ऋचा लखेड़ा, वरिष्ठ लेखक, दिल्ली
वह रोध था, दुख के कारण आधा पगलाया हुआ सा। अभी जो भी उसके पास आने की कोशिश करता, वह उसे बंदूक लहराकर डराने की कोशिश कर रहा था।
“लाओ, अब अपनी बंदूक मुझे दे दो”, मथेरा ने उसे शांति से शांत करने की कोशिश की। जबकि वह खुद इतनी शांत प्रकृति का आदमी था नहीं। क्रूरता तो उसके भीतर खरपतवार से भी तेजी से उभर आती थी। फिर भी वह अभी संयत था। मैडबुल भी इस अप्रत्याशित बाधा से आश्चर्यचकित था।
“तुम सब। तुम सबको चेतावनी दी जा चुकी है। मुखिया पीछे हटो, हटाओ उसे! बेवकूफी मत करो। तुम इस लड़ाई में जीत नहीं सकते मूर्खो। तुम किसी गिनती में भी नहीं हो।”
यह सुनते ही रोध का गुस्सा बेकाबू हो गया। उसने चेतावनी देते हुए गोली चला दी। वहीं से एक हद भी तय हो गई। कई सारे युवक उसके साथ आ खड़े हुए। उन सभी ने किसी तरह वहाँ पत्थर, वगैरा इकट्ठे कर लिए थे। उन्हें वे हमले के लिए इस्तेमाल करने वाले थे। इसी बीच, एक युवक ने तो आपे से बाहर होकर सीधे मथेरा पर हमला ही कर दिया। उसने पहले उसकी टोपी गिराई और फिर धक्का देकर उसे भी जमीन पर गिरा दिया।
इतना होते ही जैसे कोई भूखा शिकारी कुत्ता शिकार को देखकर गुर्राता है, वैसे ही मैडबुल की जोरदार आवाज पहाड़ों से टकराकर गूँजी और बंदूकें गरज उठीं। गोलियों की बौछार होने लगी।
गोलियाँ ग्रामीणों के शरीरों को छलनी करने लगीं। यह देख वहाँ ग्रामीणों की भीड़ में मौजूद औरतें चीख-पुकार करने लगीं। धूल से भरा फर्श पीट-पीटकर रोने लगीं। डरे हुए ग्रामीण बाहर भागने की कोशिश करने लगे। इस कोशिश में एक-दूसरे पर गिरने-पड़ने लगे। कुछ लोग, जो बाहर निकलने में कामयाब हुए, वे सिर झुकाकर ऊपर से गुजरती गोलियों की बौछार से बचने की कोशिश करते दिखे। इस दौरान फिर कुछ लोग जमीन पर गिरे तो उन्होंने रेंगते हुए आगे बढ़ना शुरू कर दिया। मुखिया की बेटी तो अपने नवजात शिशु के मारे जाने के विचार से ही बौखला गई। गुस्से में वह मथेरा की ओर दौड़ पड़ी। उसने इतनी जोर से उसे धकेला की बच्चा गोद से छिटकर कर गिर गया।
बच्चा सच में मर चुका था। वह उसे उठाने को भागी। तभी मथेरा की गोलियाँ उसकी छाती के पार हो गईं। गोलियाँ लगने के बाद वह कुछ सेकेंड अपने पैरों पर खड़ी रही। खून के धब्बे उसके ब्लाउज पर ऐसे उभर आए, जैसे सफेद कपड़े पर लाल गुलाब हों। उसने उन्हें देखा और फिर लहराकर जमीन पर गिर गई। उसकी आँखें पूरी तरह फटी हुई थीं। गिरते हुए वह इतनी जोर से रोई और चीखी कि उसे सुनकर दूर बैठी अंबा की भी आत्मा हिल गई। वह बुरी तरह निराश थी। खुद को इतना अकेला महसूस कर रही थी, जितना इससे पहले कभी नहीं किया था। वह इन हालात के लिए खुद को दोषी मान रही थी।
रोध के सिर में गोलियाँ लगीं। उसका सिर फट गया। खून की धार उसके चेहरे से होकर नीचे गिरने लगी। ग्रामीणों के प्रति दबी हुई नफरत और हताशा से रैड-हाउंड्स उबल रहे थे। इसी बीच, एक अन्य युवक का पैर फिसला और वह पेट के बल जमीन पर गिर गया। देखते ही देखते सैकड़ों पैरों ने उसे बुरी तरह रौंद दिया। ऐसा लगता था, जैसे ताजे बिखरे खून की गंध ने भीड़ को चेतनाशून्य कर दिया हो।
रोध अब तक जमीन पर गिरा नहीं था। वह अब भी संघर्ष कर रहा था। वह मुँह से खून उगल रहा था। कोहनी के नीचे से हाथ लगभग लटक गए थे। वह बैल्ट में बँधी पिस्तौल निकालने के लिए भी संघर्ष कर रहा था, लेकिन उसने हौसला नहीं हारा। अब रैड-हाउंड्स उसके बहुत करीब आ चुके थे। उन्होंने उसे हर तरफ से घेर रखा था। फिर भी उसने जैसे-तैसे पिस्तौल निकाली और अंधाधुंध गोलियाँ चला दीं। जोरदार आवाज के साथ चली गोलियों में से एक गोली रैड-हाउंड्स के जवान के पेट में लगी। वह दर्द से चीखते हुए पेट पकड़कर वहीं जमीन पर गिर गया। इससे रैड-हाउंड्स के जवान तो जैसे पागल ही हो गए। हिंसक जानवरों की तरह आवाजें करते हुए वे हर तरफ से रोध पर टूट पड़े। उसने पीछे हटने की कोशिश की लेकिन रोक लिया गया। हमलावरों के चेहरे नफरत से फड़क रहे थे। उन्होंने मुँह से गालियाँ निकालते हुए रोध पर मुक्कों की बारिश कर दी।
पीछे से मैडबुल भी लगातार हुक्म दे रहा था।
मारो साले को… छोड़ना नहीं…. जान से मार डालो।
