Mayavi Amba-78

‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वहाँ रोजी मैडबुल का अब कहीं नामो-निशान नहीं था!

ऋचा लखेड़ा, वरिष्ठ लेखक, दिल्ली

वह मानो किसी सपने से उठी हो। रात के सपने से, भयावह रात के सपने से बाहर आकर सीधे तनकर खड़ी हो गई हो। उसकी आँखें सामने खड़े उन सैनिकों पर टिकीं थीं, जो डर के मारे पसीने-पसीने हुए जा रहे थे। बेसुध हो रहे थे। वह साँप की तरह रेंगती हुई उनके और करीब आ गई। साँप के जैसी ही गंध उसके चारों तरफ से आ रही थी। हालाँकि उसके शरीर का बहुत बड़ा भाग अब भी नजर नहीं आता था। वह हवा की तरह धूसर दिख रही थी। होरी के जंगलों को ढँक चुकी धुंध के बीच वह उसी की तरह बनकर समाई हुई थी। तभी अचानक वह जोर से चीखी। ऐसे जैसे सौ भेड़ियों ने मिलकर आवाज की हो, सैकड़ों शैतान एक साथ चीखे हों। उसकी आवाज सुनकर कई सैनिकों के हाथ से तो बंदूकें छूटकर नीचे ही गिर गईं। सब भूलकर अब वे सैनिक अपने कानों पर हाथ रखे हुए थे कि उनके कान के परदे फट न जाएँ।

पटाला अकेली नहीं थी अलबत्ता। बहुत तेजी से आती-जाती हवा ने यह एहसास करा दिया था। उस हवा के आने-जाने से पहले अजीब सी चक्करदार आवाज हुई। फिर सीटी सी बजने लगी। इसके बाद कराहने-सिसकने की आवाजें चारों ओर से सुनाई देने लगीं। इन आवाजों को सुनकर पक्षियों के समूह भी बेचैन हो गए। वे घबराहट में चट्‌टानों के चारों तरफ फड़फड़ाने लगे।

इतने में ही, उस धुंध के बीच पटाला की माँ का चेहरा नजर आने लगा। भूरे माँस के छेदों में धँसी उसकी आँखें भी सामने खड़े सैनिकों को घूर रही थीं। तभी, फिर एक भयानक चीख सुनाई दी। उसके साथ ही भयानक दुर्गंध चारों ओर फैल गई। इसी बीच, धुंध से निकलकर एक आकृति सामने आ गई। बहुत विशाल लेकिन दुबली-पतली सी। वह काया जोर-जोर से रोते हुए एक चट्‌टान के साथ खुद को यूँ खुरच रही थी, मानो अपने आप को कई हिस्सों में काट देना चाहती हो। उसका रोना इतना भयानक था कि सब के सब सैनिक दहशत से बुरी तरह काँप उठे।

अभी वे नजदीक से कुछ देख-समझ पाते कि वह काया वाकई, कई हिस्सों में बँट गई। साक्षात मौत की परछाइयों की तरह उस काया के सभी हिस्सों ने उन सैनिकों पर हमला कर दिया। उनके सीने फाड़ दिए। इससे माँस के लोथड़े उनके सीनों के बाहर लटक गए। सामने से कई सैनिकों की तो रीढ़ भी नजर आने लगी। लेकिन इतने पर भी उस काया का क्रोध शांत नहीं हुआ। वह अब भी अंधे आक्रोश से उबल रही थी। देखते-देखते उसके सब हिस्से मिलकर फिर एकजुट हो गए और अगले हमले की तैयारी में दिखने लगे। घायल सैनिकों को उस काया के चेहरे पर खून के निशान दिखाई दे रहे थे। उसके दाँतों से माँस के टुकड़े लटक रहे थे।

लेकिन यह क्या? तूफानी हवा का एक झोंका उसी वक्त अचानक फिर आया। पत्तियों की खड़खड़ाहट की जोर की आवाज हुई और गुस्साई मक्खियों का बड़ा हुजूम भिनभिनाते हुए सामने से आता दिखाई दिया। वे गहरे अंधकार से निकलकर नया आतंक बनकर टूट पड़ीं थीं। यही नहीं, पागल से जानवरों की भीड़ भी भयानक आवाजें करते हुए चारों ओर से कतारों में सामने आने लगी। उनकी यह भीड़ तब तक बढ़ती रही, जब तक कि उन्होंने सैनिकों का शिविर हर ओर से घेर नहीं लिया। इस भीड़ से घिरे शिविर के तंबू अब ऐसे लगने लगे, जैसे भारी शोर करते समुद्र के बीच कोई द्वीप हों। जबकि इन्हें घेर चुके जानवर भयानक उछाल मारती लहरों की तरह नजर आने लगे। उन जानवरों की ऊँचाई सात से 10 फीट तक थी। सिर से पूँछ तक लंबाई ढाई फीट के करीब और वजन हरेक का लगभग सौ किलोग्राम होगा। अलग-अलग आकार-प्रकार और बनावट वाले जीवों की पूरी फौज थी यह। उनकी दाढ़ी हवा में झूल रही थी और मुँह से लार टपक रही थी।

