‘मायावी अंबा और शैतान’ : सुना है कि तू मौत से भी नहीं डरती डायन?

ऋचा लखेड़ा, वरिष्ठ लेखक, दिल्ली

रोजी मैडबुल चुपचाप बैठा हुआ बोतल से घूँट-घूँट पानी पीते हुए उसके माथे के कोने से बह रहे खून को देख रहा था। वह उस पर गौर फरमा रहा था। उसकी थाह ले रहा था। उसे देखकर अंदाजा लगा रहा था – क्या वह सच में डायन है? उसे लेकर डर स्पष्ट था।

“नहीं यार, ये डायन जैसी तो कहीं से भी दिखाई नहीं देती”, आशंका खारिज करते हुए उसने कहा।

“जिसे इतनी आसानी से खून-खच्चर कर दिया जाए, वह डायन नहीं हो सकती”, वह बोला।

“बेवकूफों को इनके नेता तनु बाकर को पकड़ने में दम लगानी थी। ये घटिया औरत हमारे किस काम की? ये साली तो चालबाज लगती है।”

“गाँव वाले इसके बारे में बातें बहुत करते हैं। कि ये कुछ अजीब है, इसे लड़ाई का प्रशिक्षण मिला है।”

“गाँव के लोग जैसा कहते हैं, अगर दुनिया में वैसा कुछ है भी तो तुम्हें क्या लगता है, हमें इस जैसी किसी औरत से उसका पता चलेगा?”

मैडबुल ने सीधे अंबा की आँखों में देखा। वह अब भी चुपचाप खड़ी थी।

“इनकी बात का जवाब दे चुड़ैल!” पहरेदार ने उसे जूते से धकियाते हुए कहा।

“तनु बाकर ने तो घाटी में इसे कॉलेज भी भेजा था। क्यों लड़की, सही है न?”

ऊँचे कद का आदमी अपने मालिक के सवालों के प्रति सहानुभूति रखते हुए उसी को देखे जा रहा था।

“क्या तनु बाकर ने तुझे प्रशिक्षण दिया है?”

चुप्पी कायम रही।

“जवाब दे, दोगली लड़की।”

इसके साथ ही एक जोर का मुक्का उसके चेहरे पर पड़ा, और वह सीधे जमीन पर जा गिरी।

“तनु बाकर रेजीमेंट का भगोड़ा है। पता है तुझे? तुम साले हबीशियों की तरह गद्दार बनने से पहले वह कभी अच्छा सैनिक हुआ करता था। मैं उस कायर कुत्ते को छोड़ूँगा नहीं।”

“वह कोई गद्….”, अंबा की बात पूरी होती, इससे पहले पहरेदार ने उसे झन्नाटेदार चाँटा जड़ दिया। उसके हाथ की अँगूठी की चोट से उसकी कनपटी फट गई। दर्द से आँसू अंबा के गालों पर लुढ़क गए। उसका जी मिचलाने लगा। मगर उसने होश सँभाला और पहरेदार को जबरदस्त लात जड़ दी। ठोकर इतनी तेज थी कि वह जमीन पर गिर गया। इतने में ही उसे यूँ लगा कि अगर वह बँधी न होती तो रात में शिकार करने वाले किसी जानवर की तरह अभी उसकी जान ले लेती।

“बोलने दो उसे।”

मैडबुल के आदेश के बाद पहरेदार और मथेरा पीछे, आड़ में खिसक गए। इसके बाद अंबा ने वहाँ मौजूद लोगों को पैनी निगाहों से घूरा। उसकी निगाहें जैसे उन सभी की गहराई नाप रहीं थीं। उनके असल रंग का जाइजा ले रहीं थीं। उनके दिमागों में दबी गंदगी। उनके चरित्र की बदसूरती। सब कुछ। उसे यूँ देखता देख वह उससे नजर नहीं मिला सका। डर के मारे आँखें दूसरी तरफ फेर लीं उसने। उसे आशंका थी शायद कि वह उसको कहीं सीधा निगल ही न ले।

“हाँ, तो तू क्या कह रही थी लड़की?”

