ऋचा लखेड़ा, वरिष्ठ लेखक, दिल्ली
कैंडी के नजदीक आते ही मथेरा उसकी उम्र का अंदाज लगाने लगा। वह अधेड़ महिला थी, लेकिन उसे देखकर उसकी उम्र का सटीक अनुमान लगाना मुश्किल था। वैसे मथेरा को अब तक उम्मीद यह थी कि वह किसी ऐसी वैश्या से मिलने वाला है जिसने बेढंगे कपड़े पहने होंगे, जिसकी आँखों के नीचे बैगनी रंग के घेरे पड़े होंगे, जो अस्त-व्यस्त सी होगी। लेकिन वह गलत साबित हुआ। कैंडी उसके अनुमान के ठीक विपरीत थी। उसकी सेहत तो बढ़िया थी ही, वह जोश से भी भरी हुई थी।
कैंडी के नाक-नक्श किसी लोमड़ी की तरह थे। आँखें थोड़ी झुकीं सी। नाक ऊपर की ओर ऐसे उठी हुई, जैसी किसी सतर्क और जिज्ञासु जीव की होती है। बेवकूफ तो वह कतई नहीं लगती थी। उसके होंठ भरे हुए थे। दाँत एकदम बराबर और बाल चमकदार तांबे जैसे रंग के थे। कई लोग ऐसे रंग को ‘लाल’ भी कह देते हैं। उन दोनों से मुलाकात से ठीक पहले कैंडी ने अपने गालों की लाली को फिर से ठीक किया था, ताकि उसकी उत्तेजकता बनी रहे। थोड़ी और बढ़ ही जाए।
“हाँ, तो बताओ क्या बात है?” उसने इस तरह से बात आगे बढ़ाई जैसे दो दोस्त आपस में बातें करते हैं। इसका एक आशय यह भी हो सकता था कि वह उन दोनों का सहयोग करने को पूरी तरह तैयार थी।
“सुना है, तेरे संबंध बहुत दिलचस्प लोगों के साथ हैं।”
“क्या मतलब?”
“मतलब ये कि कौन-कौन लोग हैं, तेरे नजदीकियों में?”
“मैं तुम्हें क्यों बताऊँ कि मैं किस-किस के साथ उठती-बैठती हूँ? और तुम्हें बताने से भला मेरा फायदा भी क्या?” कैंडी के शब्द अब तीखे हो गए थे, जिनसे उसका बड़बोलापन झलक रहा था। मुँह से शराब की गंध आ रही थी। यह सब देख-सुनकर उसके बारे में मथेरा और मणिमल अपनी राय बदलने को मजबूर हो गए। पहले उन्होंने उसे एक कमसिन सी हसीना समझा था, यही कोई 30 के आस-पास उम्र वाली। लेकिन जब नजदीक से गौर किया तो उसकी आँखों के नीचे त्वचा में उन्हें कुछ सिकुड़नें और काले धब्बे भी दिखाई दिए। इससे उन्होंने उसकी अनुमानित उम्र में पाँच साल और बढ़ा दिए।
“फायद है न तेरा, साली छिनाल। अगर तू सब सच बताएगी, तो तेरा ये नाजुक मखमली जिस्म सलामत रह जाएगा, समझी!”
ऐसा कहते हुए मथेरा की आँखों में शिकारी भेड़िए के दाँतों की तरह एक अजीब सी चमक उभर आई।
“तुम हो कौन बे, हरामियो?” अपने पहले जैसे बेलौस अंदाज में कैंडी ने सवाल किया और चेहरे पर उभरी फुंसी को कुरेदते हुए फोन पर कोई वीडियो देखने लगी। मानो उसे अपने सवाल के जवाब में दिलचस्पी ही न हो।
हालाँकि जब मथेरा और मणिमल ने अपना परिचय दिया तो उसके तेवर ढीले पड़ गए। “क्या मैं किसी मुसीबत में हूँ?”, कैंडी ने आशंका जताते हुए कहा, “वैसे, मेरे पास कई जवान छोरियाँ हैं। बिलकुल अछूती। तुम चाहो तो….” उसके सुर कुछ कमजोर हुए थे, लेकिन आँखों में धूर्तता की चमक अब भी साफ दिखाई देती थी।
“साली, छिनाल! तेरी छोरियों को तो मैं हाथ से छूना भी पसंद न करूँ। देख, फालतू वक्त बरबाद न कर। सीधे से बता, क्या तू डायनों के साथ भी धंधा करती है?”
