भारतीय शिक्षा पद्धति के बारे में मैकॉले क्या सोचते थे?

माइकल एडवर्ड्स की पुस्तक ‘ब्रिटिश भारत’ से, 20/9/2021

भारतीय शिक्षा प्रणाली के बारे में मैकॉले के जो विचार थे उनका सारांश जानना दिलचस्प हो सकता है। वे लिखते हैं, “सरकार के रूप में हमारे पास धन है। इसे हम इस देश के लोगों के बौद्धिक विकास में लगाएँगे। पर सवाल ये है कि इस धन को लगाने का सबसे उपयोगी तरीका क्या हो? इस देश के लोग जो बोलियाँ बोलते हैं, उनमें न कोई साहित्यिक अंश है, न वैज्ञानिक। वे इतनी तंग और उजड्‌ड हैं कि उनके साहित्य का अनुवाद तक मुश्किल है। इसीलिए सवाल ये अहम सवाल है कि लोगों को सिखाने-पढ़ाने की भाषा क्या हो? इस बारे में शिक्षण समिति के आधे सदस्यों का मानना है कि वह अंग्रेजी होनी चाहिए। जबकि बाकी सदस्यों ने अरबी या संस्कृत की सिफ़ारिश की है। 

वैसे, मुझे अरबी, संस्कृत का ज्ञान नहीं है। फिर भी मैंने इन भाषाओं के अधिकांश लोकप्रिय साहित्य का अनुवाद पढ़ा। उन प्रतिष्ठित लोगों से बात की जो इन भाषाओं पर पकड़ रखते हैं। मैं इनके बारे में और अधिक पठन-पाठन के लिए भी तैयार हूँ। इसके बावज़ूद मुझे अब तक एक व्यक्ति ऐसा नहीं मिला, जो माने कि भारत और अरब का पूरा स्थानीय साहित्य एक अलमारी में रखे यूरोपीय साहित्य के बराबर भी है।…साहित्य की काव्य विधा में भारतीय और अरबी रचनाकार सर्वश्रेष्ठ कहे जाते हैं। लेकिन मैं अब तक इन रचनाकारों के एक भी समर्थक से नहीं मिला जो अरबी, संस्कृत काव्य की तुलना महान यूरोपीय काव्य से कर सके। मैं मानता हूँ कि संस्कृत भाषा की पुस्तकों से जितनी भी ऐतिहासिक जानकारी मिली, वह बहुत कम महत्व की है। इससे ज़्यादा सामग्री तो इंग्लैंड के प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ा दी जाती है। भौतिक और नैतिक दर्शन के मामले में भारत, अरब की स्थिति कमोबेश एक सी है।

तो फिर बात कैसे बने? इसका ज़वाब ये है कि हमें स्थानीय लोगों अनिवार्य रूप से कोई विदेशी भाषा सिखानी होगी। इसमें अंग्रेजी भाषा से संबंधित दावों को बार-बार हवा देना ज़रूरी नहीं है। वह तो पहले से ही प्रतिष्ठित है। हमारी भाषा का मौजूदा साहित्य दुनिया की सभी भाषाओं में 300 साल पहले उपलब्ध सम्मिलित साहित्य से भी बेहतर और ज़्यादा मूल्यवान है। यही नहीं, भारत का शासक वर्ग और सरकारी पदों पर बैठे भारतीय भी अब अंग्रेजी बोलते हैं। पूरे पूर्वी समुद्री इलाके में यह व्यापार-व्यवसाय की भाषा भी बन सकती है। इस तरह हमारे पास यह सोचने की ठोस वज़ह है कि अंग्रेजी भारतीयों के लिए श्रेष्ठ विकल्प होगी। लिहाज़ा अगले प्रश्न ये हैं कि जब हम ऐसी श्रेष्ठ भाषा सिखा सकते हैं तो क्या वे भाषाएँ सिखाएँ, जिनके पास किसी भी विषय में हमारे टक्कर की किताबें नहीं हैं? हम गहरा दर्शन और सच्चा इतिहास पढ़ा सकते हैं, तो क्या ऐसे चिकित्सा सिद्धांतों की शिक्षा दें, जो हमारे लिए ही अपमान का कारण बन जाएँ? ऐसा खगोल विज्ञान सिखाएँ, जो अंग्रेजी आवासीय विद्यालय की लड़कियों के बीच भी हँसी का कारण बने? ऐसा इतिहास बताएँ, जिसमें 30-30 फीट ऊँचे राजा होते हैं और वे 30 हजार साल तक राज करते हैं? या ऐसा भूगोल, जिसमें शीरे या मक्खन के समुद्र होते हैं?

