विजय मनोहर तिवारी की पुस्तक, ‘भोपाल गैस त्रासदी: आधी रात का सच’ से, 17/1/2022
मध्यप्रदेश में अर्जुनसिंह को एक रहमदिल और मददगार नेता मानने वाले मीडिया में भी कम नहीं हैं। कई वरिष्ठ साथी अपने अनुभव से उदाहरण भी गिनाते हैं। किसी गरीब की बेटी की शादी का प्रसंग हो, किसी जरूरतमंद को नौकरी की दरकार हो या किसी बीमार आदमी को इलाज की जरूरत। ऐसे नितांत निजी मामलों की जानकारी मिलते ही वे बतौर मुख्यमंत्री खुद दिलचस्पी लेकर फौरन मदद दिलाने में कभी पीछे नहीं रहते थे। ऐसे अनगिनत किस्से लोगों को याद हैं कि उन्होंने किस-किस तरह से लोगों को वक्त जरूरत मदद दिलाई। लेकिन उनकी छवि का यह उजला और प्रेरक पहलू उस तस्वीर से कतई मेल नहीं खाता, जो गैस हादसे में दुनिया के सामने आई। उन जैसे मानवीय और संवेदनशील नेता से ऐसे बुरे वक्त अगर ज्यादा अपेक्षाएं की जाती हैं तो गलत क्या है?
आखिर हादसे के वक्त मध्यप्रदेश की जनता के वे सर्वोच्च प्रतिनिधि थे। उनकी जिम्मेदारी थी कि वे कानून का सही पालन सुनिश्चित कराते और हादसे के शिकार लोगों की मदद के लिए पूरी ताकत झोंक देते। वे ऐसा नहीं कर पाए थे। इसके उलट उन्होंने हादसे के पांचवें दिन अमेरिका से भोपाल आए यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन के चेयरमैन वॉरेन एंडरसन को सारे कानून-कायदों की धज्जियाँ उड़ाते हुए बाइज्जत भोपाल से जाने का रास्ता साफ किया था। जब भोपाल लाशों का ढेर बना था, तब वे राजीव गांधी के साथ लोकसभा चुनाव प्रचार अभियान में हिस्सा ले रहे थे। उनके कलेक्टर व एसपी एंडरसन के निजी नौकरों की तरह तैनात किए गए थे।
… अर्जुन सिंह की तरफ मीडिया का ध्यान अचानक नहीं गया। हुआ यह कि एक टीवी चैनल ने तब के अदालत के इस फैसले के वक्त अर्जुनसिंह की तरफ ही ‘काबिल’ कलेक्टर मोतीसिंह से बात कर ली, जो रिटायर होने के बाद भोपाल में ही बसे हैं। सिंह साहब ने फरमाया कि उन्होंने यूनियन कार्बाइड के चेयरमैन को तत्कालीन मुख्य सचिव के कहने पर छोड़ा था। तब मुख्य सचिव थे ब्रह्मस्वरूप, जो अब जीवित नहीं हैं। इसलिए उनकी प्रतिक्रिया इस समय मुमकिन नहीं थी। लेकिन कलेक्टर का यह कुबूलनामा चर्चा का विषय बन गया। अब टीवी न्यूज चैनलों का भीड़-भड़क्का दिल्ली के अकबर रोड के अपने बंगले में वक्त काट रहे 78 साल के अर्जुनसिंह के सिर पर मंडराने लगा।
सच जाहिर करने के लिए अर्जुनसिंह सामने नहीं आए। लोकतंत्र सैद्धांतिक तौर पर भले ही जनता का, जनता के द्वारा और जनता के लिए हो, लेकिन जनता की क्या औकात जो इनसे सवाल पूछ सके। सच हो या झूठ वे अपनी सुविधा के मुताबिक ही कहेंगे। कुंअर साहब एक दिन प्रकट हुए। उनके ताजे दृश्य टीवी पर दिखाई दिए। वे दस जनपथ गए। सोनिया गांधी से मिलने। इस मौके पर ऐसा कोई विषय था नहीं, जिस पर बात करने वे यूपीए की शक्तिशाली चेयरपर्सन के पास आए हों। न तो देश में कोई भूचाल आया था, न समाज में कोई ऐसा खतरा पैदा हुआ था, जो कांग्रेस ने अपने इस सबसे अनुभवी और बुजुर्ग नेता को जनहित में राय-मशविरे के लिए बुलाया हो। ऐसा कुछ नहीं हुआ था। हुआ भी होता तो शायद दस जनपथ को उनकी राय कोई अहमियत नहीं रखती थी। वे शायद ही ऐसे किसी आपात अवसर पर बुलाए जाते।
…खामोश और बीमार अर्जुनसिंह दिल्ली में अपने बंगले से बाहर निकले। टीवी कैमरों ने उन्हें दस जनपथ में हाजिरी देते देखा। वे बोले कुछ नहीं। जो भी बोले दस जनपथ के भीतर बोले। भले ही यह सच न हो, लेकिन मीडिया में उनकी चुप्पी का अंदाज यह लगाया गया कि वे सौदा करने ही गए होंगे।…