इतना सुनते ही कैंडी का मुँह दो-एक बार खुलकर बंद हुआ। जैसे कोई मछली साँस लेने के लिए मुँह खोलती है।
“डायन? कौन डायन? कैसी डायन? मैं किसी डायन-वायन को नहीं जानती”, उसने हड़बड़ी में जवाब दिया।
“देख, तू सरकार के दुश्मनों की मदद कर रही है, समझी न।”
“सरकार के दुश्मन! नहीं, नहीं, मैंने कभी किसी ऐसे शख्स की मदद नहीं की। और मैं होती कौन हूँ, किसी की मदद करने वाली?” कैंडी की आवाज में अब घबराहट झलक आई थी।
“क्या तू दावे के साथ कह सकती है कि यही सच है। देख, हमारे पास पक्के तौर पर कुछ ऐसी जानकारी है जिससे तू बुरी तरह फँस सकती है।”
“नहीं, नहीं मैं बताती हूँ। जितना मुझे पता है, सब बताती हूँ।”
“हाँ, तो बता।”
“वह मुझसे बकरियाँ और सूअर खरीदती थी।”
“किसलिए?”
“मेरा मानना है कि शायद खाने के लिए-”
“मानना है का क्या मतलब?”
“नहीं, शुरू में तो ऐसे ही सब ठीक-ठाक था। मगर फिर एक दिन उसने मुझसे बंदरों की माँग कर दी। अब बंदर तो कोई खाता नहीं न। तब फिर मुझे शक हुआ कि आखिर उसे बंदरों की जरूरत क्यों पड़ गई!”
“तो तूने उसे बंदर लाकर दिए?”
“हाँ, क्योंकि उसने बंदरों के लिए खासी रकम दी थी। बल्कि सबसे ज्यादा पैसे दिए बंदरों के लिए।”
मथेरा ने अब अपने हाथ में पकड़ा हुआ ब्रांडी का गिलास नीचे रख दिया और इस अंदाज में अपनी अँगुलियाँ चटकाईं, जैसे कोई किसी को डराने-धमकाने के लिए करता है।
“साफ-साफ बता, कैसे बंदर दिए तूने उसे?” सवाल करते हुए मथेरा ने खुद को सहज रखने की कोशिश की।
“सभी तरह के। उसने बताया था कि बंदर इंसान के बहुत करीब होते हैं। इसलिए वह उन पर अपनी दवाओं का परीक्षण करना चाह्रती है। ऐसा कुछ कहा था उसने।”
“बेचारे निरीह जानवरों को बंधक बनाकर उसने उन पर अपनी दवाओं का परीक्षण किया। और तूने इस काम में उसकी मदद की। तू तो गई अंदर अब इस मामले में, पक्के तौर पर!”
“बहुत बड़ा जुर्म है यह।”
“नहीं, नहीं साहब, सुनिए न! मैं समझाती हूँ पूरी बात। मेरा एक बेटा है। पहले वह बिस्तर पर ही रहता था हमेशा। पोलियो की वजह से उसके दोनों पैर और हाथ बेकार हो गए थे। लेकिन उसकी दवाओं से वह ठीक हो गया। अब वह सिर्फ चलता नहीं, बल्कि अपने से आधी उम्र के लोगों के साथ दौड़ भी लेता है!”
“लगता है, काला जादू किया था उसने। अब तू सुन मेरी बात, तूने एक डायन से दोस्ती की। उसके दुष्टता भरे कामों के लिए उसे बंदर भी बेचे। यानी तू अब बड़ी मुश्किल में फँस चुकी है, समझी।”
मथेरा ने जिस तरह डराने वाले अंदाज में यह बात कही, उसका असर कैंडी पर साफ दिखाई दिया। वह अब परेशान नजर आने लगी थी।
“नहीं, नहीं, मेरा उस डायन से कोई वास्ता नहीं है।” अब तक खुशमिजाज और बेलौस दिखाई देने वाली कैंडी अब डरी-सहमी हुई थी। “मैं तो धंधा करने वाली आम औरत हूँ। असल में, उसे माँस और जानवर चाहिए थे। मेरे पास उपलब्ध थे, तो उनकी कीमत लेकर मैंने उसे वे दे दिए। पर अभी तो लंबे समय से मैंने उसके साथ कोई सौदा भी नहीं किया है। पिछले सौदे को भी काफी समय बीत चुका है। कई साल हो गए हैं। मैं तो ये भी नहीं जानती कि वह कौन थी। बस, इतना पता है कि उसकी दवा अच्छी थी। कसम से, मैं सच बोल रही हूँ…!”
“कैंडी, पुलिस अफसर के सामने जो बयान दिया जाता है, उसे बदला नहीं जा सकता। जो भी तूने कहा- सच या झूठ– उसका अंजाम तुझे ही भुगतना होगा। अगर झूठ बोला होगा, तो उसे सही ठहराने के लिए तुझे और भी कई झूठ बोलने पड़ेंगे। इस तरह, एक गलती से तू अपने ही जाल में फँसती चली जाएगी।”
“नहीं, नहीं, मैं कुछ नहीं जानती—! मैं उससे फिर कभी नहीं मिली। उसने मुझे चेतावनी दी थी कि कभी उसके पहाड़ों पर कदम न रखूँ। इसलिए मैं डर गई थी।” उसने सिसकते हुए कहा। सवालों का जवाब देते वक्त उसकी घबराहट साफ झलकने लगी थी। बोलते समय आधे शब्द तो जैसे गले में ही अटक गए थे।
“साली छिनाल, हमें बेवकूफ बनाना बंद कर। डायनों को जहर का सामान बेच रही थी? ले चलो इस वैश्या को जेल! वहीं इसकी अक्ल ठिकाने आएगी। जेल के हमारे आदमियों ने बहुत दिनों से कोई वैश्या देखी भी नहीं है।”
“सालों बीत गए, कई साल।”
“नहीं! साहब, मैं भीख माँगती हूँ आपसे। मैं कोई अपराधी नहीं हूँ! मैं तो मेहनत-मशक्कत से धंधा करने वाली आम औरत हूँ। किसी से भी पूछ लो, साहब।”
“तो ठीक है, बैकाल में अपना धंधा करना! वहाँ यकीनन तू बहुत से कैदियों को खुश करेगी।”
इतना सुनते ही कैंडी अपने में सहम गई। सदमे और डर के मारे उसने दोनों हाथ जोड़ लिए। हाथों को मुँह के पास ले जाकर रोने-गिड़गिड़ाने लगी।
“कुछ भी करो साहब, जेल नहीं। रहम करो साहब, जेल मत ले जाओ! मैं मदद करूँगी आपकी। मैं बताऊँगी आपको कि वह कहाँ रहती है। मैं आपको उसकी उस अँधेरी गुफा तक लेकर चलूँगी। बस, मुझे जेल मत ले जाओ साहब…! मैंने कोई जुर्म नहीं किया है। मैं कोई चोर नहीं हूँ। मैं अपराधी नहीं हूँ साहब!”
“अच्छा, तो एक बात और बता… अगर तुझे इतना मुनाफा होता था तो तूने उसके साथ धंधा बंद क्यों किया?”
“मैंने नहीं किया साहब। उसने किया था। उसने कहा था कि मैं जानवरों को सेहतमंद बनाए रखने के लिए उन्हें दवाएँ देती हूँ। फिर उसने मुझे चेताया भी था कि मैं दोबारा ऐसा न करूँ, नहीं तो वह मुझे श्राप दे देगी। अब मैं आप लोगों जितनी ताकतवर तो नहीं हूँ न साहब, जो डायन से मुकाबला कर सकूँ। आपके पास तो हथियार वगैरा सब कुछ हैं। जबकि मैं ठहरी गरीब, मेहनतकश धंधा करने वाली बेचारी आम औरत!”
इस दौरान मथेरा और मणिमल में से किसी ने भी कैंडी की आँखों में उतर आई धूर्तता पर गौर नहीं किया। जबकि वह चालाक औरत अपनी इस सफलता पर संतुष्ट होकर मन ही मन मुस्कुरा रही थी कि उससे पूछताछ करने आए दोनों आदमियों को उसने जरा सा रो-धोकर बैरंग वापस लौटा दिया।
#MayaviAmbaAurShaitan
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(नोट : यह श्रृंखला एनडीटीवी की पत्रकार और लेखक ऋचा लखेड़ा की ‘प्रभात प्रकाशन’ से प्रकाशित पुस्तक ‘मायावी अंबा और शैतान’ पर आधारित है। इस पुस्तक में ऋचा ने हिन्दुस्तान के कई अन्दरूनी इलाक़ों में आज भी व्याप्त कुरीति ‘डायन’ प्रथा को प्रभावी तरीक़े से उकेरा है। ऐसे सामाजिक मसलों से #अपनीडिजिटलडायरी का सरोकार है। इसीलिए प्रकाशक से पूर्व अनुमति लेकर #‘डायरी’ पर यह श्रृंखला चलाई जा रही है। पुस्तक पर पूरा कॉपीराइट लेखक और प्रकाशक का है। इसे किसी भी रूप में इस्तेमाल करना कानूनी कार्यवाही को बुलावा दे सकता है।)
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पुस्तक की पिछली 10 कड़ियाँ
45 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : हाय हैंडसम, सुना है तू मुझे ढूँढ रहा था!
44 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : “मुझे डायन कहना बंद करो”, अंबा फट पड़ना चाहती थी
43 – मायावी अम्बा और शैतान : केवल डायन नहीं, तुम तो लड़ाकू डायन हो
42 – मायावी अम्बा और शैतान : भाई को वह मौत से बचा लाई, पर निराशावादी जीवन से….
41 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : अनुपयोगी, असहाय, ऐसी जिंदगी भी किस काम की?
40 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : खून से लथपथ ठोस बर्फीले गोले में तब्दील हो गई वह
39 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह कुछ और सोच पाता कि उसका भेजा उड़ गया
38- मायावी अम्बा और शैतान : वे तो मारने ही आए थे, बात करने नहीं
37 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : तुम्हारे लोग मारे जाते हैं, तो उसके जिम्मेदार तुम होगे
36 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’: ऐसा दूध-मक्खन रोज खाने मिले तो डॉक्टर की जरूरत नहीं