“तनु बाकर का बहुत इज्जतदार आदमी है। ठग तो तू है। तेरे आदमी हैं। वर्दी वाले लुटेरे!”

इतने में गार्ड का घूँसा उसके गाल पर पड़ने ही वाला था कि उसने किसी तरह खुद को बचा लिया। लेकिन बचते-बचते भी उसका मुक्का उसकी भौंह के पास जख्म दे गया। लेकिन वह विचलित नहीं हुई। डर का तो उसके चेहरे पर नाम-ओ-निशान नहीं था। ये बात उन सबको हैरान करने वाली थी।

“उठ, दोगली”, पहरेदार चीखा। साथ ही वह अंदाज लगाने लगा कि अंबा को अगली ठोकर कहाँ मारे।

“क्या तनु बाकर के शागिर्दों में इसे ही सर्वश्रेष्ठ कहा जाता है? वह धूर्त बूढ़ा आदमी हर बार बचकर निकल जाता है। पर ज्यादा दिनों तक बच नहीं पाएगा। वह तुझे भी छोड़ भागा। हम जिन परजीवियों से निपट रहे हैं, उनका असल रंग यही है। तुम सब टिड्‌डियों की तरह हो। एक दिन सब के सब खत्म कर दिए जाओगे। क्या तुझे अपना भविष्य नहीं दिखता चुड़ैल? वैसे, मैंने सुना है कि तेरे भीतर कोई चमत्मारिक शक्ति है!”

“गलत सुना है तूने”, अंबा ने कहा।

“…मैंने ये भी सुना है कि तू अपने हाथों से जिंदा हथगोले उठा लेती है और मरती नहीं? गजब है! ऐसा तो बहादुर से बहादुर आदमी भी न पाएँ।”

इस बार कोई जवाब नहीं आया।

“.…और सुना है कि तू मौत से भी नहीं डरती डायन?”

“मैं तेरी इन सुनी-सुनाई बातों का जवाब कैसे दे सकती हूँ?”

“क्या तेरे पास वाकई कोई खास शक्ति है? अच्छा बता, अगर तुझे गुस्सा आ गया तो क्या तू जादू-टोना कर देगी कोई? सच कहूँ तो इस तरह किसी जानवर के नक्श-ए-कदम पर चलना कुछ असंभव सा नहीं लगता? वैसे, मुझे डायनों-चुड़ैलों से कोई दिक्कत नहीं। तुझे पता है, क्यों?”

उसके साँवले चेहरे पर एक स्थिर सी मुसकान थी। जबकि बाहर को उभरी आँखें द्वेषपूर्ण घृणा और गुस्से से भरे हुए इंसान की झलक दे रही थीं।

“तेरे जैसे लोग न, निरे बेवकूफ किस्म के होते हैं। पर तू तो पढ़ी-लिखी है। कॉलेज भी गई है। तू समझ जाएगी कि मैं क्या कहना चाहता हूँ। तेरे लोग जो हैं न, उनकी बुद्धि बिलकुल घुटनों में होती है। फूहड़ और जंगली किस्म के हैं, सब के सब हबीशी। इनके बीच इंसाफ का कोई एक उसूल ही नहीं है। अगर ऐसे लोगों को जमीन का मालिक बना दिया जाए, तो कानून-व्यवस्था ध्वस्त ही हो जाएगी, है न? बर्बरता के सामने कानून हार जाएगा।”

“अच्छा, तो बर्बर हम हैं? धातुएँ निकालने के नाम पर हमारी जमीन लूटो तुम लोग! हमारे जंगल, हमारे पहाड़ों को बरबाद करो तुम लोग! और बर्बर कहलाएँ हम? अरे, इज्जत क्या होती है, ये तुम लोगों से ज्यादा तो वह वेश्या जानती है, जो चंद पैसों के लिए रोज जिस्म बेचा करती है!”

