ऋचा लखेड़ा, वरिष्ठ लेखक, दिल्ली
देखते ही देखते वह ऐसे गायब हुआ, जैसे पहले कभी था ही नहीं। उस दिन के बाद से फिर कभी किसी ने कर्नल रोजी मैडबुल को नहीं देखा। उसके गायब होने के साथ ही साथ वे सब भी चले गए – आभासी परछाइयाँ, रहस्यमय गुबार, अजीब-व-गरीब से वे जानवर, सब गुम गए। पीछे रह गए जले हुए पेड़, खाक हो चुकीं पेड़ों की टहनियाँ, बदबूदार हवा और बस। गुबार जब बैठा, माहौल साफ हुआ तो मैदान में छोटे-छोटे काले ढेर नजर आए। बाद में पता चला कि वे जले हुए आदमियों के ढेर थे। संघर्ष और खूनखराबे के बाद उनकी बंदूकें यहाँ-वहाँ बिखरी पड़ी थीं। उनके शवों के अंग बिखरे हुए थे। सिर अजीब हालत में लटके थे। पेट से अँतड़ियाँ बाहर निकल आईं थीं। दूसरे अंग भी बाहर लटक आए थे। जैसे किसी ने हाथ डालकर उन्हें बाहर खींच लिया हो। वह भयानक कहर जरा देर से बरपा था। लेकिन जब बरपा तो उसने सब तहस-नहस कर डाला था। उसकी ये निशानियाँ चीख-चीखकर उसकी भयावहता बयाँ कर रही थीं।
अंबा मौत का यह तांडव देखकर दुखी थी। उसे सभी मौतों का दुख हो रहा था। इन तमाम मौतों के लिए वह खुद को जिम्मेदार मान रही थी। जीवन में पहली बार वह अपराधबोध से ग्रसित हुई थी। इसकी तीव्रता उसे महसूस हो रही थी, लेकिन उसे यह भी यह एहसास था कि वह खुद के प्रति भी जवाबदेह थी। दुनिया के लिए भी उत्तरदायी थी, और उसके भीतर जो शक्तियाँ हैं उनके लिए भी।
अंबा के मन में यह ख़याल उस समय आए, जब वह मूल स्वरूप में लौट चुकी थी। यह सब सोचते हुए अभी उसने एक-दो कदम ही आगे बढ़ाए थे कि उसके दाहिनी ओर बंदूक के गरजने की आवाज गूँजी। हालाँकि उसने गोली की आवाज नहीं सुनी। लेकिन जब गोली उसके ठीक सामने ताड़ के पेड़ में जाकर धँसी, तब उसे उसकी आवाज सुनाई दी। उसे लगा, जैसे कहीं कुछ तो गड़बड़ है। अलबत्ता इससे पहले कि वह उसे ठीक-ठीक समझ पाती, उसने खुद को धड़ाम से जमीन पर गिरा हुआ पाया। फिर उसने देखा कि उसकी छाती पर खूनी लालिमा तेजी से फैलती जा रही है। तो क्या गोली उसकी छाती को भेदते हुए पेड़ में जाकर धँसी थी?
अंबा इस प्रश्न के जवाब तक पहुँचती, उससे पहले ही कुछ और गोलियाँ उसके शरीर को छेदते हुए उसमें समा गईं। ज्यादा मात्रा में लगातार खून बहने से अंबा चेतना खोने लगी।
हालाँकि, उससे पहले उसने किसी बच्चे की तरह अपने हाथ से जख्मों को दबाने की कोशिश की। बहते खून को रोकने का प्रयास किया। लेकिन उसके सभी प्रयास निरर्थक रहे। उसे हैरानी हुई कि न जाने कितनी बार उसने ख्वाबों में यही दृश्य तो देखा था। तो क्या वे सपने उसके लिए भविष्यवाणी थे?
