Mayavi Amba-76

‘मायावी अम्बा और शैतान’ : डायन को जला दो! उसकी आँखें निकाल लो!

ऋचा लखेड़ा, वरिष्ठ लेखक, दिल्ली

“गए, गायब हो गए! सब गायब हो गए!” एक आदमी खाली जगह की ओर इशारा करते हुए बेवकूफों की तरह बड़बड़ाने लगा। एक क्षण पहले जो परिवार घुटने टेके हुए वहाँ बैठे थे, सब कहीं गायब हो चुके थे।

उनमें से हर कोई — हवा में लापता हो गया था!

“ये..ये… क्या जादू है?!”

“लेकिन यह कैसे हो सकता है? अभी-अभी तो वे सब यहीं थे!”

“चुड़ैल आखिर यहाँ आ ही गई! कोई और कारण नहीं हो सकता।”

एक आदमी तो जमीन पर घुटनों के बल बैठकर रोने ही लगा।

“यह डायन ही है, जो जादू-टोना कर रही है!”

“देखो, देखो — वो रही!”

“हे भगवान हमें बचा लो—”

“अरे ये क्या …—”

“मैंने उसके होंठ हिलते हुए देखे! वह हमें श्राप दे रही है!”

“जला दो उसे! जला दो!”

“चुप रहो! पहले मैं उसके जादू-टोने को ही खत्म करता हूँ! मैं उसकी जीभ निकाल लूँगा, ताकि वह किसी को श्राप न दे सके। लेकिन मैं उसकी आँखें नहीं निकालूँगा। मैं चाहता हूँ कि वह अपने लोगों को अपनी आँखों के सामने जिंदा जलाए जाते हुए देखे—!” मथेरा ने झूठी बहादुरी दिखाते हुए कहा।

“नहीं, नहीं… डायन को जला दो! उसकी आँखें निकाल लो! उसके होंठ देखो, कैसे हिल रहे हैं!”

“वह हमें श्राप दे रही है!”

“वह शैतान को बुला रही है — हाँ, वह यही करने वाली है। मार डालो उसे.. मार दो—!”

उधर, अंबा को ऐसी विचित्र अनुभूति हुई जैसे एक ही समय में उसकी चेतना दो हिस्सों में बँट गई हो। उसके मुँह से शब्द निकले – मगर उस आवाज, उन शब्दों को वह पहचानती नहीं थी। उसी के साथ एक और आवाज भी आई, जिसे वह पहचान गई। वह उसी की आवाज थी, जो धीरज-संयम से काम लेने की विनती कर रही थी। 

उसके दिमाग में भी बदलाव हुआ। कोई बड़ा बदलाव। फिर उसने जो देखा, वह किसी और चीज में बदल गया। उसने अपनी पलकें झपकाईं। देखने में उसे वह सब जैसा लग रहा था, वास्तव में वैसा था नहीं। वह पूरी तरह से उनकी दुनिया में उतर गई थी। वह कोई और ही दुनिया थी। ऐसी दुनिया जहाँ इंसानों का नाम-ओ-निशान तक नहीं था। उसका दम घुटने लगा। इस तरह कि मानो वह अपने भीतर आधी नींद में सोए शैतान को जगाने से डर रही हो।

हर साँस के साथ उसकी घुटी-घुटी सी चीखें निकल रही थीं। उसे ऐसा लग रहा था, जैसे वह किसी जीव के नारंगी ऊतक की पीठ पर खड़ी हो और अपने भीतर सोए जल्लाद के जगाने का इंतज़ार कर रही हो। अनिष्टकारी धुंध के नीचे से बदबू बढ़ती जा रही थी। मौसम बदलते ही सूरज की आभा कमजोर होने पर जिस तरह की बीमारियाँ उभरकर फैलती हैं, वे सब सिर उठाने को तैयार हो रही थीं।

उस पर जो क्रोध हावी हो रहा था, वह भयानक था। वह क्रोध खुद उसके लिए भी अनजान था। वह खुद भी इसे नहीं पहचानती थी। मगर अभी उसी आक्रोश से वह बुरी तरह काँप रही थी। गुस्से ने उसे चारों तरफ से घेर रखा था। वह जल्दी ही इस गुस्से में अंधी होने वाली थी। उसके भीतर का वह क्रोधरूपी शैतान तब तक सिर उठाने वाला था, तब तक बढ़ने वाला था, जब तक वह पूरी तरह आजाद नहीं हो जाता।

