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शिवाजी महाराज : “माँसाहब, मत जाइए। आप मेरी खातिर यह निश्चय छोड़ दीजिए”

बाबा साहब पुरन्दरे द्वारा लिखित और ‘महाराज’ शीर्षक से हिन्दी में प्रकाशित पुस्तक से

महाराज राजगढ़ के समीप पहुँचे। तभी उन्हें अपने पिता की मौत की खबर मिली। साथ ही यह खबर भी कि राजगढ़ पर जिजाऊसाहब सती होने वाली हैं। मानो भूचाल, प्रलय, दावानल, आँधी-तूफान ने एक साथ ही हड़कम्प मचाया। माँ की ममता के सामने त्रैलोक्य के साम्राज्य को धूल मानते थे शिवाजी महाराज। वही माँ उन्हें छोड़कर जाने वाली थी। रँभाते बछड़े की तरह वह माँ के पास दौड़े। दुःख से छाती फटी जा रही थी। वह राजगढ़ पर आए। आऊसाहब सती होने की तैयारी में ही थीं (यह दिन था दिनांक 5 फरवरी 1664)। दौड़ ही तो पड़े महाराज आऊसाहब की तरफ। दहाड़ें मारकर रोने लगे। हाथ जोड़कर विनती करने लगे, “माँसाहब, मत जाइए। आप मेरी खातिर यह निश्चय छोड़ दीजिए। रह जाईए।”

माँ के गले में बाहें डालकर वह बिलख रहे थे। फिर भी जिजाऊसाहब का निश्चय अटल रहा। राजगढ़ का कलेजा मुँह को आया। सभी छोटे-बड़े शोकातुर होकर मनुहार करने लगे, “माँसाहब, मत जाइए। आप महाराज की खातिर ही सही, अपना प्रण छोड़ दीजिए।” पर आऊसाहब टस से मस भी न हुईं। लगातार 34 साल शिवाजी महाराज को ममता की छाया देने वाली मैया अपने हाथों उन्हें दूर हटाकर आग की लपटों में घिरी चिता में प्रवेश करने वाली थी। इस भीषण, दुःखदायी खयाल से ही महाराज का कलेजा बँध गया। कसौटी का क्षण नजदीक आ रहा था। एकाएक आऊसाहब के गले से लिपट महाराज ने इन्द्र के वज्र को गलाने वाली रुद्ध आवाज में पुकारा, ‘आऊसाहब!’

जिसने आज तक माँ के पास किसी तरह की जिद नहीं की थी ऐसा माँ के प्यार में पागल बेटा, माँ के पास सिर्फ माँ ही को माँग रहा था। और किसी चीज की उसे चाह नहीं थी। उसे चाहिए थी तो सिर्फ उसकी माँ। उसे उसकी माँ देना सिर्फ उसकी माँ के ही हाथ में था। महाराज दहाड़ें मारकर चिल्लाए, “माँ मत जाओ! मत जाओ! तुम” और वज्र पिघल गया। मक्खन की मानिन्द पिघल गया। जिजाऊसाहब के वात्सल्य में उफान आया। महाराज के आँसुओं से उनके निश्चय का बाँध ढह गया। शिवबा के लिए आऊसाहब मौत की राह से लौट आईं। महाराज को माँ वापस मिल गई।

शहाजी राजे महाराज, शिवाजी राजे और जिजाऊसाहब से दूर कर्नाटक में रहते थे। फिर भी उनके मन में दोनों के प्रति प्यार और अभिमान था। उनका उत्साह बढ़ाने वाले पत्र और वस्त्रालंकार भेजकर वह उनके प्रति अपनापा प्रकट करते रहते थे। शहाजी राजे का वत्सल सहारा जाता रहा। पर माँसाहब का साया बनाए रखने में शिवाजी राजे कामयाब हुए थे। इसके बाद अब बारी थी अगले मोर्चे की। छह महीनों से जसवंतसिंह सिंहगढ़ पर मोर्चा लगाकर बैठा था। लेकिन गढ़ था कि उसके काबू में नहीं आ रहा था। उसने गढ़ पर ‘सुलतानढवा’ यानी पूरी ताकत के साथ हमला किया (दिनांक 14 अप्रैल 1664)। लेकिन मराठों ने उसके दाँत खट्टे किए। फिर भी एक महीने तक वह किले पर छोटे-मोटे हमले करता रहा। लेकिन उसे हमेशा हार का ही मुँह देखना पड़ा। आखिर मायूस होकर वह लौटा (दिनांक 28 मई 1664)। उसे लौटते देख सिंहगढ़ पर खुशियाँ मनाई गईं।

दो ही दिनों में बरसात का मौसम आया। बादशाह ने अचानक मुहिम के बीड़े पेश किए। इस बार मुहिम का बीड़ा उठाया खवास खान ने। खान को विदा दी गई। कई सरदारों को उसके साथ मुहिम पर भेजा गया। उनमें एक थे एकोजीराव भोसले। शहाजी राजे के छोटे बेटे। और भी एक सरदार को मुधोल में सन्देश भेजा गया, “खवास खान कोंकण की कुडाल मुहिम पर रवाना हुए हैं। आप वहाँ से उनके साथ शामिल हो जाइए।” इस सरदार का नाम था, राजा घोरपड़ा बहादुर आदिलशाही बाजीराजे घोरपड़े मुधोलकर। यह हजरत बादशाह के वफादार सेवक थे। स्वराज्य के कट्टर दुश्मन।

