ऋचा लखेड़ा, वरिष्ठ लेखक, दिल्ली
तनु बाकर के व्यवहार में उसकी जमीन के उजड़ने का दर्द झलकता था। वह तकलीफ झलकती थी, जो अनिवार्य रूप से ऐसे देश की थी, जिसे उसके अपने लोगों ने लूट लिया और जो लालच, अन्याय, बगावत तथा छोटे-मोटे झगड़ों की विनाशकारी आँधियों में घिर गया। उसे अपनी धरती से जुनून की हद तक प्यार था, लेकिन अपने लोगों के निरंतर शोषण पर वह शर्मिंदा था। जब भी वह सोचता कि जमीन के स्वाभाविक मालिक होने के नाते हबीशियों के पास कितनी संपदा होनी चाहिए, तब-तब उसके सीने में आक्रोश की ज्वाला भड़क जाती। गुस्सा इतना भयंकर होता कि शरीर के दर्द के रूप में झलक जाता। एक वक्त था, जब पूरब में तीखी ढलान वाली पहाड़ियों से लेकर बाईं तरफ के चट्टानी पहाड़ों तक, पश्चिम का होरी पर्वतीय इलाका पूरा स्थानीय लोगों के अधिकार में था। मगर कई सालों पहले सरकार ने इस क्षेत्र की सर्वाधिक उपजाऊ जमीन सहित एक बड़ा भू-भाग अपने कब्जे में ले लिया। ग्रामीणों के लिए उसने छोड़ा तो बस, इरावती नदी और उसके किनारों का कुछ हिस्सा तथा पहाड़ की तलहटी में जमीन के कुछ टुकड़े।
हबीशी ग्रामीण भोले-भाले थे। वे स्पष्ट रूप से सरकार की उन शर्तों को समझ नहीं पाए जिनके आधार पर उन्हें जमीन दी गई थी। सरकार ने उनकी प्राकृतिक संपदा पर दिन-दहाड़े डकैती डाली थी। लेकिन लोगों ने बिना कुछ कहे समझौते पर अपनी मंजूरी दे दी। और तभी एक अभिशप्त चमत्कार हुआ। मालूम चला कि पहाड़ की मिट्टी के नीचे सोने का भंडार दबा हुआ है। सो, उसके बाद से तो अपनी ही जमीन पर अपना कब्जा बनाए रखना ग्रामीणों के लिए लगातार चलने वाले भयंकर संघर्ष का मसला बन गया। लोगों ने दोबारा कहीं और जाकर बसने के सरकार के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। इसके बाद उन पर होने वाले हमले दिनों-दिन बर्बर होते गए। पिछले कुछ हफ्तों से हालात और बदतर हो गए थे(
वह जानता था कि उसे और उसके लोगों के लिए बड़ा जोखिम धोखे और छल-कपट से किए जा रहे दुश्मन के हमलों का है। वह ये भी अच्छी तरह महसूस कर पा रहा था कि वे जिस दिशा में बढ़ रहे हैं, वहाँ भयंकर खतरा है। कपट और धोखेबाजी में माहिर मैडबुल के आदमी सभी गाँवों में संगठित रूप से छल-प्रपंच का जाल बिछाने में लग भी गए थे। इसके असर से, लोग एक-दूसरे की ही मुखबिरी करने लगे थे। ‘बागियों के बारे में सूचनाएँ’ देने पर तो उन्हें तीन गुना तक इनाम मिल रहा था। वहीं आम नागरिकों को जोर-जबर्दस्ती से मजबूर किया जा रहा था कि वे हबीशी समर्थकों के घरों में घुसकर छापा मारने वाली फौज के गश्ती दल में शामिल हों। ऐसे में तनु को ज्यादा डर यह था कि यदि सही समय पर बड़ा प्रलोभन दिया गया तो अधिकारी उसके नए रंगरूटों से कोई भी सूचना हासिल कर सकते हैं। उसके नए रंगरूटों तीन तरह के लोग थे। पहले- जिन्होंने शायद ही पहले मैदानी तौर पर काम किया हो। दूसरे- कुछ बड़बोले किस्म के और तीसरे- जो बाकी सभी को अपनी सोने की चैन और बंदूकें दिखाकर खुश हुआ करते थे।
