Mayavi Amba-43

मायावी अम्बा और शैतान : केवल डायन नहीं, तुम तो लड़ाकू डायन हो

ऋचा लखेड़ा, वरिष्ठ लेखक, दिल्ली

हालाँकि अंबा को वह कुछ विचित्र सी सुंदर लगी। उसकी आँखों में गहरी और उग्र नारंगी डोरियाँ तैरती थीं। मानो, आग की बारीक सी लपटें हों। इस वक्त पूरे कमरे में सिर्फ उसी की उपस्थिति हावी थी। जैसे, उसके सिवा कोई और हो ही न। इसी बीच, जब उसने पलकें झपकाए बिना अंबा को देखने के लिए गर्दन घुमाई तो उसकी निगाहें जंगली, डरावनी और किसी नागिन सी महसूस हुईं। उसके जिस्म से अजीब सी गंध आती थी। कुछ वैसी, जैसी तूफानी बारिश में जंग लगे लोहे से आती है, या फिर तीखी मिर्च जैसी। उसके साथ उसकी सुरक्षा के लिए घने बालों वाला काला भेड़िया भी था। उसका आधा शरीर बर्फ से ढँका था। वह अकेला नहीं था अलबत्ता। जल्दी ही वहाँ उसी के जैसे कुछ और भेड़ियों ने आकर अपनी मालकिन ‘पटाला’ को घेर लिया।

वे सब ऊँचे-पूरे और मजबूत माँसपेशियों वाले जीव थे। ऊँचाई सात फीट के करीब और शरीरों पर जगह-जगह घावों के निशान। पिछले कई हिंसक संघर्षों के दौरान जख्मों के ये निशान उनके शरीरों पर पड़े थे। उन जीवों को देख अंबा ने मन ही मन सोचा, “क्या यही वे घातक शिकारी ‘टेंगू’ (स्वर्ग के कुत्ते) हैं, जिनके बारे में ओझा लोग अक्सर कानाफूसी किया करते थे। आधे भेड़िये और आधे कुत्ते जैसे। होरी पर्वतों की रखवाले दैत्य?” उसने गौर से देखा तो पाया कि उनकी पीठों पर बालों के बीच-बीच में जैतून की छाल की तरह हरी पटि्टयाँ भी हैं। इससे उन्हें झाड़ियों और ऊँची हरी घास के बीच छिपने और शिकार करने में आसानी होती थी।

“डरो मत। ये तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुँचाएँगे। डोमोवई के लिए टेंगू बहुत सज्जन रहे हैं!”

पटाला की आवाज ऐसे गूँजी, जैसे सैकड़ों भारी-भरकम भैसें रँभाई हों। हालाँकि उसने अंबा को भरोसा दिया था कि ‘टेंगू’ पर्वतों के मूल निवासियों के शत्रु नहीं हैं। पर्वतों तथा जंगलों का भी इनसे बेहतर रखवाला कोई नहीं है। मगर ये उनके लिए जरूर किसी आपदा से कम नहीं, जो इनके द्वारा संरक्षित इलाके में घुसपैठ की कोशिश करते हैं। हालाँकि गाँवों में अब तक कहा जाता था कि ‘टेंगू’ को कभी कोई देख नहीं पाया और अगर किसी ने देखा भी, तो वह इनके बारे में किसी को कुछ बताने के लिए जिंदा नहीं रहा। कुछ शिकारी किस्म के लोग कभी-कभार इनके बारे में बस इतना ही बताते थे कि उन्होंने “जंगल के अँधेरे में गुम होती भयानक बड़ी पूँछ देखी। खुद से करीब छह फीट दूर इनकी चमकती आँखों या नुकीले दाँतों की झलक देखी। उन पर झपटने और उन्हें नोंचकर खा जाने को एकदम तैयार।” बस, इसी तरह की बातों से ये रहस्यमय जीव वक्त के साथ बदनाम होते गए। इनके डर से भागे, जख्मी हुए और कई मृतप्राय लोगों के कहे-सुने किस्सों ने इन जीवों को अधिक कुख्यात कर दिया। धीरे-धीरे इनके बारे में रहस्य गहराता गया और ये जीव दैत्य-दानव की तरह मान लिए गए। ऐसे जीवों को वह महिला ‘पटाला’ बड़ी आसानी से अपने काबू में किए हुए थी।

“लगता है, तुम मुझे देखकर निराश हो गई! तुम्हें क्या लगा था– मेरी पीठ पर पंख लहराते होंगे? पैरों की जगह पंजे होंगे? और उन पंजों में 10-10 इंच के नाखून होंगे?”, पटाला ने गले में पहनी हुई माला को अँगुलियों से सहलाते हुए अंबा से पूछा। अंबा ने गाँव के ओझाओं से उस माला के बारे में किस्से सुन रखे थे। वे उसे टेंगू की जिंदा आँख कहते थे। कहा जाता था कि उस माला को पहनने वाले के भीतर विपत्तियों को दूर करने की शक्ति आ जाती है। बशर्ते, वह उस माला को पहनने का सच्चा अधिकारी हो।

“तुम कौन हो?”, अंबा पूछना चाहती थी लेकिन ये शब्द उसके गले के भीतर ही सूख गए क्योंकि सवाल एकदम बेमतलब था।

“लेकिन तुम जानती हो कि मैं कौन हूँ, है न? डायन हमेशा अपने तरह के लोगों को झट से पहचान लेती है। मैं वही हूँ, जिसे लोग ‘जोतसोमा की डायन’ कहते हैं। जिसका नाम लेने से भी लोग डरते हैं!” पटाला ने उसकी ओर देखा और धीरे से हँस दी। इस पर अंबा ने कोशिश की कि अपनी प्रतिक्रिया में वह चौंके नहीं।

“तुमने क्या सोचा था कि कोई नुकीले दाँत और खून से सने हुए मुँह वाली औरत होगी? जिसे देखकर ही किसी की रूह काँप जाए? भयानक चेहरा होगा कोई? लेकिन तुम्हें तो पता होना चाहिए सब अच्छी तरह!”