इस पूरी पूछताछ के दौरान मैडबुल अब तक एकदम शांत बैठा हुआ था। लेकिन अंबा की बात सुनकर उसके चेहरे पर गुस्से की झलक दिखने लगी थी। हालाँकि अब भी उसने उसे उसकी बात पूरी करने का एक और मौका दिया।

“हुँह! हमारी जमीन, हमारी जमीन! तुम सब ये हमेशा जमीन की बात क्यों करते रहते हो? और तू मुझ पर आरोप लगा रही है? तेरे लोग कानून की इज्जत न करें। दिलों में तब तक नफरत भरे बैठे रहें, जब तक उनके सब्र का बाँध टूट न जाए। और फिर उसके बाद या तो सभ्य समाज के खिलाफ बंदूकें उठा लें या फिर अपनी सड़ी हुई सोच के कारण किसी पागलपन पर उतारू हो जाएँ। और तू मुझ पर आरोप लगाती है? सुन लड़की! तेरे जैसे लोगों ने न्याय-व्यवस्था के खिलाफ दिमागों में जो जहर भर रखा है न, वह गलत है। सभ्य समाज में इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती।”

“तूने अभी मुझसे एक सवाल पूछा था न, कि क्या मुझ में कोई खास ताकत है। हाँ, है। और हर हबीश में है। यहाँ तक कि हमारी कमजोर से कमजोर औरतों, बुजुर्गों और हमारे बच्चों में भी खास ताकत है। हम सब में है। और अगर तूने या तेरे लोगों ने हमारी जमीन छीनने की कोशिश की न, तो तुझे हमारी इस ताकत से भिड़ना होगा।”

“अच्छा! तो बता जरा, कि जब तुझे और तेरे लोगों को हम यहाँ से उठाकर बाहर खदेड़ेंगे, तब क्या सितम ढाओगे तुम हम पर? छेद वाली नावें लेकर नदी में उतर जाओगे या फिर हमें डुबो दोगे?”

“तुझे शायद पता नहीं है। मैं बताती हूँ। डरे हुए हम नहीं, तू और तेरे लोग हैं। तुम सब डर के साए में सहमे हुए हो।” मैडबुल के तंज के बाद तीखी मुसकुराहट के साथ अंबा ने जवाब दिया तो वह बुरी तरह तिलमिला उठा।
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(नोट :  यह श्रृंखला एनडीटीवी की पत्रकार और लेखक ऋचा लखेड़ा की ‘प्रभात प्रकाशन’ से प्रकाशित पुस्तक ‘मायावी अंबा और शैतान’ पर आधारित है। इस पुस्तक में ऋचा ने हिन्दुस्तान के कई अन्दरूनी इलाक़ों में आज भी व्याप्त कुरीति ‘डायन’ प्रथा को प्रभावी तरीक़े से उकेरा है। ऐसे सामाजिक मसलों से #अपनीडिजिटलडायरी का सरोकार है। इसीलिए प्रकाशक से पूर्व अनुमति लेकर #‘डायरी’ पर यह श्रृंखला चलाई जा रही है। पुस्तक पर पूरा कॉपीराइट लेखक और प्रकाशक का है। इसे किसी भी रूप में इस्तेमाल करना कानूनी कार्यवाही को बुलावा दे सकता है।) 
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पुस्तक की पिछली 10 कड़ियाँ 

22- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : अच्छा हो, अगर ये मरी न हो!
21- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : वह घंटों से टखने तक बर्फीले पानी में खड़ी थी, निर्वस्त्र!
20- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : उसे अब यातना दी जाएगी और हमें उसकी तकलीफ महसूस होगी
19- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : फिर उसने गला फाड़कर विलाप शुरू कर दिया!
18- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : ऐसे बागी संगठन का नेतृत्त्व करना महिलाओं के लिए सही नहीं है
17- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : सरकार ने उनकी प्राकृतिक संपदा पर दिन-दहाड़े डकैती डाली थी
16- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : अहंकार से ढँकी आँखों को अक्सर सच्चाई नहीं दिखती
15- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : ये किसी औरत की चीखें थीं, जो लगातार तेज हो रही थीं
14- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : मैडबुल को ‘सामाजिक कार्यकर्ताओं’ से सख्त नफरत थी!
13- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : देश को खतरा है तो हबीशियों से, ये कीड़े-मकोड़े महामारी के जैसे हैं

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