दस जनपथ यानी सोनिया गांधी का सरकारी निवास सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस की परम शक्तिपीठ। नए से नए पत्रकारों ने भी अर्जुनसिंह की इस परिक्रमा के एक जैसे अर्थ लगाए। अर्जुनसिंह की कार्यशैली से वाकिफ भोपाल के जानकार पत्रकारों की आम राय थी कि वे जरूर सौदेबाजी करेंगे और अब अपनी खामोशी की तगड़ी कीमत वसूल करना चाहेंगे। कुछ लोगों का आकलन था कि वे अपने पारिवारिक राजनीतिक रसूख को बनाए रखने के लिए कुछ चाहेंगे। यह तो साफ था कि गैस हादसे में उनकी चुप्पी टूटी तो कांग्रेस के लिए कष्टकारी हो सकती है, क्योंकि जो पहला नाम सामने आएगा, वो राजीव गांधी का होगा।
उस दिन दस जनपथ से लौटकर अर्जुन फिर अपने खामोशी के खोल में चले गए। इधर भोपाल का मीडिया मोतीसिंह को ढूंढ रहा था कि वे ही कुछ उगलें। दोनों सिंह अपनी-अपनी मांद में थे। न उधर उन्होंने उगला, न इधर इन्होंने कुछ कहा। लेकिन यह मामला सुलग गया।…
(जारी….)
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(नोट : विजय मनोहर तिवारी जी, मध्य प्रदेश के सूचना आयुक्त, वरिष्ठ लेखक और पत्रकार हैं। उन्हें हाल ही में मध्य प्रदेश सरकार ने 2020 का शरद जोशी सम्मान भी दिया है। उनकी पूर्व-अनुमति और पुस्तक के प्रकाशक ‘बेंतेन बुक्स’ के सान्निध्य अग्रवाल की सहमति से #अपनीडिजिटलडायरी पर यह विशेष श्रृंखला चलाई जा रही है। इसके पीछे डायरी की अभिरुचि सिर्फ अपने सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक सरोकार तक सीमित है। इस श्रृंखला में पुस्तक की सामग्री अक्षरश: नहीं, बल्कि संपादित अंश के रूप में प्रकाशित की जा रही है। इसका कॉपीराइट पूरी तरह लेखक विजय मनोहर जी और बेंतेन बुक्स के पास सुरक्षित है। उनकी पूर्व अनुमति के बिना सामग्री का किसी भी रूप में इस्तेमाल कानूनी कार्यवाही का कारण बन सकता है।)
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श्रृंखला की पिछली कड़ियाँ
20. आप क्या सोचते हैं? क्या नाइंसाफियां सिर्फ हादसे के वक्त ही हुई?
19. सिफारिशें मानने में क्या है, मान लेते हैं…
18. उन्होंने सीबीआई के साथ गैस पीड़तों को भी बकरा बनाया
17. इन्हें ज़िन्दा रहने की ज़रूरत क्या है?
16. पहले हम जैसे थे, आज भी वैसे ही हैं… गुलाम, ढुलमुल और लापरवाह!
15. किसी को उम्मीद नहीं थी कि अदालत का फैसला पुराना रायता ऐसा फैला देगा
14. अर्जुन सिंह ने कहा था- उनकी मंशा एंडरसन को तंग करने की नहीं थी
13. एंडरसन की रिहाई ही नहीं, गिरफ्तारी भी ‘बड़ा घोटाला’ थी
12. जो शक्तिशाली हैं, संभवतः उनका यही चरित्र है…दोहरा!
11. भोपाल गैस त्रासदी घृणित विश्वासघात की कहानी है
10. वे निशाने पर आने लगे, वे दामन बचाने लगे!
9. एंडरसन को सरकारी विमान से दिल्ली ले जाने का आदेश अर्जुन सिंह के निवास से मिला था
8.प्लांट की सुरक्षा के लिए सब लापरवाह, बस, एंडरसन के लिए दिखाई परवाह
7.केंद्र के साफ निर्देश थे कि वॉरेन एंडरसन को भारत लाने की कोशिश न की जाए!
6. कानून मंत्री भूल गए…इंसाफ दफन करने के इंतजाम उन्हीं की पार्टी ने किए थे!
5. एंडरसन को जब फैसले की जानकारी मिली होगी तो उसकी प्रतिक्रिया कैसी रही होगी?
4. हादसे के जिम्मेदारों को ऐसी सजा मिलनी चाहिए थी, जो मिसाल बनती, लेकिन…
3. फैसला आते ही आरोपियों को जमानत और पिछले दरवाज़े से रिहाई
2. फैसला, जिसमें देर भी गजब की और अंधेर भी जबर्दस्त!
1. गैस त्रासदी…जिसने लोकतंत्र के तीनों स्तंभों को सरे बाजार नंगा किया!