इस फौज से बचाव के लिए रैड-हाउंड्स के लड़ाकों ने गोलियाँ बरसानी शुरू कर दीं। सबसे ताकतवर जवानों ने रोजी मैडबुल को चारों ओर से घेर लिया, ताकि उसे सुरक्षित रख सकें। कर्नल मैडबुल को वहाँ से बाहर निकालने के लिए एक गाड़ी लगातार बीचों-बीच आने की कोशिश करने लगी। तभी जानवरों की फौज ठहर गई। उनकी गुर्राहट भी बंद हो गई। फिर कोई संकेत हुआ और दो-दो जानवर एक-दूसरे से पीठ सटाकर खड़े हो गए। ऐसे वे कोई व्यूह सा बनाने लगे। उन जानवरों ने तीन-तीन हाथ की दूरी पर ऐसे कुल सात व्यूह बनाए, और फिर अपने मुख्य लक्ष्य पर नजर रखते हुए तेजी से आगे बढ़ने लगे। उनके रोएँ हरे से रंग के थे। पीठ पर भूरे रंग की धारियाँ थीं। इससे ऊँची घास के बीच उन्हें देख पाना मुश्किल था। वे एक खास अंदाज में अपने चारों ओर घूमते हुए लगातार आगे बढ़ रहे थे। इससे उन्हें पकड़ पाना लगभग असंभव हो गया था। देखते ही देखते वे रैड हाउंड्स के जवानों पर टूट पड़े।

सबसे पहले हमला करने वाले जानवरों के समूह ने कुछ देर रैड हाउंड्स के जवानों को तहस-नहस किया और फिर आगे बढ़ गया। उसकी जगह पीछे से वैसा ही दूसरा समूह आकर रैड हाउंड्स पर टूट पड़ा। उसने भी उनसे थोड़ी देर मुकाबला किया और फिर गोल-गोल घूमते हुए वह समूह भी आगे बढ़ गया। सब के सब इसी तरह केंद्र की ओर बढ़ते गए। इसी बीच, झुंड के आखिरी सदस्य से व्यूह पूरा होने का संकेत मिला और अब तक बाहर की ओर मुँह कर के खड़े जानवर भी दुश्मन को नष्ट करने के लिए भीतर की तरफ मुड़ गए। उनके मुँह खून से पहले ही लथपथ थे। मुँह से गरम हवा निकल रही थी। उनके कदमों की धमक से धरती हिल रही थी।

उस विचित्र व्यूह-रचना से अब तक बेखबर दुश्मन को देर से समझ आया कि उसे इन जानवरों ने चारों तरफ से सात परतों में घेर लिया हे। रैड हाउंड्स के जवानों के सामने अब बचने का कोई रास्ता नहीं बचा। दहशत उनकी आँखों में सूरज की तरह चमकने लगी। देखते ही देखते उनकी आँखों को हमलावर जानवरों ने पंजों से नोच डाला। उनकी हडिडयों को काट डाला। अंगों को क्षत-विक्षत कर दिया। शरीर के भीतर के अंगों को बाहर खींच निकाला। सैकड़ों पंजों, हजारों दाँतों ने इस वहशी कारनामे को अंजाम दिया।

यह मंजर देखकर मैडबुल तो पागल ही हो गया। वह बेतहाशा गोलियाँ बरसाने लगा। उसे इतना तक होश नहीं रहा कि वह गोलियाँ किस पर चला रहा है, उसके अपने आदमियों या हमलावर जानवरों पर। उसके चारों ओर निर्ममता, क्रूरता का तांडव चल रहा था। चीख-पुकार मची हुई थी। इस माहौल के बीच ही जानवरों की वह फौज मैडबुल को लेकर कब दक्षिण की ओर निकल गई, किसी को भनक तक नहीं लगी।

वहाँ रोजी मैडबुल का अब कहीं नामो-निशान नहीं था।

#MayaviAmbaAurShaitan

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(नोट :  यह श्रृंखला एनडीटीवी की पत्रकार और लेखक ऋचा लखेड़ा की ‘प्रभात प्रकाशन’ से प्रकाशित पुस्तक ‘मायावी अंबा और शैतान’ पर आधारित है। इस पुस्तक में ऋचा ने हिन्दुस्तान के कई अन्दरूनी इलाक़ों में आज भी व्याप्त कुरीति ‘डायन’ प्रथा को प्रभावी तरीक़े से उकेरा है। ऐसे सामाजिक मसलों से #अपनीडिजिटलडायरी का सरोकार है। इसीलिए प्रकाशक से पूर्व अनुमति लेकर #‘डायरी’ पर यह श्रृंखला चलाई जा रही है। पुस्तक पर पूरा कॉपीराइट लेखक और प्रकाशक का है। इसे किसी भी रूप में इस्तेमाल करना कानूनी कार्यवाही को बुलावा दे सकता है।) 

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पुस्तक की पिछली 10 कड़ियाँ

77 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह पटाला थी, पटाला का भूत सामने मुस्कुरा रहा था!
76 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : डायन को जला दो! उसकी आँखें निकाल लो!
75 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : डायन का अभिशाप है ये, हे भगवान हमें बचाओ!
74 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : किसी लड़ाई का फैसला एक पल में नहीं होता
73 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : मैडबुल दहाड़ा- बर्बर होरी घाटी में ‘सभ्यता’ घुसपैठ कर चुकी है
72 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’: नकुल मर चुका है, वह मर चुका है अंबा!
71 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’: डर गुस्से की तरह नहीं होता, यह अलग-अलग चरणों में आता है!
70 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’: आखिरी अंजाम तक, क्या मतलब है तुम्हारा?
69 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’: जंगल में महज किसी की मौत से कहानी खत्म नहीं होती!
68 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’: मैं उसे ऐसे छोड़कर नहीं जा सकता, वह मुझसे प्यार करता था!

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