महाराज को खबर मिल गई कि बाजीराजे घोरपड़े मुधोलकर मुधोल में हैं। आगे वह खवास खान के साथ शामिल होने जल्द ही कूच करने वाले हैं। यह वही बाजीराव थे, जिन्होंने शहाजीराजे के हाथ-पाँवों में बेड़ियाँ डाल दी थीं। हर बार इन्होंने स्वराज्य तथा भोसलों के साथ वैर किया था। स्वराज्य को मिट्टी में मिलाने के लिए इन्होंने कई बार मोर्चे बाँधे थे। अब भी उसी नापाक उद्देश्य से वह तशरीफ ला रहे थे। महाराज को पिता का आदेश ही था कि इस बाजी का बदला जरूर लो। उसे काटकर फेंक दो।

महाराज ने मुट्ठियाँ भींची और फौज के साथ निकल पड़े। अभी बाजी राजे मुधोल से निकले भी नहीं थे कि महाराज ने मुधोल पर आक्रमण किया। घनघोर युद्ध हुआ। पूरा मुधोल खून से लथपथ हो गया। बाजी राजे और शिवाजी राजे आमने-सामने आए। एक-दूसरे पर वार करने लगे। आखिर बाजी राजे वहीं पर ढेर हो गए (अक्टूबर मध्य सन् 1664)। महाराज ने पिता के अपमान का बदला लिया। आज पिता का सच्चा श्राद्ध हुआ था। अब महाराज निकले खवास खान से लोहा लेने। बाजी घोरपड़े बहादुर तो बहुत था। लेकिन उसने अपनी बहादुरी का उपयोग किया हिन्दुओं के विद्वेषी आदिलशाह के लिए। जीवनभर अपने ही लोगों से, खासकर भोसलों से लड़ता रहा। अच्छे गुण जब बुरी प्रवृत्ति के अधीन होते हैं, तब निष्फल हो जाते हैं। 
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(नोट : यह श्रृंखला #अपनीडिजिटलडायरी पर डायरी के विशिष्ट सरोकारों के तहत प्रकाशित की जा रही है। छत्रपति शिवाजी के जीवन पर ‘जाणता राजा’ जैसा मशहूर नाटक लिखने और निर्देशित करने वाले महाराष्ट्र के विख्यात नाटककार, इतिहासकार बाबा साहब पुरन्दरे ने एक किताब भी लिखी है। हिन्दी में ‘महाराज’ के नाम से प्रकाशित इस क़िताब में छत्रपति शिवाजी के जीवन-चरित्र को उकेरतीं छोटी-छोटी कहानियाँ हैं। ये कहानियाँ उसी पुस्तक से ली गईं हैं। इन्हें श्रृंखला के रूप में प्रकाशित करने का उद्देश्य सिर्फ़ इतना है कि पुरन्दरे जी ने जीवनभर शिवाजी महाराज के जीवन-चरित्र को सामने लाने का जो अथक प्रयास किया, उसकी कुछ जानकारी #अपनीडिजिटलडायरी के पाठकों तक भी पहुँचे। इस सामग्री पर #अपनीडिजिटलडायरी किसी तरह के कॉपीराइट का दावा नहीं करती। इससे सम्बन्धित सभी अधिकार बाबा साहब पुरन्दरे और उनके द्वारा प्राधिकृत लोगों के पास सुरक्षित हैं।) 
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शिवाजी ‘महाराज’ श्रृंखला की पिछली 20 कड़ियाँ 
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28- शिवाजी महाराज : जब शाइस्ता खान की उँगलियाँ कटीं, पर जान बची और लाखों पाए
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24- शिवाजी महाराज : अपने बलिदान से एक दर्रे को पावन कर गए बाजीप्रभु देशपांडे
23- शिवाजी महाराज :.. और सिद्दी जौहर का घेरा तोड़ शिवाजी विशालगढ़ की तरफ निकल भागे
22- शिवाजी महाराज : शिवाजी ने सिद्दी जौहर से ‘बिना शर्त शरणागति’ क्यों माँगी?
21- शिवाजी महाराज : जब 60 साल की जिजाऊ साहब खुद मोर्चे पर निकलने काे तैयार हो गईं
20-  शिवाजी महाराज : खान का कटा हुआ सिर देखकर आऊसाहब का कलेजा ठंडा हुआ
19- शिवाजी महाराज : लड़ाइयाँ ऐसे ही निष्ठावान् सरदारों, सिपाहियों के बलबूते पर जीती जाती हैं
18- शिवाजी महाराज : शिवाजी राजे ने जब अफजल खान के खून से होली खेली!
17- शिवाजी महाराज : शाही तख्त के सामने बीड़ा रखा था, दरबार चित्र की भाँति निस्तब्ध था
16- शिवाजी ‘महाराज’ : राजे को तलवार बहुत पसन्द आई, आगे इसी को उन्होंने नाम दिया ‘भवानी’
15- शिवाजी महाराज : कमजोर को कोई नहीं पूछता, सो उठो! शक्ति की उपासना करो
14- शिवाजी महाराज : बोलो “क्या चाहिए तुम्हें? तुम्हारा सुहाग या स्वराज्य?
13- शिवाजी ‘महाराज’ : “दगाबाज लोग दगा करने से पहले बहुत ज्यादा मुहब्बत जताते हैं”
12- शिवाजी ‘महाराज’ : सह्याद्रि के कन्धों पर बसे किले ललकार रहे थे, “उठो बगावत करो” और…
11- शिवाजी ‘महाराज’ : दुष्टों को सजा देने के लिए शिवाजी राजे अपनी सामर्थ्य बढ़ा रहे थे
10- शिवाजी ‘महाराज’ : आदिलशाही फौज ने पुणे को रौंद डाला था, पर अब भाग्य ने करवट ली थी

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