दलील होती है कि हमें स्थानीय आबादी का सहयोग तभी मिल सकता है, जब हम संस्कृत या अरबी भाषा उन्हें शिक्षित करें। जबकि तथ्य बताते हैं कि हमने अरबी और संस्कृत भाषा के विद्यार्थियों पर जो भारी-भरकम खर्च किया, उससे कोई लाभ नहीं हुआ है। जबकि अंग्रेजी शिक्षा लेने वाले विद्यार्थी हमारे लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। यही नहीं, इन भाषाओं के समर्थकों में एक भी विद्यार्थी ऐसा नहीं होगा, जो हमसे वित्तीय मदद लिए बिना इन्हें सीखना, पढ़ना चाहे। यह भी तर्क दिया जाता है कि अरबी और संस्कृत वे भाषाएँ हैं, जिनमें पवित्र पुस्तकें लिखी गईं। इसी कारण ये भाषाएँ सरकार से विशेष प्रोत्साहन की हक़दार हैं। लेकिन क्या सिर्फ़ इसी आधार पर हम ग़लत इतिहास पढ़ाने वाले हैं? ग़लत खगोलशास्त्र और झूठा चिकित्सा विज्ञान भी़? क्या सरकारी खजाने का पैसा हम लोगों को यह सिखाने पर बर्बाद करें कि गुदा में हाथ लग जाने के बाद उसे कैसे शुद्ध करें? या यह सिखाने के लिए कि किसी बकरे की बलि के बाद प्रायश्चित्त के लिए वेदों के कौन से मंत्र बार-बार पढ़ें? क्या ये उचित कहा जाएगा?  

अंत में, मुझे लगता है कि सार्वजनिक धन को कैसे और कहाँ लगाएँ, इसके चुनाव करने के लिए हम स्वतंत्र हैं। हमारे सामने अब स्पष्ट है कि अरबी और संस्कृत भाषा की तुलना में अंग्रेजी से मिलने वाला ज्ञान ज़्यादा कीमती है। यह भी साफ है कि स्थानीय लोग अंग्रेजी के माध्यम से ही पढ़ना चाहते हैं, संस्कृत या अरबी से नहीं। संस्कृत और अरबी भाषाएँ न तो कानूनी और न धार्मिक दृष्टिकोण से उपयुक्त हैं। ऐसे में हमसे प्रोत्साहन पाने का उनका कोई दावा नहीं बनता। वैसे, मैं सभी पक्षों का सम्मान करता हूँ। सबके हितों का ख़्याल भी रखूँगा। लेकिन उस बुरी प्रणाली पर चोट भी करूँगा, जिसे अब तक हमने ही पाला-पोषा है। मैं अरबी और संस्कृत की पुस्तकों की छपाई तुरंत रुकवा दूँगा। कलकत्ता के मदरसे और संस्कृत महाविद्यालय को बंद करूँगा। अगर हम बनारस के संस्कृत महाविद्यालय और दिल्ली के मुसलिम शिक्षा केंद्र को क़ायम रखें, तो मेरे ख्याल से इतना पर्याप्त से ज़्यादा होगा। हालाँकि यहाँ भी मैं सिफ़ारिश करूँगा कि इन केंद्रों को सरकार से वित्तीय मदद न दी जाए। ऐसे प्रयासों से जो धन बचेगा, उसे कलकत्ता के हिंदु महाविद्यालय में अंग्रेजी भाषा से पढ़ने वाले विद्यार्थियों के प्रोत्साहन पर खर्च किया जा सकेगा। साथ ही फोर्ट विलियम और आगरा प्रांतों के अन्य शहरों में ऐसे विद्यालय भी खोले जा सकेंगे।

अलबत्ता, जिनसे मैं असहमत हूँ, उन्हीं से एक बिंदु पर सहमत भी हूँ कि इस समय हम बड़ी संख्या में लोगों को शिक्षित नहीं कर सकते। हमारे संसाधन सीमित हैं। इसलिए हमें पूरे प्रयास अंग्रेजी शिक्षा के जरिए एक वर्ग-विशेष के सृजन में लगाने चाहिए। ऐसा वर्ग, जो रंग-ढंग से भारतीय हो। लेकिन विचार, पसंद-नापसंद, नैतिकता और बौद्धिकता के स्तर पर अंग्रेजों जैसा। वह हमारे और हमसे शासित करोड़ों लोगों के बीच सेतु का काम करे। उन्हें हमारी बात समझाए। हम तक उनकी बात पहुँचाए।

(जारी…..)