इधर, “ये बकवास है!”, ऐसा कहते हुए सुशीतल ने एकदम निराश होकर अपनी शर्ट उतार दी। “इतने दिन तक खुद को भट्टी में तपाने, आरपीजी को चकमा देने, विस्फोटकों को ढूँढ़ने जैसी कवायद के बाद मुझे आखिर क्या मिला? ये ठीक नहीं है, मास्टर! पहला विकल्प मुझे होना चाहिए। वास्तव में, दस्ते की अगुआई के लिए मैं ही सर्वेश्रेष्ठ हूँ। वह मेरे नेतृत्त्व में रह कर लड़े, इससे मुझे कोई दिक्कत नहीं।” सुशीतल का तर्क सीधा था – जिसके खाते में जितनी अधिक लाशें, अधिक मौतें, अधिक गोला-बारूद, वह उतना ही बड़ा नायक।
“बस, बहुत हुआ।” तनु बाकर ने अब चेतावनी दे दी। “इस मामले में जिसे भी आपत्ति और गुस्सा हो, वह उसे अपने तक ही रखे। अब तक ‘मास्टर’ मैं हूँ। मैं ही फैसला करूँगा कि संगठन में किसे कौन सी जिम्मेदारी मिलेगी। और मैंने तय कर लिया है कि अंबा दस्ते का नेतृत्त्व करेगी।”
इसके बाद तनु बाकर ने अपना हाथ उठाकर जोर से नीचे किया। मानो जितनी ज़मीन का सर्वे किया, उसे पूरा अपने कब्जे में ले लिया हो। फिर वह वहाँ से चला गया। इधर, बहुत से लोग उसकी बात हालाँकि ठीक से सुन नहीं पाए थे, लेकिन उसके कठोर लहजे को देखकर उसका मंतव्य सबके सामने स्पष्ट हो चुका था।
—-
(नोट : यह श्रृंखला एनडीटीवी की पत्रकार और लेखक ऋचा लखेड़ा की ‘प्रभात प्रकाशन’ से प्रकाशित पुस्तक ‘मायावी अंबा और शैतान’ पर आधारित है। इस पुस्तक में ऋचा ने हिन्दुस्तान के कई अन्दरूनी इलाक़ों में आज भी व्याप्त कुरीति ‘डायन’ प्रथा को प्रभावी तरीक़े से उकेरा है। ऐसे सामाजिक मसलों से #अपनीडिजिटलडायरी का सरोकार है। इसीलिए प्रकाशक से पूर्व अनुमति लेकर #‘डायरी’ पर यह श्रृंखला चलाई जा रही है। पुस्तक पर पूरा कॉपीराइट लेखक और प्रकाशक का है। इसे किसी भी रूप में इस्तेमाल करना कानूनी कार्यवाही को बुलावा दे सकता है।)
—-
पुस्तक की पिछली 10 कड़ियाँ
16- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : अहंकार से ढँकी आँखों को अक्सर सच्चाई नहीं दिखती
15- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : ये किसी औरत की चीखें थीं, जो लगातार तेज हो रही थीं
14- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : मैडबुल को ‘सामाजिक कार्यकर्ताओं’ से सख्त नफरत थी!
13- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : देश को खतरा है तो हबीशियों से, ये कीड़े-मकोड़े महामारी के जैसे हैं
12- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : बेवकूफ इंसान ही दौलत देखकर अपने होश गँवा देते हैं
11- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : तुझे पता है वे लोग पीठ पीछे मुझे क्या कहते हैं…..‘मौत’
10- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : पुजारी ने उस लड़के में ‘उसे’ सूँघ लिया था और हमें भी!
9- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : मुझे अपना ख्याल रखने के लिए किसी ‘डायन’ की जरूरत नहीं!
8- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : वह उस दिशा में बढ़ रहा है, जहाँ मौत निश्चित है!
7- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : सुअरों की तरह हम मार दिए जाने वाले हैं!