“मैं कोई डायन नहीं हूँ”, अंबा ने कहा। गुस्से ने उसके डर की जगह ले ली।

गुस्सा होना अच्छा लगा उसे। इससे उसे कुछ नियंत्रण का एहसास हुआ। यह देख पटाला मुस्कुरा दी।

“केवल डायन नहीं। तुम तो लड़ाकू डायन हो”, उसने कहा। “डोमोवई ने तुम्हें पहचान लिया था। इसीलिए तो उसने तुम पर हमला नहीं किया था।” अंबा नि:शब्द थी। उसे उसके शब्दों पर यकीन नहीं होता था।

“तुम अपने भीतर की डायन को स्वीकार करना सीख जाओगी”, पटाला ने कहा, “जितनी जल्दी यह कर लोगी, उतना तुम्हारे लिए बेहतर होगा। और अगर ऐसा नहीं करोगी तो तुम कमजोर और आँख की अंधी कहलाओगी क्योंकि तुम अपनी मौत खुद चुनोगी। तुम्हें तुम्हारे अंत पर अफसोस होगा।”

इसके साथ ही अंबा के भीतर मौजूद शक्तियों की आवाजें भी उसके मस्तिष्क में गूँजने लगीं। वह उन आवाजों की उमड़-घुमड़ में डूबने-उतराने लगी। उसे इस वक्त खुद पर गुस्सा आ रहा था क्योंकि वह पटाला के सामने बेहद असहाय महसूस कर रही थी।

“तुम्हारे भीतर अलौकिक शक्तियों के चिह्न मौजूद हैं। तुम्हें ऊपर वाले ने इन शक्तियों की नेमत बख्शी है। क्या तुमने अपने भीतर से उन आवाजों को सुना नहीं है?”

“नहीं, ऐसी कोई आवाजें नहीं हैं। मुझे नहीं पता कि तुम किन आवाजों की बात कर रही हो।”

“क्या तुम वहाँ खड़ी होकर भी झूठ बोलोगी कि तुमने अपने भीतर की आवाजों को नहीं सुना?”

अंबा ने झूठ ही बोला था। उसके लिए होरी की गलियों में अपने भीतर की आवाजों को छिपाना तो बनता था। वहाँ वह उनसे नफरत भी कर सकती थी। वह नफरत के बारे में जानती थी। भय को भी पहचानती थी। मगर उसे यहाँ इस तरह अलग सा क्यों लगना चाहिए? शायद इसीलिए जब पटाला ने उसे ‘डायन’ कहकर बुलाया तो उसको वह शब्द गाली जैसा नहीं लगा। यहाँ वह शब्द उसे किसी अहंकार से लिपटा हुआ भी नहीं जान पड़ा। बल्कि ऐसा लगा जैसे यह एक साधारण से तथ्य की तरह बोला गया हो।

#MayaviAmbaAurShaitan
—-
(नोट :  यह श्रृंखला एनडीटीवी की पत्रकार और लेखक ऋचा लखेड़ा की ‘प्रभात प्रकाशन’ से प्रकाशित पुस्तक ‘मायावी अंबा और शैतान’ पर आधारित है। इस पुस्तक में ऋचा ने हिन्दुस्तान के कई अन्दरूनी इलाक़ों में आज भी व्याप्त कुरीति ‘डायन’ प्रथा को प्रभावी तरीक़े से उकेरा है। ऐसे सामाजिक मसलों से #अपनीडिजिटलडायरी का सरोकार है। इसीलिए प्रकाशक से पूर्व अनुमति लेकर #‘डायरी’ पर यह श्रृंखला चलाई जा रही है। पुस्तक पर पूरा कॉपीराइट लेखक और प्रकाशक का है। इसे किसी भी रूप में इस्तेमाल करना कानूनी कार्यवाही को बुलावा दे सकता है।) 
—- 
पुस्तक की पिछली 10 कड़ियाँ 

42 – मायावी अम्बा और शैतान : भाई को वह मौत से बचा लाई, पर निराशावादी जीवन से…. 
41 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : अनुपयोगी, असहाय, ऐसी जिंदगी भी किस काम की?
40 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : खून से लथपथ ठोस बर्फीले गोले में तब्दील हो गई वह
39 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह कुछ और सोच पाता कि उसका भेजा उड़ गया
38- मायावी अम्बा और शैतान : वे तो मारने ही आए थे, बात करने नहीं
37 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : तुम्हारे लोग मारे जाते हैं, तो उसके जिम्मेदार तुम होगे
36 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’: ऐसा दूध-मक्खन रोज खाने मिले तो डॉक्टर की जरूरत नहीं
35- ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : इत्तिफाक पर कमजोर सोच वाले लोग भरोसा करते हैं
34- ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : जो गैरजिम्मेदार, वह कमजोर कड़ी
33- ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह वापस लौटेगी, डायनें बदला जरूर लेती हैं

सोशल मीडिया पर शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *