ऋचा लखेड़ा, वरिष्ठ लेखक, दिल्ली
आकाश रक्तिम हो रहा था। स्तब्ध ग्रामीणों पर किसी दु:स्वप्न की तरह छाया हुआ था। साँकल के पीछे प्रोपेन गैस के टैंक रखे थे, जो गंभीर परिणामों का संकेत दे रहे थे। ग्रामीणों से भयावना वादा कर रहे थे।
“बर्बर होरी घाटी में सभ्यता घुसपैठ कर चुकी है। शापित चुड़ैलों के आतंक का अंत हो गया है!!”
रोजी मैडबुल दहाड़ा। उसकी मुटिठयाँ बँधी हुईं थीं। वह गरज रहा था। उसने बड़ी टोपी पहन रखी थी, जो उसकी लंबाई और उसके कंधों की चौड़ाई बढ़ा रही थी। उसके चेहरे से क्रूरता और अमानवीयता झलक रही थी। लोगों के हुजूम को संबोधित करते हुए वह ऐसा लग रहा था, जैसे उसका मुँह और आँखें आग उगल रही हों। उसके आदमियों के दिलों में भी हत्याओं ही हवश, मूर्खता, कामवासना, क्रूरता और लालच भरी हुई थी।
“सभी को पता होना चाहिए कि बूढ़ी डायन को बहुत दर्दनाक मौत मिली है। वह ऐसी ही मौत की हकदार थी।” क्रूरता भरी खुशी के साथ मैडबुल ने ऐलान किया। उसकी घोषणा ने वहाँ मौजूद उसके लोगों को और आक्रामकता से भर दिया। युद्ध उन्माद में भरे हुए वे खून के प्यासे लोग गरजने लगे।
इसके बाद मथेरा ने सभी को पटाला की कटी हुई अँगुलियाँ दिखाईं। यह देख बंधक ग्रामीणों के चेहरों पर आतंक की स्पष्ट रेखाएँ नजर आने लगीं। लेकिन मैडबुल के समर्थक खुशी से तालियाँ पीटने लगे। बल्कि वे तो अपने घरों में सजाकर रखने के लिए ऐसी कुछ निशानियाँ माँगने ही लगे।
“वह धोखेबाज लड़की, खुद को डायन कहती है। उस झूठी और मक्कार लड़की का भी यही हाल होगा—!”
“मैं, रोजी मैडबुल, तुम सबसे वादा करता हूँ कि उसकी मौत का तमाशा बड़ा होगा। इतना बड़ा कि तुम लोग जिंदगी भर नहीं भूल पाओगे। और हाँ, ये भी कभी मत भूलना कि यह मैडबुल की दुनिया है। यहाँ अगर तुम मेरे कायदे-कानून के मुताबिक नहीं चले, तो उन्हीं के अनुसार तुम्हें मरना होगा।”
उसकी इस धमकी में क्रूरता और भयावहता झलक रही थी।
“इन जंगली लोगों ने हमारा और हमारे परिवारों का जीवन तथा हमारे व्यापार-व्यवसाय को खतरे में डाल दिया है। लेकिन अब और नहीं। ये बचे हुए कीड़े-मकोड़े भी जल्दी ही खत्म कर दिए जाएँगे। ये अपने सामने तुम लोग जिन्हें देख देख रहे हो, ये इंसान की खाल में जानवर हैं। इनके पास पूजने के लिए कोई ढंग के देवता तक नहीं हैं। फिर भला इनकी मौत सभ्य क्यों होनी चाहिए? इन्हें जानवरों की मौत ही मरना चाहिए। ये किसी भी तरह से दया के हकदार नहीं हैं।”
उसकी बात सुनकर भयभीत ग्रामीण रोने-चीखने लगे।
महिलाएँ छाती पीटने लगीं। पुरुष उस बदकिम्मत नतीजे की आशंका से दहशतजदा हो गए, जो उनके करीब आ रहा था। कई भयग्रस्त ग्रामीण तो मैडबुल के वहशी सैनिकों के कदमों में लोट गए। दया और माफी की भीख माँगने लगे। लेकिन बदले में उन्हें मिली सिर्फ जूतों की ठोकरें। उन्होंने उन्हें फिर धकेल दिया।
“बंदूक से उड़ा देंगे उस चुड़ैल को हम। इस तरह से उसका गला फाड़ेंगे कि वह श्राप दे ही न सके। उसकी आँखें निकाल ली जाएँगीं। जिससे कि वह किसी को न देख सके। जिस्म से उसका दिल निकालकर भून दिया जाएगा, ताकि वह वह फिर कभी साँस न ले सके—!”