इसी बीच, किसी जवान ने रोध के चेहरे पर बंदूक के पीछे वाले हिस्से से वार किया। उसके चेहरे से खून की धार बह निकली। आँखों के पास से रिसता हुआ खून नीचे बहने लगा। तभी, चार लोगों ने उसे पकड़कर कार के बोनट पर पटक दिया। फिर पलक झपकते हुए रैड-हाउंड्स का एक जवान उसकी बगल में आ बैठा। उसके हाथ में बंदूक की संगीन थी। उसने देखते ही देखते वह संगीन रोध की गरदन में घुसा दी। इसके बाद उसी से उसकी छाती से पेट तक का हिस्सा फाड़ डाला। रोध दर्द से बिलबिला उठा।
रोध के जिस्म में अब चंद साँसें ही बकाया थीं। लेकिन तब भी मैडबुल और उसके आदमी रुके नहीं। मैडबुल ने उसकी फटी हुई छाती में हाथ डालकर उसका दिल बाहर खींच लिया। वह इस वक्त पागलपन की हद तक खून का प्यासा लग रहा था। रोध का खून से सना हुआ दिल हाथ में लेकर उसने अपने आदमियों को दिखाया और फिर जोर से चिल्लाया।
“मेरे भाइयो, यह इस दुश्मन का दिल है। इसका हौसला, इसकी ताकत इसी में है। लो, ले लो इसे।”
दिल दहलाने वाले इस दृश्य के बाद औरतों की चीखों और विलाप से पूरा माहौल गूँज गया। वे अपने गहने उतारकर फेंकने लगीं। अपने बाल नोचने लगीं। पागलपन जैसी हालत में इधर-उधर घूम-घूमकर अपने मृत परिजनों को तलाशने लगीं। जिन्होंने उन्हें मारा था, उन्हें कोसने लगीं।
उनका विलाप इतना भयावह था कि इससे पूर्व के हजारों-लाखों पीड़ितों ने भी न पहले सुना होगा और न कभी आगे सुनेंगे। महिलाएँ मृत परिजनों के शवों को पीट-पीटकर रो रहीं थीँ। रोते-रोते उनके बाल और कपड़े तक गीले हो चुके थे। हत्याकांड की भयावहता देखकर उनकी ऐसी रुलाई फूटी थी।
लेकिन… लेकिन किसी लड़ाई का फैसला एक पल में नहीं होता। हर संघर्ष में अप्रत्याशित, आकस्मिक हस्तक्षेप होता ही है। अक्सर, परिणाम उसी पर निर्भर होता है। इस संघर्ष में भी अप्रत्याशित हस्तक्षेप होने वाला था। वह इस लड़ाई के नतीजे को निर्णायक रूप से पलट देने वाला था। हालाँकि, आसमान छू रहे अहंकार के कारण मैडबुल को ऐसा कोई हस्तक्षेप होने की दूर-दूर तक आशंका भी नहीं थी। इसीलिए आने वाले घटनाक्रमों से वह पूरी तरह हैरान हो जाने वाला था। उसकी हैरानी दहशत में बदलने वाली थी।
और अचानक हवा में ठंडक बढ़ने के साथ ही उसकी शुरुआत भी हो गई।
#MayaviAmbaAurShaitan
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(नोट : यह श्रृंखला एनडीटीवी की पत्रकार और लेखक ऋचा लखेड़ा की ‘प्रभात प्रकाशन’ से प्रकाशित पुस्तक ‘मायावी अंबा और शैतान’ पर आधारित है। इस पुस्तक में ऋचा ने हिन्दुस्तान के कई अन्दरूनी इलाक़ों में आज भी व्याप्त कुरीति ‘डायन’ प्रथा को प्रभावी तरीक़े से उकेरा है। ऐसे सामाजिक मसलों से #अपनीडिजिटलडायरी का सरोकार है। इसीलिए प्रकाशक से पूर्व अनुमति लेकर #‘डायरी’ पर यह श्रृंखला चलाई जा रही है। पुस्तक पर पूरा कॉपीराइट लेखक और प्रकाशक का है। इसे किसी भी रूप में इस्तेमाल करना कानूनी कार्यवाही को बुलावा दे सकता है।)
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पुस्तक की पिछली 10 कड़ियाँ
73 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : मैडबुल दहाड़ा- बर्बर होरी घाटी में ‘सभ्यता’ घुसपैठ कर चुकी है
72 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’: नकुल मर चुका है, वह मर चुका है अंबा!
71 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’: डर गुस्से की तरह नहीं होता, यह अलग-अलग चरणों में आता है!
70 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’: आखिरी अंजाम तक, क्या मतलब है तुम्हारा?
69 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’: जंगल में महज किसी की मौत से कहानी खत्म नहीं होती!
68 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’: मैं उसे ऐसे छोड़कर नहीं जा सकता, वह मुझसे प्यार करता था!
67 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : उस वासना को तुम प्यार कहते हो? मुझे भी जानवर बना दिया तुमने!
66 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : उस घिनौने रहस्य से परदा हटते ही उसकी आँखें फटी रह गईं
65 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : नकुल में बदलाव तब से आया, जब माँ के साथ दुष्कर्म हुआ
64 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह रो रहा था क्योंकि उसे पता था कि वह पाप कर रहा है!
भारत के लोग आधिकारिक बैठकों में समय पर नहीं आते, यह एक ‘आम धारणा’ है।… Read More
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