उसके भीतर बहुत कुछ बदल गया था। अब उसे अजीब-अजीब सी जरूरतें अपने भीतर से उभरती हुए महसूस होने लगीं। किसी का खून पी जाने, किसी को मारकर खा जाने की जरूरतें।

बुलाए जाने पर आने के सिवाय उनके (भीतर की अलौकिक शक्तियाँ) सामने भी कोई चारा नहीं था।

लेकिन वे कभी अकेली नहीं आतीं।

वे अपने साथ अन्य चीजों को भी घसीट लातीँ हैं, अग्नि-परीक्षा समारोह में भाग लेने के लिए।

————

# अग्नि-परीक्षा समारोह #

जब उसने हमें बुलाया, तो हमारे पास आने के अलावा कोई चारा नहीं था।

लेकिन हम कभी अकेले नहीं आते। अग्नि-परीक्षा समारोह में भाग लेने के लिए हम अपने साथ दूसरी चीजों को भी घसीट लाते हैं।

हम अब शिकार करने के लिए पूरी तरह तैयार थे। हमारे दिमाग में कठोरता, कभी न झुकने वाली भावना तथा बदला लेने का विचार पूरी तरह से हावी हो चुका था। अब किसी और चीज के लिए उसमें गुंजाइश नहीं थी।

उसने हमें उसकी सच्चाई उजागर करने के लिए बुलाया था। उसके आदेश में कोई अस्पष्टता नहीं थी। हम भी पहले से ही तैयार थे पूरी तरह, और भूखे भी।

लेकिन उसकी सच्चाई का वेग कुछ ज्यादा ही तीव्र होने वाला था। इतना कि उसे सँभालने के लिए अभी हमें भी बहुत संघर्ष करना पड़ेगा। 

#MayaviAmbaAurShaitan

—-

(नोट :  यह श्रृंखला एनडीटीवी की पत्रकार और लेखक ऋचा लखेड़ा की ‘प्रभात प्रकाशन’ से प्रकाशित पुस्तक ‘मायावी अंबा और शैतान’ पर आधारित है। इस पुस्तक में ऋचा ने हिन्दुस्तान के कई अन्दरूनी इलाक़ों में आज भी व्याप्त कुरीति ‘डायन’ प्रथा को प्रभावी तरीक़े से उकेरा है। ऐसे सामाजिक मसलों से #अपनीडिजिटलडायरी का सरोकार है। इसीलिए प्रकाशक से पूर्व अनुमति लेकर #‘डायरी’ पर यह श्रृंखला चलाई जा रही है। पुस्तक पर पूरा कॉपीराइट लेखक और प्रकाशक का है। इसे किसी भी रूप में इस्तेमाल करना कानूनी कार्यवाही को बुलावा दे सकता है।) 

—-

पुस्तक की पिछली 10 कड़ियाँ

75 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : डायन का अभिशाप है ये, हे भगवान हमें बचाओ!
74 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : किसी लड़ाई का फैसला एक पल में नहीं होता
73 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : मैडबुल दहाड़ा- बर्बर होरी घाटी में ‘सभ्यता’ घुसपैठ कर चुकी है
72 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’: नकुल मर चुका है, वह मर चुका है अंबा!
71 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’: डर गुस्से की तरह नहीं होता, यह अलग-अलग चरणों में आता है!
70 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’: आखिरी अंजाम तक, क्या मतलब है तुम्हारा?
69 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’: जंगल में महज किसी की मौत से कहानी खत्म नहीं होती!
68 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’: मैं उसे ऐसे छोड़कर नहीं जा सकता, वह मुझसे प्यार करता था!
67 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : उस वासना को तुम प्यार कहते हो? मुझे भी जानवर बना दिया तुमने!
66 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : उस घिनौने रहस्य से परदा हटते ही उसकी आँखें फटी रह गईं

सोशल मीडिया पर शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *