‘मायावी अम्बा और शैतान’ : “मुझे डायन कहना बंद करो”, अंबा फट पड़ना चाहती थी

ऋचा लखेड़ा, वरिष्ठ लेखक, दिल्ली

अंबा नहीं जानती थी कि वह इस पर कैसे प्रतिक्रिया दे। कोई उसके बारे में बड़ी आसानी से इतनी अधिक जानकारी कैसे रख सकता है? उसने सहानुभूति की उस प्रकृति को समझने की कोशिश भी नहीं की, जो उसके और ‘छोटे कद की डायन’ पटाला के बीच मौजूद थी। इसी बीच, पटाला ने अंबा का हाथ पकड़ा और धीरे-धीरे उसे अपने बगीचे की ओर ले चली। अंबा ने पाया कि इच्छा न होने के बावजूद वह किसी बच्चे की तरह उसके पीछे-पीछे चल रही है। अंबा की निगाह उस पर टिकी थी। इधर, बगीचे में रहस्यपूर्ण शांति पसरी हुई थी। बड़ा केसर, खसखस के पौधे, भाँग, धतूरा और कई अन्य प्रजाति के विषैले पौधों की वहाँ भरमार थी। वनस्पति जगत का एक दूसरा ही पहलू वहाँ नजर आता था।

“डरो मत, मैं सिर्फ दर्द से छुटकारा पाने की गरज से इन सबको यहाँ इकट्‌ठा कर रही हूँ।”

“बदबू, आ…क्….थू!” अंबा को उबकाई आ रही थी।

“यह सुमक है!” पटाला ने मोटी सी नोकदार पत्तियों वाली घनी हरी झाड़ी की ओर इशारा करते हुए कहा, “इनके फल सफेद होते हैं। बहुत बुरी बदबू आती है। दलदल जितना गंदा होता है, यह उतना ही अधिक बढ़ता है। लेकिन सबसे अच्छी बात है कि यह दर्द को चुटकियों में गायब कर देता है। यहाँ तो यह पौधा सूखकर मरने ही वाला था। वह तो मैंने इसे फिर हरा-भरा कर दिया।”

वनौषधियों के बारे में पटाला की समझ बहुत अच्छी थी। बहुत से पौधों, जड़ी-बूटियों के नाम उसे पता थे। उस बगीचे में तमाम पौधों का उसने जिस तरह रखरखाव किया, उससे भी उसकी समझ का प्रमाण मिल रहा था।

“और ये, अकड़कर खड़ा हुआ ऊबड़-खाबड़ सा पौधा”, एक सुंदर से पौधे की तरफ उसने इशारा किया। उसमें से शराब जैसी गंध आ रही थी। उसने बताया कि यह शरबत वगैरा के ऊपर सजाने के काम आता है। फिर ऐसे ही उसने और कई किस्मों के पौधे दिखाए। कोई नीले रंग के, कोई नारंगी सी जलकुंभी, कुछ गहरे लाल रंग के, और गमलों में लगे उष्ण कटिबंधीय पौधे भी। अंबा ने उनमें से कई तो जीवन में पहली बार देखे थे।

तभी एक अजीब से दिखने वाले पौधे की तरफ अंबा का ध्यान गया। उसके बल्बनुमा गोल उभरे हुए तने में असामान्य किस्म के फूल लगे हुए थे। उनकी गंध अलग-अलग थी। एक बहुत मदहोश करने वाली और दूसरी थोड़ी फफूँद सी।

“ओह, तो तुम्हें मिल गया ये? यह दिखता साधारण है, लेकिन होता बड़ा खतरनाक है। वैसे तो ये आरोग्यवर्धक है, लेकिन खुराक में जरा भी घट-बढ़ हुई नहीं कि जहर हो जाता है। उसके बाद तो जैसे त्वचा खुद को शरीर के अनुरूप ढाल लेती है, उसी तरह यह भी अपने आप को तेजी से बदल लेता है। उपचार के लिए स्थायी अवरोधक बन जाता है। और फिर माँस के भीतर से सभी अच्छे तत्त्वों को आखिरी कतरे तक खींच लेता है!”

बगीचे में पत्तियों से आच्छादित एक हिस्से में पोखर भी बनाया गया था। वहाँ मछलियाँ पालकर रखी गईं थीं। कई काँटेदार मछलियाँ खासी भारी-भरकम दिखाई दे रही थीं। स्पष्ट था कि उनके लिए यहाँ खाने-पीने का बहुत अच्छा बंदोबस्त हुआ है। ऐसा इंतिजाम शायद उनके प्राकृतिक वातावरण में भी मुमकिन नहीं हो पाता।

“ये सभी और इनके बच्चे भी, मेरे वैज्ञानिक अध्ययनों में अब तक बहुत काम आए हैं। मेरा ख्याल है, तुम मेरा मतलब समझ गई होगी। वैसे, मेरे कुछ अन्य वैज्ञानिक मित्र भी हैं। हालाँकि मेरे पास अगर मेरी दवाओं के परीक्षण के लिए कोई इंसान होता, तो नतीजों की पुष्टि ज्यादा बेहतर हो पाती! अलबत्ता, एक समय में मेरे पास बंदर होते थे, लेकिन फिर भी इंसान होता, तो अधिक अच्छा रहता। मै देखती हूँ, क्या हो सकता है, क्या नहीं!”