मैडबुल ने बड़े चाव से हत्या की पूरी प्रक्रिया बताई। फिर उसने उसी उत्साह से बताया कि पुराने जमाने की तोप के मुहाने पर अंबा को पीठ के बल बाँधा जाएगा। इसके बाद जब तोप से गोला दागा जाएगा तो उसका सिर हवा में करीब 40-50 फीट उछलेगा। उसकी दाईं और बाईं भुजाएँ भी हवा में उड़तीं नजर आएँगीं। ऐसे ही उसके शरीर के अलग-अलग हिस्से हवा में उड़ते हुए करीब 100 गज दूर जाकर गिरेंगे। बस, पैर तोप के नीचे जमीन पर गिर जाएँगे।
इसके बाद औपचारिकताओं के प्रति हमेशा सजग रहने मैडबुल ने बगावत की निंदा करते हुए छोटा सा भाषण दिया। अपनी सरकार और अपने लोगी की प्रशंसा की। होरी पर्वत की शान को फिर सही तरीके से बहाल करने की अपनी योजना के बारे में भी कुछ बातें कहीं।
फिर कैद ग्रामीणों को घुटनों के बल बिठाकर उन्हें जबरन रेजीमेंट का झंडा चूमने के लिए कहा गया। उनमें डर बनाए रखने के लिए लोहे की जंजीरों का शोर लगातार किया जाता रहा। कंधों से उतारकर बंदूकें उनके सामने तान दी गईं। यहाँ तक कि बेवजह हवा में गोलियाँ भी दागी गईं। फिर सभी बंधकों को एक गोदाम में बनाए गए अस्थाई कैदखाने में ठूँस दिया गया। ताकि आसानी से उन्हें काबू किया जा सके।
गोदाम के भीतर हालात बहुत अच्छे नहीं थे। बहुत हल्की सी रोशनी थी वहाँ। इतने सारे लोगों को ठूँसने के बाद जबरन वहाँ के दरवाजे बंद कर दिए गए। लोगों को ऐसे ठूँसा गया था, जैसे डिब्बों में कीड़े-मकोड़ों को बन्द किया जाता है। भीतर मजबूरी में कुछ लोग जमीन पर पालथी मारकर बैठ गए। कुछ अन्य वहीं रखे बोरों पर बैठे। जो दुबले-पतले थे, वे घुटनों के बल बैठ गए। सब के सब आपस में चिपक-चिपक कर बैठे थे। मानो, सभी एक-दूसरे से स्थायी रूप से जुड़ गए हों। जल्दी ही उस गोदाम में इतनी भीड़ की वजह से तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा हो गया। पसीने की गंध, बिना धुले कपड़ों की दुर्गंध, सस्ते इत्र की बू, चमड़े-प्लास्टिक की बदबू, आदि भीतर की हवा में ऐसी फैल गई कि साँस लेना तक दूभर हो गया। बस, इतनी ही राहत थी कि गोदाम का एक दरवाजा खुला हुआ था। वहाँ से थोड़ी हवा भीतर आ रही थी। उस दरवाजे पर भी रैड-हाउंड का एक जवान गिटार बजाने जैसी मुद्रा में 20 राउंड वाली बंदूक लिए खड़ा था।
अब वे सभी लोग मानो अपने कत्ले-आम का इंतजार कर रहे थे। इंसानियत गर्त में समा चुकी थी। उनकी हालत बहुत बुरी थी। उनके चेहरों से हडिडयाँ बाहर झाँक रही थीं। मैले-कुचैले उलझे हुए बाल, मुरझाई सूखी सी जर्जर काया, पपड़ीदार फटी हुई त्वचा जो सड़े केले की तरह भूरी हो गई थी। आँखों तक में साँपों की तरह दरारें दिखने लगीं थीं। और बदबू तो ऐसी कि जैसे मरी हुई मछलियों से भरा पूरा ट्रक अभी-अभी वहाँ से गुजरा हो। माहौल में दहशत और आक्रोश