Mayavi Amba-39

‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह कुछ और सोच पाता कि उसका भेजा उड़ गया

ऋचा लखेड़ा, वरिष्ठ लेखक, दिल्ली

“अब तो ये दो हो गई हैं। सुना है कि वह बागी लड़की भी यहीं कहीं हैं।”

“हमें उन दोनों को पकड़ना ही होगा। भले वे दोनों असल डायनें न हों, मगर जो उनसे जुड़ीं तरह-तरह की बातें चल रही हैं, वे कारोबारी माहौल के लिए अच्छी नहीं हैं। अगर ऐसे खतरनाक लोग खुले घूमेंगे तो कौन आना चाहेगा यहाँ? इससे लोगों में डर पैदा होता है। कारोबारी माहौल के लिए तो यह बहुत ही बुरा है।” मैडबुल गुस्से से उबल रहा था।

“लोग बताते हैं कि वह फूका है, ओझन। उसकी माँ भी वैसी ही थी।”

“क्या कोई अब भी इस बूढ़े पर यकीन करता है।”

“शंका करना बंद करो। यदि किसी चीज का वास्तविक असर होता है, तो वह असली ही है।

“क्या किसी ने भी उसे देखा है कभी?”

“नहीं।”

“मैं एक शख्स को जानता हूँ, जिसने उसके बारे में सुना है।”

“मेरी माँ ने तो उसे देखा है।”

“क्या सच में?”

“सफेद बाल, जहरीले दाँत, लंबे-लंबे नाखून। उसे देखते ही वह भीतर तक काँप गई थी।”

“मेरे काका ने भी उसे एक बार देखा था। वह बहुत दुबली-पतली है। उसके बड़े-बड़े हाथ हैं। शरीर पर कई जगह जख्मों के निशान हैं। खुरदुरे से पैर हैं—”

“ये तो अपनी बीवी के बारे में बता रहा है।” इतना सुनते ही सबकी हँसी छूट गई।

“कोई नहीं जानता कि वह कहाँ रहती है!”

“तुम्हारे पास क्या खबर है? तुमने जो मुझे बताया था, वह कर्नल को बताओ।”

“क्या बात है? उसके पास ऐसी क्या जरूरी खबर है, जो वह बताना चाहता है।”

“सुशीतल को कुछ कहना है। उसे मालूम है कि वह डायन कहाँ मिल सकती है।”

“नहीं, नहीं! मैंने ऐसा नहीं कहा था – मुझे कैसे पता हो सकता है! तुमने एकदम गलत समझ लिया!”

“सुनो लड़के, इसमें कोई शक नहीं कि तुम कुछ कहना चाहता हो, लेकिन डर के कारण तुमने आखिर में बात घुमा दी। क्योंकि तुम्हारे भीतर सच बोलने का साहस नहीं है। तुम कायर हो।”

“इधर आओ। बताओ, तुम हमें क्या बताना चाहते हो?”

“कोई खास बात नहीं है।”

“बताओ आखिर क्या बात है, जो तुम्हें खास नहीं लगती?”

“सच कहता हूँ। जिस औरत के बारे में आप लोग पूछताछ कर रहे हैं, उससे अब मेरा कोई वास्ता नहीं….। मेरा मतलब है कि हमारा काम गैरकानूनी नहीं है— ”

“डरो मत! बताओ! संकोच मत करो! तुम बस हमारी मदद कर रहे हो, जैसे पहले भी कर चुके हो।”

“पहले मेरे एक औरत के साथ संबंध थे। उसने बताया था कि वह डायन के साथ कोई व्यापार करती थी। वह उसे कोई सामान बेचती थी। बदले में वह उसे काफी पैसे दिया करती थी। मेरा ख्याल है, उसे पक्के तौर पर पता होगा कि वह कहाँ मिलेगी!”

“किस तरह का व्यापार था उनके बीच?”

“मैं जो भी जानता हूँ, वह उसका बताया कोरा झूठ भी हो सकता है। ऐसी औरतों की कोई बात भरोसे की नहीं होती। वह ऐसा दिखाती थी जैसे वह उसे माँस बेचा करती थी। लेकिन मेरा ख्याल है, वह झूठ बोलती थी। मेरा मतलब है, कोई डायन एक वेश्या से माँस क्यों ही खरीदेगी भला?”

