Mayavi Amba-59

‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह समझ गई थी कि हमें नकार देने की कोशिश बेकार है!

ऋचा लखेड़ा, वरिष्ठ लेखक, दिल्ली

# बंधन #

भविष्यवाणियाँ बाद में होंगी। बदलाव पहले होगा। पुराना चोला उतारने, नए कलेवर को अपनाने और नए आकार में ढलने की प्रक्रिया पहले होगी।

हमने भीतर से उसे देखा था, साँस लेते, डूबते-उतराते, धड़कते हुए, इस बदलाव की तैयारी करते।

और अब वह समझ चुकी थी कि हमें नकार देने की कोशिश बेकार है।

वह समझ गई थी कि उसका अलग-थलग रह पाना मुमकिन नहीं है।

आख़िरकार उसने मान लिया था कि हम कहीं जाने वाले नहीं हैं। इसीलिए उसने हमसे जूझना बंद कर दिया था। अब उसे हमसे कोई परेशानी भी नहीं होती थी। एक तरह से यह एक नए रास्ते पर चल देने जैसा था। वह अब आराम से नियति के नए द्वारों से होकर गुजरती जाती थी। वह अब जल्द ही नए जन्म के लिए बेहतर तरीके से तैयार हो जाएगी।

वैसे, वह हमेशा से बहुत ही सुंदर रही है। लेकिन हमने उसकी पूर्णता के केवल एक अंश को ही देखा था। ताकत से भरपूर, फिर भी बहुत ही नाज़ुक सी। अलबत्ता, अब अपने और हमारे बीच एक तरह के नए संतुलन को साधना उसे सीखना होगा। उसे जल्दी ही अपने इंसानी तौर-तरीकों को भुलाना होगा, छोड़ना होगा।  

#MayaviAmbaAurShaitan
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(नोट :  यह श्रृंखला एनडीटीवी की पत्रकार और लेखक ऋचा लखेड़ा की ‘प्रभात प्रकाशन’ से प्रकाशित पुस्तक ‘मायावी अंबा और शैतान’ पर आधारित है। इस पुस्तक में ऋचा ने हिन्दुस्तान के कई अन्दरूनी इलाक़ों में आज भी व्याप्त कुरीति ‘डायन’ प्रथा को प्रभावी तरीक़े से उकेरा है। ऐसे सामाजिक मसलों से #अपनीडिजिटलडायरी का सरोकार है। इसीलिए प्रकाशक से पूर्व अनुमति लेकर #‘डायरी’ पर यह श्रृंखला चलाई जा रही है। पुस्तक पर पूरा कॉपीराइट लेखक और प्रकाशक का है। इसे किसी भी रूप में इस्तेमाल करना कानूनी कार्यवाही को बुलावा दे सकता है।) 
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पुस्तक की पिछली 10 कड़ियाँ 

58 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : अपने भीतर की डायन को हाथ से फिसलने मत देना!
57 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : उसे अब जिंदा बच निकलने की संभावना दिखने लगी थी!
56 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : समय खुशी मनाने का नहीं, सच का सामना करने का था
55 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : पलक झपकते ही कई संगीनें पटाला की छाती के पार हो गईं 
54 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : जिनसे तू बचकर भागी है, वे यहाँ भी पहुँच गए है
53 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : तुम कोई भगवान नहीं हो, जो…
52 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : मात्रा, ज़हर को औषधि, औषधि को ज़हर बना देती है
51 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : न जाने यह उपहार उससे क्या कीमत वसूलने वाला है!
50 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : उसे लगा, जैसे किसी ने उससे सब छीन लिया हो
49 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : मात्रा ज्यादा हो जाए, तो दवा जहर बन जाती है

 

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