अनुवाद : नीलेश द्विवेदी 
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(‘ब्रिटिश भारत’ पुस्तक प्रभात प्रकाशन, दिल्ली से जल्द ही प्रकाशित हो रही है। इसके कॉपीराइट पूरी तरह प्रभात प्रकाशन के पास सुरक्षित हैं। ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ श्रृंखला के अन्तर्गत प्रभात प्रकाशन की लिखित अनुमति से #अपनीडिजिटलडायरी पर इस पुस्तक के प्रसंग प्रकाशित किए जा रहे हैं। देश, समाज, साहित्य, संस्कृति, के प्रति डायरी के सरोकार की वज़ह से। बिना अनुमति इन किस्सों/प्रसंगों का किसी भी तरह से इस्तेमाल सम्बन्धित पक्ष पर कानूनी कार्यवाही का आधार बन सकता है।)
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पिछली कड़ियाँ : 
33. पटना में अंग्रेजों के किस दफ़्तर को ‘शैतानों का गिनती-घर’ कहा जाता था?
33. अंग्रेजों ने पहले धनी, कारोबारी वर्ग को अंग्रेजी शिक्षा देने का विकल्प क्यों चुना?
32. ब्रिटिश शासन के शुरुआती दौर में भारत में शिक्षा की स्थिति कैसी थी?
31. मानव अंग-विच्छेद की प्रक्रिया में हिस्सा लेने वाले पहले हिन्दु चिकित्सक कौन थे?
30. भारत के ठग अपने काम काे सही ठहराने के लिए कौन सा धार्मिक किस्सा सुनाते थे?
29. भारत से सती प्रथा ख़त्म करने के लिए अंग्रेजों ने क्या प्रक्रिया अपनाई?
28. भारत में बच्चियों को मारने या महिलाओं को सती बनाने के तरीके कैसे थे?
27. अंग्रेज भारत में दास प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या जैसी कुप्रथाएँ रोक क्यों नहीं सके?
26. ब्रिटिश काल में भारतीय कारोबारियों का पहला संगठन कब बना?
25. अंग्रेजों की आर्थिक नीतियों ने भारतीय उद्योग धंधों को किस तरह प्रभावित किया?
24. अंग्रेजों ने ज़मीन और खेती से जुड़े जो नवाचार किए, उसके नुकसान क्या हुए?
23. ‘रैयतवाड़ी व्यवस्था’ किस तरह ‘स्थायी बन्दोबस्त’ से अलग थी?
22. स्थायी बंदोबस्त की व्यवस्था क्यों लागू की गई थी?
21: अंग्रेजों की विधि-संहिता में ‘फौज़दारी कानून’ किस धर्म से प्रेरित था?
20. अंग्रेज हिंदु धार्मिक कानून के बारे में क्या सोचते थे?
19. रेलवे, डाक, तार जैसी सेवाओं के लिए अखिल भारतीय विभाग किसने बनाए?
18. हिन्दुस्तान में ‘भारत सरकार’ ने काम करना कब से शुरू किया?
17. अंग्रेजों को ‘लगान का सिद्धान्त’ किसने दिया था?
16. भारतीयों को सिर्फ़ ‘सक्षम और सुलभ’ सरकार चाहिए, यह कौन मानता था?
15. सरकारी आलोचकों ने अंग्रेजी-सरकार को ‘भगवान विष्णु की आया’ क्यों कहा था?
14. भारत में कलेक्टर और डीएम बिठाने की शुरुआत किसने की थी?
13. ‘महलों का शहर’ किस महानगर को कहा जाता है?
12. भारत में रहे अंग्रेज साहित्यकारों की रचनाएँ शुरू में किस भावना से प्रेरित थीं?
11. भारतीय पुरातत्व का संस्थापक किस अंग्रेज अफ़सर को कहा जाता है?
10. हर हिन्दुस्तानी भ्रष्ट है, ये कौन मानता था?
9. किस डर ने अंग्रेजों को अफ़ग़ानिस्तान में आत्मघाती युद्ध के लिए मज़बूर किया?
8.अंग्रेजों ने टीपू सुल्तान को किसकी मदद से मारा?
7. सही मायने में हिन्दुस्तान में ब्रिटिश हुक़ूमत की नींव कब पड़ी?
6.जेलों में ख़ास यातना-गृहों को ‘काल-कोठरी’ नाम किसने दिया?
5. शिवाजी ने अंग्रेजों से समझौता क्यूँ किया था?
4. अवध का इलाका काफ़ी समय तक अंग्रेजों के कब्ज़े से बाहर क्यों रहा?
3. हिन्दुस्तान पर अंग्रेजों के आधिपत्य की शुरुआत किन हालात में हुई?
2. औरंगज़ेब को क्यों लगता था कि अकबर ने मुग़ल सल्तनत का नुकसान किया? 
1. बड़े पैमाने पर धर्मांतरण के बावज़ूद हिन्दुस्तान में मुस्लिम अलग-थलग क्यों रहे?

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