस भजन को इससे पहले जाने-माने भजन गायक विनोद अग्रवाल और उनके अनुयायी भी कई बरसों से गाते रहे हैं। उनके वीडियो यूट्यूब पर हैं। उन्हें भी देखे, सुने जाने का आँकड़ा अच्छा है। लेकिन इतना फिर भी नहीं, जितना पंडित सुधीर व्यास जी के हिस्से में आया है। 

अब रही बात लिखने वाले की, तो उनका उल्लेख किसी गायक ने नहीं किया है। करना चाहिए था। पर शायद उनके बारे में जानकारी आसानी से उपलब्ध नहीं। क्योंकि #अपनीडिजिटडायरी की टीम ने भी अपने तरीक़े से काफ़ी तलाशने की कोशिश की। मगर सफलता नहीं मिली। इसके बावजूद उनके शब्दों में पिरोए गए भाव और समर्पण का जादू देखिए कि जब से उन्होंने लिखा, तब से आज तक उनके लिखे हुए की गूँज अनवरत है। 

हमारे देश में प्रेम की जो अवधारणा है, उसके मूल में बस यही दो चीजें हैं- भाव और सम्पूर्ण समर्पण। जब प्रेम की अभिव्यक्ति में ये दोनों मिल जाती हैं, तो बात दूर तक जाती है। बहुत दूर तक…..

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