ऋचा लखेड़ा की पुस्तक ‘मायावी अंबा और शैतान’
ऋचा लखेड़ा, वरिष्ठ लेखक, दिल्ली
# केंचुली छोड़ना #
तथ्य : इंसान जैसी जिंदगी इंसानों को ही नसीब है।
तथ्य : ये तय था कि वह ऐसे रास्ते पर बढ़ने वाली है, जिसका हमसे कोई लेना-देना नहीं होगा। हम नहीं जानते या शायद हमें इसकी परवा भी नहीं कि वह किसी लड़ाई में उलझने वाली है, शहरों को आबाद या तबाह करने वाली है, प्लेग जैसी कोई महामारी फैलाने वाली है या फिर लोगों को सेहतमंद बनाने वाली है। हम उन लड़ाईयों के नतीजों का अनुमान भी नहीं लगा सकते, जो वह छेड़ने वाली है। हमें इन तमाम चीजों का कोई पूर्वानुमान नहीं था।
तथ्य : इंसानी खोल खामियों से भरा होता है। यह नाजुक है। आसानी से इसे चोट पहुँचाई जा सकती है। इस पर निशान छोड़े जा सकते हैं। इसे डुबोया जा सकता है। जलाया जा सकता है। इसके साथ व्यभिचार हो सकता है। इसे प्रताड़ित किया जा सकता है। इंसानी खोल की अपनी सीमाएं हैं। ऐसे में, नश्वरता का, खत्म हो जाने का खतरा हमेशा, धड़कते दिल की हर दूसरी धड़कन के साथ, हमारे ऊपर तलवार की तरह मँडराता था। इससे हम परेशान थे। आखिर देह की हदें हैं।
इस दुनिया की हदें हमारी उस आजादी से बिलकुल उलट हैं, जिसके हम आदी हैं। जिसमें हम अपनी मर्जी से शरीरों में घुसते और निकलते हैं। हालाँकि अब चीजें उसके काबू से बाहर थीं। जब वह हमारी परछाई से बाहर निकलकर अपने आप में परिपूर्ण हो गई तो हमने खुद को विकट गर्व के साथ उसे देखते हुए पाया।
मानव शरीर में होने का एक दुष्प्रभाव ये है कि जब वे युवा होते हैं, तो उन्हें लगता है कि सिर्फ वही दुनिया में हर चीज पहली बार महसूस कर रहे हैं। और केवल उनकी राय ही मायने रखनी चाहिए।
उसे अब भारी यातना दी जाएगी। जगह-जगह चोट की जाएगी। नोच-खसोट होगी उसके साथ। उसका खून बहेगा। वह दर्द से तड़पेगी और हमें भी उसकी तकलीफ महसूस होगी। लेकिन हम कुछ नहीं कर सकेंगे। क्योंकि हम उसकी मर्जी के बिना उससे बाहर नहीं आ सकते। हमारे और उसके बीच अब भी कोई जुड़ाव नहीं था। अगर शरीर ही हमें स्वीकार करने को तैयार नहीं, तो भीतर फँसे रहकर भी हम ज्यादा कुछ नहीं कर सकते। हमने उसके असामान्य प्रतिरोध की ताकत महसूस की थी।
उसे लगता था, जैसे हम कोई परजीवी हैं। जिसके कई सिर हैं। वह खूद को दूषित मानती थी। हमारे पास उसके शरीर की गहराई के भीतर चुपचाप कुंडली मारकर बैठे रहने के अलावा कोई चारा नहीं था। इसके बावजूद हमारी मौजूदगी उसके तेवर और हुनर को लगातार तराश रही थी। अभी जब हम उसके शरीर के भीतर कुंडली मारे निष्क्रिय पड़े थे, तब भी हम महसूस कर सकते थे कि हमारी महज मौजूदगी उसे कितना बेचैन कर देती है।
हमने बदलाव महसूस किया था। लगातार युद्ध, संघर्ष, लड़ाइयों ने उस शरीर के लिए अब चुनौती पैदा कर दी थी। यकीनन हमें अपने संसार पर कोई औचक खतरा पसंद नहीं। हम अपनी दुनियाओं में बदलाव को बिलकुल भी पसंद नहीं करते।
एक तरह के तैलीय भारीपन से भरी हुई हानिकारक हवा हर चीज को अपने आगोश में ले रही थी। यह बहुत शक्तिशाली और लगातार रिसने वाला गंदा संक्रमण था। ये मिआसमा कहा जाता था। दूसरे शब्दों में- आत्माओं का प्रदूषण। यह अपवित्र अपराधों, खून के अशुद्ध रिसाव से पैदा हुआ था। इसके नतीजे तय थे। लेकिन ये नतीजे इंसानों के लिए थे। हमारे लिए नहीं।
यह एक नई चीज थी। अनिश्चितता की इस भावना का स्वाद उसने चख लिया था। ऐसा जो, इससे पहले उसने कभी नहीं चखा था। उन्माद, क्रोध, उग्रता जैसे भाव भूखे भेड़ियों की तरह पूरी तरह तैयार थे। बस, उसके बुलावे का इंतजार कर रहे थे। हम यह देखने के लिए उत्सुक थे कि वह हमें आवाज देने से पहले कितना और बर्दाश्त कर सकती है।
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(नोट : यह श्रृंखला एनडीटीवी की पत्रकार और लेखक ऋचा लखेड़ा की ‘प्रभात प्रकाशन’ से प्रकाशित पुस्तक ‘मायावी अंबा और शैतान’ पर आधारित है। इस पुस्तक में ऋचा ने हिन्दुस्तान के कई अन्दरूनी इलाक़ों में आज भी व्याप्त कुरीति ‘डायन’ प्रथा को प्रभावी तरीक़े से उकेरा है। ऐसे सामाजिक मसलों से #अपनीडिजिटलडायरी का सरोकार है। इसीलिए प्रकाशक से पूर्व अनुमति लेकर #‘डायरी’ पर यह श्रृंखला चलाई जा रही है। पुस्तक पर पूरा कॉपीराइट लेखक और प्रकाशक का है। इसे किसी भी रूप में इस्तेमाल करना कानूनी कार्यवाही को बुलावा दे सकता है।)
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पुस्तक की पिछली 10 कड़ियाँ
19- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : फिर उसने गला फाड़कर विलाप शुरू कर दिया!
18- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : ऐसे बागी संगठन का नेतृत्त्व करना महिलाओं के लिए सही नहीं है
17- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : सरकार ने उनकी प्राकृतिक संपदा पर दिन-दहाड़े डकैती डाली थी
16- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : अहंकार से ढँकी आँखों को अक्सर सच्चाई नहीं दिखती
15- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : ये किसी औरत की चीखें थीं, जो लगातार तेज हो रही थीं
14- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : मैडबुल को ‘सामाजिक कार्यकर्ताओं’ से सख्त नफरत थी!
13- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : देश को खतरा है तो हबीशियों से, ये कीड़े-मकोड़े महामारी के जैसे हैं
12- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : बेवकूफ इंसान ही दौलत देखकर अपने होश गँवा देते हैं
11- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : तुझे पता है वे लोग पीठ पीछे मुझे क्या कहते हैं…..‘मौत’
10- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : पुजारी ने उस लड़के में ‘उसे’ सूँघ लिया था और हमें भी!
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