उसकी बात सुनकर सब हँसने लगे।

“शायद इसलिए कि पहाड़ों पर मौसम बहुत ठंडा हो जाता है।”

“मगर मैं जो भी जानता था, सब बता दिया। इसके लिए अपनी जान पर जोखिम मोल लिया है। अपनी जिंदगी को खतरे में डाला है”, सुशीतल ने कहा। तभी मथेरा ने कुछ बोलने के लिए मुँह खोला। लेकिन उसे अँगुली के इशारे से रोक दिया गया। जैसे कोई चेतावनी दी गई हो। सुशीतल इस हरकत को अनदेखा कर गया।

“ओह.. तो तुम्हें इनाम चाहिए? बताओ, क्या इनाम चाहिए तुम्हें?”

“बस, सोने की एक खदान का लाइसेंस मिल जाता तो…, हमारे पहाड़ों में कितना सोना है, अब तो सब जानते ही हैं।” सुशीतल के चेहरे पर धूर्त मुस्कुराहट फैल गई।

उधर, मैडबुल के चेहरे पर भी वैसी ही मुसकान फैली लेकिन वह उसे देख नहीं पाया। पलक झपकते ही उसका चेहरा भयावह हो गया था। यह देख सुशीतल तुरंत भाँप गया कि उसके शब्द उसकी जिंदगी की सबसे बड़ी गलती साबित होने वाले हैं। आखिरी गलती। इस एहसास के साथ ही वह कुछ और सोच पाता कि उसका भेजा उड़ गया। वह उस बंदूक को देख तक नहीं पाया, जिससे निकले बारूद ने उसे निशाना बनाया। मैडबुल की नशीली आँखों में एक क्षण के लिए जैसे दो चिंगारियाँ चमकीं और फिर बुझकर राख हो गईं।

इसके बाद रेजीमेंट की गाड़ियाँ वापस लौटनी शुरू हो गईं। अचानक तभी कहीं से कोरल प्रकट हो गई और उसने उन गाड़ियों का रास्ता रोक लिया। यह देख एक सिपाही ने अपनी बंदूक तान ली। तारा तुरंत उस तरफ लपकी। अपनी गाय को बचाने के लिए वह सैनिकों से भिड़ गई लेकिन तब तक कुछ सैनिकों ने कोरल के गले में रस्सी का फंदा डाल दिया। उसे एक गाड़ी के पीछे बाँध दिया और घसीटकर ले जाने लगे। रोती हुई तारा गिड़गिड़ाने लगी। उन सैनिकों से उसे बख्श देने की भीख माँगने लगी।

“यह मेरी कोरल है, मालिक। कृपा कर के इसे छोड़ दो। हमारे पास वैसे भी कुछ नहीं बचा है अब। इसके बिना मैं अपने बच्चों का पेट कैसे भरूँगी। हम भूखे मर जाएँगे। आपके भी बच्चे होंगे मालिक, आपको उनका वास्ता। ऐसा मत करो।” मैडबुल ने उस गाय को छोड़ दिया और तारा से सवाल करने लगा।

“क्या ये तुम्हारी है?”

“जी मालिक, यह मेरे बच्चों के लिए दूध देती है। मेरे पास अब और कुछ नहीं बचा है मालिक।”

तभी एक सिपाही ने अपनी बंदूक की नली गाय की ओर घुमा दी।

“बेवकूफ, क्या कर रहा है?” मैडबुल ने उसे जोर से डाँट दिया।

“देखने से तो ये पागल जानवर लगती है।”

“ये बहुत सुंदर है।”

“माफ कीजिए कर्नल, गलती हो गई। ये बहुत ही सुंदर है।”

गाय मैडबुल को एकटक देखे जा रही थी। यंत्रवत् जुगाली भी करती जा रही थी।

“कल्पना करना भी मुश्किल है कि एक पवित्र जानवर में कैसा तेज होता है”, मैडबुल ने कुछ अचंभित सा होते हुए कहा। “तुम्हें ऐसे जानवरों से मिलने वाले फायदों की प्रशंसा करनी चाहिए। इन्हें कुछ भी खाने-पीने को दे दो, ये रह लेते हैं। इतना ही नहीं, बदले में हमें शुद्ध दूध देते हैँ। सीधे-सादे तो इतने दिखते हैं कि इन्हें देखने भर से दुश्मन तक का गुस्सा शांत हो जाए। चतुर, फुरतीले और ताकतवर ऐसे कि अगर ये मरना न चाहें तो कोई इन्हें पकड़कर मार नहीं सकता।”

