Mayavi Amba-36

‘मायावी अम्बा और शैतान’: ऐसा दूध-मक्खन रोज खाने मिले तो डॉक्टर की जरूरत नहीं

ऋचा लखेड़ा, वरिष्ठ लेखक, दिल्ली

तारा उदास थी। पिछले सात दिनों से उसकी गाय ‘कोरल’ खट्‌टा सा दूध ही दे रही थी। अक्सर वह फट जाता था। गाँव के बड़े-बुजुर्ग इसे किसी बड़े खतरे का संकेत मान रहे थे। हालाँकि उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि इस लक्षण में किस तरह के खतरे का संकेत छिपा है। वे भोर होने से पहले इसका पता लगाने वाले थे।

अलबत्ता खतरे की शुरुआत उसी शाम से हो गई। शाम को परकोटे से घिरे गाँव के द्वार पर दो अजनबियों ने दस्तक दी। उन्होंने सरकारी अफसर के तौर पर अपनी पहचान बताई। भीतर आने की अनुमति माँगी और गाँव के मुखिया फेमडोम लामा को बताया कि सभी गाँवों की तलाशी ली जा रही है। खुफिया सूचना है कि ग्रामीणों के घरों में हथियार बनाने के कारखाने चल रहे हैं। उन्होंने मुखिया से इस तलाशी अभियान में सहयोग माँगा।

“हम निरीक्षक हैं, शहर से आए हैं”, दोनों में से ऊँचे वाले शख्स ने सपाट तरीके से कहा, “हमें शिकायत मिली है कि कुछ लोग गाँव में हथियार जमा कर रहे हैं। घरों में अवैध रूप से बम बना रहे हैं। हम इसकी जाँच करने आए हैं। तुम जानते हो कि ऐसे काम कानून के खिलाफ हैं। जो ऐसे अपराधियों की मदद करते हुए पाया जाएगा, वह भी राज्य के खिलाफ साजिश रचने का आरोपी होगा।”

“आपको जाँच करने की जरूरत नहीं है। यहाँ केवल महिलाएँ, बच्चे, बूढ़े और बीमार लोग ही हैं। यहाँ ऐसा कोई अवैध काम भी नहीं हो रहा है।”

“लेकिन तुम्हारे पास दूसरा विकल्प नहीं है। हमें जाँच करने की तुम्हें इजाजत देनी ही होगी” तब उनसे उनकी पहचान प्रमाणित करने के लिए कहा गया। जवाब में दोनों ने तुरंत अपने पहचान पत्र निकाल कर दिखा दिए। उन्होंने अपने चेहरों के ठीक नीचे दोनों हाथों के अँगूठों और तर्जनी अँगुलियों से पहचान पत्र ऐसे पकड़ रखे थे, जैसे स्कूली बच्चे पकड़ते हैं। साथ ही वे अपने उत्सुक चेहरों पर जबरन मुस्कान लाने की कोशिश भी कर रहे थे। मानो गाँव वालों पर कोई एहसान कर रहे हों।

फेमडोम लामा ने दास्ताने से ढँकी अपनी अँगुलियों से दोनों के पहचान पत्रों को टटोलकर देखा। फिर तसदीक कर लेने के बाद अनिच्छा से उन्हें गाँव के दरवाजे से भीतर आने की इजाजत दी।

भीतर आते ही दोनों निरीक्षक अपने काम में लग गए। घर-घर जाकर जाँच करते हुए अपनी डायरी में कुछ लिखने लगे। वे साथ-साथ लोगों से पूछताछ भी करते जाते थे। गाँव के उत्साहित बच्चे हुजूम की शक्ल में उनकी नकल करते हुए उनके पीछे-पीछे चल रहे थे।

जाँच करते हुए जब वे तारा के घर पर पहुँचे तो वहाँ उसकी सुंदर सफेद गाय ‘कोरल’ को देखकर दंग रह गए। वह बहुत सेहतमंद थी। तारा ने तुरंत उन लोगों की खिदमत में दूध पेश किया। ऐसा करके निश्चित ही, वह अपनी सुरक्षा के लिए उनसे आश्वासन चाहती थी।

“वाह! बहुत स्वादिष्ट है! और मीठा भी”, एक निरीक्षक तारीफ करने से खुद को रोक नहीं सका।

“हाँ, वह भी बिना शक्कर के”, दूसरे ने भी हाँ में हाँ मिलाई।

“रुकिए मालिक, मैं आपके लिए मक्खन भी ले आती हूँ, घर ले जाइएगा। इसी गाय के दूध से बना है।”

“मक्खन?”

“हाँ, बहुत अच्छा होता है, सेहत के लिए। आपके यहाँ बच्चे तो होंगे न मालिक? अगर ऐसा दूध-मक्खन रोज खाने को मिले, तो डॉक्टर के पास जाने की जरूरत नहीं पड़ती”, तारा ने खुशी से बताया। उसकी बातें सुनकर वे दोनों वहाँ कुछ देर और रुक गए। उन्होंने थोड़ा और दूध पिया। तब तक तारा उनके लिए सुगंधित सफेद मक्खन बाँधकर ले आई। तभी अचानक मुखिया का पोता चीखते-चिल्लाते हुए वहाँ आ पहुँचा।

“वे लोग यहाँ आ गए हैं। यहाँ आ गए हैं वे लोग!”