था। भीड़ गोदाम के चारों तरफ खिड़कियों की ओर बढ़ने लगी और तब तक बढ़ती रही, जब तक कि बाहर तैनात पुलिसवालों ने उनकी तरफ बंदूकें नहीं तान दीं। साफ था कि उन्हें इसके आदेश मिले हुई थे। यह देख पूरी भीड़ में सिहरन सी दौड़ गई। एक से दूसरे में होते हुए दहशत की ऐसी तेज लहर दौड़ी कि मानो वह कान के पर्दे ही फाड़ देगी। हालाँकि इसके बावजूद बंधकों की भीड़ में कुछ लोग ऐसे भी थे, जिनका असंतोष छलकने को बेताब हो चुका था। उनकी आवाजें खुले दरवाजे से होकर बाहर आने लगी थीं। वे सबसे आगे होकर अपनी नाराजगी दर्ज कराने लगे थे। नारेबाजी करते हुए उपद्रव करने लगे थे।
#MayaviAmbaAurShaitan
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(नोट : यह श्रृंखला एनडीटीवी की पत्रकार और लेखक ऋचा लखेड़ा की ‘प्रभात प्रकाशन’ से प्रकाशित पुस्तक ‘मायावी अंबा और शैतान’ पर आधारित है। इस पुस्तक में ऋचा ने हिन्दुस्तान के कई अन्दरूनी इलाक़ों में आज भी व्याप्त कुरीति ‘डायन’ प्रथा को प्रभावी तरीक़े से उकेरा है। ऐसे सामाजिक मसलों से #अपनीडिजिटलडायरी का सरोकार है। इसीलिए प्रकाशक से पूर्व अनुमति लेकर #‘डायरी’ पर यह श्रृंखला चलाई जा रही है। पुस्तक पर पूरा कॉपीराइट लेखक और प्रकाशक का है। इसे किसी भी रूप में इस्तेमाल करना कानूनी कार्यवाही को बुलावा दे सकता है।)
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पुस्तक की पिछली 10 कड़ियाँ
72 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’: नकुल मर चुका है, वह मर चुका है अंबा!
71 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’: डर गुस्से की तरह नहीं होता, यह अलग-अलग चरणों में आता है!
70 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’: आखिरी अंजाम तक, क्या मतलब है तुम्हारा?
69 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’: जंगल में महज किसी की मौत से कहानी खत्म नहीं होती!
68 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’: मैं उसे ऐसे छोड़कर नहीं जा सकता, वह मुझसे प्यार करता था!
67 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : उस वासना को तुम प्यार कहते हो? मुझे भी जानवर बना दिया तुमने!
66 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : उस घिनौने रहस्य से परदा हटते ही उसकी आँखें फटी रह गईं
65 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : नकुल में बदलाव तब से आया, जब माँ के साथ दुष्कर्म हुआ
64 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह रो रहा था क्योंकि उसे पता था कि वह पाप कर रहा है!
63 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : पछतावा…, हमारे बच्चे में इसका अंश भी नहीं होना चाहिए