ऋचा लखेड़ा, वरिष्ठ लेखक, दिल्ली
तभी अचानक किसी पेड़ की शाख के चटकने की आवाज से वह चौंक गई।
वह ठिठकी और उसका दायाँ हाथ कमर के बेल्ट से बँधी पिस्तौल पर टिक गया। उस पर उसकी पकड़ सख्त हो गई। झाड़ियों में कुछ सरसराहट हुई। एक धुँधली सी काया प्रकट हुई और पहाड़ की चोटी की तरफ बढ़ गई। अंबा ने खुद को आड़ में छिपा लिया। इसी समय, धुंध की एक पतली परत को चीरते हुए उसकी नजर सामने मौजूद एक गुफा पर पड़ी। वहाँ से कुछ ही दूर उसे घाटी के ऊपरी हिस्से पर अकेले खड़े एक अन्य व्यक्ति की आकृति दिखाई दी। जंगल में धुंध की चादर फैली थी। चाँद की रोशनी बिखरी थी। बर्फ की चादर से पेड़ ढँके हुए धुँधले दिखाई दे रहे थे। लेकिन ऐसे रहस्यमयी वातावरण में भी उसने उसे देख लिया था।
वह व्यक्ति बस वहाँ बैठा हुआ था।
धुंध में नहाया हुआ सा वह अजीब दिखाई दे रहा था। न जाने क्यों, उसे देखकर अंबा के दिल की धड़कनें बढ़ गईं। उस व्यक्ति में तनाव या हड़बड़ी के लक्षण नहीं दिखे थे। ऐसा कोई लक्षण भी नहीं दिखा, जिससे हिंसा का संकेत मिलता। पर उसे देखकर अंबा को दया आ गई। मन में ऐसा भाव पैदा हुआ, जैसा किसी छोड़े हुए बच्चे को देखकर होता है। उसने अँगुलियों की पकड़ ढीली कर पिस्तौल से हाथ हटा लिया। खुलकर साँस छोड़ते खुद को संयत करने की कोशिश की। हालाँकि अब उसका दिल तेजी से धक-धक करने लगा था। उसने नजरें फेरीं, लेकिन उसकी आँखों से वह दृश्य ओझल नहीं हुआ। उसने उस अनजान व्यक्ति के प्रति आत्मा की गहराई से एक खिंचाव सा महसूस किया।
नकुल।
क्या यह नकुल हो सकता है? नहीं, यह संभव नहीं था!
ऐसे थोडे ही होता है।
लेकिन कल्पना और वास्तविकता का मेल नहीं बैठ रहा था।
यह अविश्वसनीय था।
यह मतिभ्रम नहीं था।
वह व्यक्ति त्यौरियाँ चढ़ाए वहीं खड़ा हो चुका था। हमेशा की तरह कठोर और गंभीर। अब वह दूसरे व्यक्ति के साथ गरमा-गरम बहस कर रहा था। उसने जमीन पर जोर से पैर पटका और भौहें चढ़ा लीं। तभी अंबा ने गौर किया कि उस व्यक्ति के साथ खड़ा दूसरा शख्स तनु बाकर था। उसे देखते ही उसकी साँसें तेज हो गईं। मुटिठयाँ इतनी सख्ती से भिंच गईं कि हथेली पर निशान बन गए। वह सोचने लगी कि कहीं इस अँधेरे में वह किसी अशुभ मतिभ्रम का शिकार तो नहीं हो रही। हो भी सकता है। थकान, ठंड और भूख के कारण ऐसा क्रूर मतिभ्रम हो सकता है! अंबा ने अपना सिर कई बार झटका। और वह जब आश्वस्त हुई, तो उसका रोम-रोम खुशी से भर गया। कुछ पल के लिए अंबा के मन में तनु बाकर के सीने से लग जाने की इच्छा पैदा हो गई। बड़ी राहत सी महसूस हुई उसे। लेकिन यह एहसास क्षणिक ही था। उसकी अंतरात्मा ने उसे उन दोनों व्यक्तियों के सामने जाने से रोक दिया। दोनों के हावभाव बता रहे थे कि उनकी मुलाकात दोस्ताना नहीं थी। लिहाजा, उनकी बातचीत सुनने की गरज से अंबा उनके थोड़ा और करीब चली गई। अब वह किसी की नजर में आए बिना उनकी बातें सुन सकती थी।
हालाँकि नजदीक पहुँचते ही एक अनजान डर ने उसे कदम पीछे खींचने पर मजबूर कर दिया। एक भयानक सच उसके सामने खुल गया था। उसकी झलकमात्र से वह काँप गई थी। उसकी साँसें गले में अटक गईं थीं, जिन्हें वह बड़ी मुश्किल से छोड़ पाई। उस घिनौने रहस्य से परदा हटते ही उसकी आँखें फटी रह गईं थीं।
“तुम्हें मुझे धमकाना नहीं चाहिए था।” तनु बाकर के स्वर में लाचारी झलक रही थी।
“तुम पापी हो। तुम लोगों के सम्मान के लायक नहीं हो। जब उन्हें तुम्हारी सच्चाई पता चलेगी, तो वे तुमसे नफरत करेंगे।”
“वह कल की बात थी। क्या तुम्हारे दिल में इतना भी रहम नहीं कि अब मुझे माफ कर सको —”
“तुम्हारे अपराधों के लिए कोई माफी नहीं, कोई दया नहीं। जो कुछ तुमने मेरे और दूसरे लड़कों के साथ किया, तुम्हें इसकी कीमत चुकानी होगी।” नकुल की आवाज गुस्से से काँप रही थी।
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#MayaviAmbaAurShaitan
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(नोट : यह श्रृंखला एनडीटीवी की पत्रकार और लेखक ऋचा लखेड़ा की ‘प्रभात प्रकाशन’ से प्रकाशित पुस्तक ‘मायावी अंबा और शैतान’ पर आधारित है। इस पुस्तक में ऋचा ने हिन्दुस्तान के कई अन्दरूनी इलाक़ों में आज भी व्याप्त कुरीति ‘डायन’ प्रथा को प्रभावी तरीक़े से उकेरा है। ऐसे सामाजिक मसलों से #अपनीडिजिटलडायरी का सरोकार है। इसीलिए प्रकाशक से पूर्व अनुमति लेकर #‘डायरी’ पर यह श्रृंखला चलाई जा रही है। पुस्तक पर पूरा कॉपीराइट लेखक और प्रकाशक का है। इसे किसी भी रूप में इस्तेमाल करना कानूनी कार्यवाही को बुलावा दे सकता है।)
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पुस्तक की पिछली 10 कड़ियाँ
65 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : नकुल में बदलाव तब से आया, जब माँ के साथ दुष्कर्म हुआ
64 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह रो रहा था क्योंकि उसे पता था कि वह पाप कर रहा है!
63 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : पछतावा…, हमारे बच्चे में इसका अंश भी नहीं होना चाहिए
62 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह बहुत ताकतवर है… क्या ताकतवर है?… पछतावा!
61 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : रैड-हाउंड्स खून के प्यासे दरिंदे हैं!
60 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : अब जो भी होगा, बहुत भयावना होगा
59 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह समझ गई थी कि हमें नकार देने की कोशिश बेकार है!
58 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : अपने भीतर की डायन को हाथ से फिसलने मत देना!
57 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : उसे अब जिंदा बच निकलने की संभावना दिखने लगी थी!
56 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : समय खुशी मनाने का नहीं, सच का सामना करने का था