जीवन की डोर अंबा के हाथ से छूट रही थी। इन आखिरी पलों में उसे इस सच्चाई का भी एहसास हुआ कि वह हमेशा से डायनों, चुड़ैलों पर भरोसा करती थी। लेकिन जहाँ तक उसे याद आता था, वह हमेशा इस शब्द से नफरत भी करती आई थी। शायद उसे उन रस्मों और लोगों से नफरत थी, जो उसके और उसकी ‘डायन’ के बीच दखल देते थे। आज उसके सामने यह सच्चाई अचानक सामने आई थी। मानो उसे अपने पैरों तले जमीन का पता चला हो या कोई अप्रत्याशित जानकारी मिल गई हो। अपनी यह सच्चाई, यह ‘डायन’ उसे अपने जीवन का बलिदान देकर मिली थी। इसके लिए उसके माँस को काट गया था। उसके नाखूनों को उखाड़ा गया था। उसकी त्वचा को चीरा गया था। उसका खून चूसा गया था। ऐसी न जाने की कितनी यातनाएँ उसे सहनी पड़ी थीं। तब जाकर उसे अपनी यह ‘डायन’ मिली थी, जिसका कोई रूप नहीं था। कोई उसूल नहीं, कोई शास्त्र, कोई नियम, नैतिकता, तर्क, इनाम, दंड, कुछ भी नहीं था। उसने जो मायाजाल बुना, वह जैसा भी था, उसके अपने लिए था। वह मायाजाल उससे कभी दूर नहीं हुआ। उसके लिए आकाश में न कोई स्वर्ग था और न नीचे नरक।
इन ख्यालों के बीच उमड़ते-घुमड़ते उसकी चेतना उसका साथ छोड़ गई। अब कुछ बाकी था, तो बहती हवा की आवाज। रूह उसके शरीर से बाहर निकल गई। उसे लगने लगा, जैसे वह गुब्बारे से निकली हवा की तरह तितर-बितर होते हुए प्रकृति के तत्त्वों में विलीन हो रही हो।
नाथन ने जब अंबा को देखा, तो उसके ठंडे पड़ चुके गालों पर खून पूरा जम चुका था। वह पानी के एक स्रोत के पास पड़ी थी। उसके हाथ चिपचिपे थे। उसकी छाती और पेट में गोलियाँ लगी थीं। गोलियों की मार से वह बारूद भरी काली मिट्टी वाली जगह से लुढ़क कर एक तटबंध पर जा गिरी थी, जहाँ काई जमी हुई थी।
नाथन ने उसके सीने पर अँगुलियाँ फिराकर उसकी धड़कनों को महसूस करने की कोशिश की, लेकिन जल्दी ही काँपता हुआ हाथ पीछे खींच लिया। दरअसल, उसे अंधविश्वास था कि शायद जीवन का कोई अस्थायी संकेत अंबा अब भी महसूस कर रही हो और उसके कारण उन संकेतों में बाधा पैदा हो सकती है। उसके चेहरे पर एक मद्धम सी चाँदी जैसी छटा उभर आई थी, जैसे बादलों भरे आकाश में कभी-कभी बिजली चमकती है। लेकिन दुनिया और दुनिया से बाहर के लोग भी, उसे अब छू नहीं सकते थे।
एक पल में तो वह ऐसी महसूस हुई, जैसे हजारों-लाखों बरसों के क्रमिक विकास से उभरी कोई प्राणी हो, जिसने अभी अपना पूरा जीवन जिया नहीं था। फिर अगले ही पल उसे उसकी फटी हुई आँखों में एक अजीब सी चमक दिखाई दी और मौत से पहले जीवन की आखिरी हिचकी लेने के लिए आधा खुला हुआ मुँह भी।
#MayaviAmbaAurShaitan
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(नोट : यह श्रृंखला एनडीटीवी की पत्रकार और लेखक ऋचा लखेड़ा की ‘प्रभात प्रकाशन’ से प्रकाशित पुस्तक ‘मायावी अंबा और शैतान’ पर आधारित है। इस पुस्तक में ऋचा ने हिन्दुस्तान के कई अन्दरूनी इलाक़ों में आज भी व्याप्त कुरीति ‘डायन’ प्रथा को प्रभावी तरीक़े से उकेरा है। ऐसे सामाजिक मसलों से #अपनीडिजिटलडायरी का सरोकार है। इसीलिए प्रकाशक से पूर्व अनुमति लेकर #‘डायरी’ पर यह श्रृंखला चलाई जा रही है। पुस्तक पर पूरा कॉपीराइट लेखक और प्रकाशक का है। इसे किसी भी रूप में इस्तेमाल करना कानूनी कार्यवाही को बुलावा दे सकता है।)
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पुस्तक की पिछली 10 कड़ियाँ
78 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वहाँ रोजी मैडबुल का अब कहीं नामो-निशान नहीं था!
77 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह पटाला थी, पटाला का भूत सामने मुस्कुरा रहा था!
76 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : डायन को जला दो! उसकी आँखें निकाल लो!
75 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : डायन का अभिशाप है ये, हे भगवान हमें बचाओ!
74 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : किसी लड़ाई का फैसला एक पल में नहीं होता
73 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : मैडबुल दहाड़ा- बर्बर होरी घाटी में ‘सभ्यता’ घुसपैठ कर चुकी है
72 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’: नकुल मर चुका है, वह मर चुका है अंबा!
71 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’: डर गुस्से की तरह नहीं होता, यह अलग-अलग चरणों में आता है!
70 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’: आखिरी अंजाम तक, क्या मतलब है तुम्हारा?
69 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’: जंगल में महज किसी की मौत से कहानी खत्म नहीं होती!