“वे छिपे हुए हैं!! वे झाड़ियों की आड़ में छिपे हैं!”

“कौन बेटा, किसकी बात कर रहे हो तुम?”

“वे सौ से भी ज्यादा हैं!! रेजीमेंट के सैनिक। वे वहाँ बाहर छिपे हुए हैं।” लड़के की आवाज में डर साफ झलक रहा था। उसे सबने महसूस किया और उन सभी की आँखों में भी दहशत झाँकने लगी।

“इधर आओ बेटा। पहले तो शांत हो जाओ और फिर आराम से बताओ कि तुमने क्या देखा?”, फेमडोम लामा की आवाज गंभीर थी।

“मैंने उनकी वरदी देखी।”

“मैंने उन्हें भी देखा – वे बहुत ज्यादा तादाद में हैं!”

“और उनके पास हथियार भी हैं!”

“क्या तुम्हें पक्का यकीन है बेटा? या ऐसा तो नहीं कि वे बस, यहाँ से गुजर रहे हों? क्योंकि तब तो उनसे डरने की कोई जरूरत ही नहीं है?”

“नहीं, नहीं! वे यहीं आ रहे हैं। यहीं हमारी तरफ!”

इतने में ही किसी ने गाँव के द्वार पर जोर की दस्तक दी। निरीक्षकों के भीतर आने के बाद वह द्वार फिर से बंद कर दिया गया था। अभी कोई कुछ समझता कि उससे पहले ही लाउड-स्पीकर पर भारी सी आवाज गूँजी।

“मैं हिल रेजीमेंट का लेफ्टिनेंट बोल रहा हूँ। अपने कमांडर के हुक्म से मैं यहाँ आया हूँ। हमारे आदमियों ने गाँव को चारों ओर से घेर लिया है। हमें सूचना मिली है कि तुम लोगों ने हमारे दो जवानों को पकड़कर कैद किया है। यह गैरकानूनी और बहुत गंभीर अपराध है। दोनों को तुरंत हमारे हवाले कर दो।”

“आपको किसी ने गलत खबर दी है। रेजीमेंट के किसी भी सैनिक को हमने जबरदस्ती नहीं रोका है”, फेमडोम लामा ने भी जोर से चिल्लाकर जवाब दिया।

“उनका प्रतिकार करने की क्या जरूरत है?”, सुशीतल ने मुखिया को बीच में टोका, “हमें पता है कि यहाँ कोई बंधक नहीं है, तो आप उन्हें गुस्सा क्यों दिला रहे हैं?”

“तुम अपना मुँह बंद रखो! यकीन नहीं होता कि तुम तनु बाकर के भांजे हो!”

“जुबान काबू में रखो मुखिया!”

“मैं तुम्हारे मुँह नहीं लगना चाहता, समझे”, मुखिया ने भी लपक कर जवाब दिया और फिर रेजीमेंट के अफसर से मुखातिब होकर बोला, “यहाँ दो इंस्पेक्टर हैं। वे अपनी मर्जी से आए हैं। यह देखने के लिए कि गाँव में कोई गैरकानूनी तरीके से हथियार या बम तो नहीं बना रहा है। और वे सिर्फ हमारे गाँव की तलाशी नहीं ले रहे हैं। अन्य गाँवों में भी उन्होंने छान-बीन की है।” लेकिन मुखिया की बात पर किसी ने ध्यान नहीं दिया।

“ऐसी किसी तलाशी के लिए अनुमति नहीं दी गई है। हम किसी हथियार कारखाने के बारे में नहीं जानते। तुम लोगों ने रेजीमेंट के सैनिको को बंधक बनाया है। उन्हें तुरंत हमारे हवाले कर दो।”
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(नोट :  यह श्रृंखला एनडीटीवी की पत्रकार और लेखक ऋचा लखेड़ा की ‘प्रभात प्रकाशन’ से प्रकाशित पुस्तक ‘मायावी अंबा और शैतान’ पर आधारित है। इस पुस्तक में ऋचा ने हिन्दुस्तान के कई अन्दरूनी इलाक़ों में आज भी व्याप्त कुरीति ‘डायन’ प्रथा को प्रभावी तरीक़े से उकेरा है। ऐसे सामाजिक मसलों से #अपनीडिजिटलडायरी का सरोकार है। इसीलिए प्रकाशक से पूर्व अनुमति लेकर #‘डायरी’ पर यह श्रृंखला चलाई जा रही है। पुस्तक पर पूरा कॉपीराइट लेखक और प्रकाशक का है। इसे किसी भी रूप में इस्तेमाल करना कानूनी कार्यवाही को बुलावा दे सकता है।) 
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पुस्तक की पिछली 10 कड़ियाँ 

35- ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : इत्तिफाक पर कमजोर सोच वाले लोग भरोसा करते हैं
34- ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : जो गैरजिम्मेदार, वह कमजोर कड़ी
33- ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह वापस लौटेगी, डायनें बदला जरूर लेती हैं
32- ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह अचरज में थी कि क्या उसकी मौत ऐसे होनी लिखी है?
31- ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : अब वह खुद भैंस बन गई थी
30- ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : खून और आस्था को कुरबानी चाहिए होती है 
29- ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : मृतकों की आत्माएँ उनके आस-पास मँडराती रहती हैं
28 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह तब तक दौड़ती रही, जब तक उसका सिर…
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