तारीफ करते-करते ही मैडबुल ने अचानक बंदूक निकाल ली। निशाना साधा और गाय पर गोली चला दी।

गोली सीधे कोरल के सिर के बीचों-बीच लगी। खून की लाल धार बह निकली। इस वार से वह लड़खड़ाई लेकिन आश्चर्य कि नीचे गिरी नहीं। उसने न ही मैडबुल के चेहरे से अपनी आँखें हटाईं। इसके बाद तो उस पर एक के बाद एक गोलियों की जैसे बौछार ही हो गई। इसका नतीजा वही हुआ, जो हो सकता था। वह पहले झुकी और फिर जमीन पर ढेर हो गई। यह सब देख तारा स्तब्ध रह गई। वह हाथों से अपने सिर को पकड़कर बुरी तरह झिंझोड़ने लगी। विलाप करने लगी। उसके पास और कोई चारा भी नहीं था।

“मेरा मानना है कि अगर तुम किसी को मारना चाहते हो तो मार दो। अर्जी मत लिखो कि उतने में उसे अपने बचाव का वक्त मिल जाए। सीधे ठोक दो।”

मैडबुल अब गाड़ी से उतर आया था। बाहर आकर वह उस मरते हुए जानवर के सामने खड़ा हो गया। उसकी बंद होती आँखों में झाँकने लगा वह। शायद चाहता था कि दम तोड़ते समय गाय उसे अच्छी तरह देख ले और ध्यान रखकर जाए कि उसे किसने मौत की नींद सुलाया है।

कोरल ने भी आखिरी दम भरने से पहले अपना ऊपरी ओंठ भीतर की ओर मोड़ लिया। स्पष्ट रूप से यह उसकी चेतावनी थी। मानो वह भी मैडबुल का घृणित चेहरा अपनी यादों में रखकर ले जाना चाहती थी।

#MayaviAmbaAurShaitan

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(नोट :  यह श्रृंखला एनडीटीवी की पत्रकार और लेखक ऋचा लखेड़ा की ‘प्रभात प्रकाशन’ से प्रकाशित पुस्तक ‘मायावी अंबा और शैतान’ पर आधारित है। इस पुस्तक में ऋचा ने हिन्दुस्तान के कई अन्दरूनी इलाक़ों में आज भी व्याप्त कुरीति ‘डायन’ प्रथा को प्रभावी तरीक़े से उकेरा है। ऐसे सामाजिक मसलों से #अपनीडिजिटलडायरी का सरोकार है। इसीलिए प्रकाशक से पूर्व अनुमति लेकर #‘डायरी’ पर यह श्रृंखला चलाई जा रही है। पुस्तक पर पूरा कॉपीराइट लेखक और प्रकाशक का है। इसे किसी भी रूप में इस्तेमाल करना कानूनी कार्यवाही को बुलावा दे सकता है।) 
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पुस्तक की पिछली 10 कड़ियाँ 

38- मायावी अम्बा और शैतान : वे तो मारने ही आए थे, बात करने नहीं
37 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : तुम्हारे लोग मारे जाते हैं, तो उसके जिम्मेदार तुम होगे
36 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’: ऐसा दूध-मक्खन रोज खाने मिले तो डॉक्टर की जरूरत नहीं
35- ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : इत्तिफाक पर कमजोर सोच वाले लोग भरोसा करते हैं
34- ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : जो गैरजिम्मेदार, वह कमजोर कड़ी
33- ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह वापस लौटेगी, डायनें बदला जरूर लेती हैं
32- ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह अचरज में थी कि क्या उसकी मौत ऐसे होनी लिखी है?
31- ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : अब वह खुद भैंस बन गई थी
30- ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : खून और आस्था को कुरबानी चाहिए होती है 
29- ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : मृतकों की आत्माएँ उनके आस-पास मँडराती रहती हैं

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