इतना सुनते ही अंबा डर कर थोड़ा पीछे हट गई।

“डरो मत! मेरा अपने जैसी किसी डायन को नुकसान पहुँचाने का कोई इरादा नहीं है।”

“मुझे डायन कहना बंद करो।” अंबा फट पड़ना चाहती थी।

बाहर अँधेरा हो चला था। शाम के धुँधलके के साथ मानो आसुरी सुंदरता ने धीरे-धीरे पैर पसारने शुरू कर दिए थे। पश्चिम के आकाश से बंजर पहाड़ी के नीचे फिसलता ललाम सूरज ऐसा लगता था, जैसे किसी की नाक से खून बहता हो। इसी बीच, पहाड़ी पर जब तक चाँद की रोशनी फैलती और तेज होती, पटाला ने विशेष भोजन तैयार कर लिया। दावत में मगुए के फल के साथ करारी भुनी हुई लाल मछली थी। साथ ही पीने के लिए मगुए का ही रस। यह रस वैसे तो ज्यादा मादक नहीं होता, लेकिन कमदिमाग लोग इससे भी मदहोश हो जाते हैं।

इसके बाद पटाला ने सूखे माँस का एक लोथड़ा निकाला और आँख बंद कर लगभग ध्यान जैसी अवस्था में उसे चूस लिया। वह माँस किसका था, अंबा को समझ में नहीं आया। लेकिन अब तक उसके पेट में भी भूख की वजह से चूहे दौड़ने लगे थे। लिहाजा, उसने अपनी तरफ बढ़ाए गए उसी माँस के एक अन्य टुकड़े को चुपचाप खाना शुरू कर दिया। खाते समय उसकी निगाह पास ही खड़े डोमोवई पर पड़ी। पटाला अपने उन पालतू कुत्तों में से एक को इसी नाम से पुकारती थी, जो अभी वहीं था। पटाला ने माँस का एक टुकड़ा उसकी तरफ भी उछाला था, जिसे उसने पलक झपकते ही चट कर लिया। इसके बाद उसने उसकी तरफ दूसरा टुकड़ा फेंका। इस बार हड्‌डी वाला और खून से सना हुआ। डोमोवई ने उस पर झपट्‌टा मारा और एक कोने में चला गया।

उस जानवर ने अंबा के भीतर सिहरन पैदा कर दी थी। उसके लिए डोमोवई और उसके साथी जीव मौत का ही दूसरा नाम थे। भयानक डरावनी और पीली आँखों वाले मनोविक्षिप्त। अंबा कसम उठाकर कह सकती थी कि सुबह जब उसने पहली बार डोमोवई को देखा था, तब की तुलना में अभी उसका आकार काफी बड़ा लग रहा था। तो क्या सूर्यास्त के बाद डोमोवई की ऊँचाई बढ़ गई थी? पटाला के इन पालतू जानवरों में और क्या-क्या खतरनाक विशेषताएँ थीं? इससे भी बदतर, पटाला के इस रहस्यमयी आवास में और क्या-क्या भयावहताएँ मौजूद हैं? अंबा ने तुरंत ही इन सवालों को अपने दिमाग से झटक दिया क्योंकि इनके उत्तर तलाशने में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं थी। वह तो इस छोटे कद की डायन और उसके डरावने पालतू जानवरों से जितनी जल्दी हो, दूर होना चाहती थी। लेकिन फिलहाल उसके पास समय वहाँ काटने के अलावा कोई चारा नहीं था।

उस रात अंबा जब सोई तो उसने एक भयानक सपना देखा। उसे दिखा कि खौलते सीसे में बड़ी संख्या में काले कौवों के सिर उबल रहे हैं। पास में धूल-धूसरित सी पटाला खड़ी है। वह उस खौलते मिश्रण को उसके गले में उड़ेल रही है। वह तब तक उस मिश्रण को गले में उड़ेलती जाती है, जब तक कि उसका पेट फट नहीं जाता। उसके कानों से खून नहीं बहने लगता। डोमोवई पथराई निगाहों से यह सब देखता रहता है। 

#MayaviAmbaAurShaitan
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(नोट :  यह श्रृंखला एनडीटीवी की पत्रकार और लेखक ऋचा लखेड़ा की ‘प्रभात प्रकाशन’ से प्रकाशित पुस्तक ‘मायावी अंबा और शैतान’ पर आधारित है। इस पुस्तक में ऋचा ने हिन्दुस्तान के कई अन्दरूनी इलाक़ों में आज भी व्याप्त कुरीति ‘डायन’ प्रथा को प्रभावी तरीक़े से उकेरा है। ऐसे सामाजिक मसलों से #अपनीडिजिटलडायरी का सरोकार है। इसीलिए प्रकाशक से पूर्व अनुमति लेकर #‘डायरी’ पर यह श्रृंखला चलाई जा रही है। पुस्तक पर पूरा कॉपीराइट लेखक और प्रकाशक का है। इसे किसी भी रूप में इस्तेमाल करना कानूनी कार्यवाही को बुलावा दे सकता है।) 
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पुस्तक की पिछली 10 कड़ियाँ 

43 – मायावी अम्बा और शैतान : केवल डायन नहीं, तुम तो लड़ाकू डायन हो
42 – मायावी अम्बा और शैतान : भाई को वह मौत से बचा लाई, पर निराशावादी जीवन से…. 
41 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : अनुपयोगी, असहाय, ऐसी जिंदगी भी किस काम की?
40 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : खून से लथपथ ठोस बर्फीले गोले में तब्दील हो गई वह
39 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह कुछ और सोच पाता कि उसका भेजा उड़ गया
38- मायावी अम्बा और शैतान : वे तो मारने ही आए थे, बात करने नहीं
37 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : तुम्हारे लोग मारे जाते हैं, तो उसके जिम्मेदार तुम होगे
36 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’: ऐसा दूध-मक्खन रोज खाने मिले तो डॉक्टर की जरूरत नहीं
35- ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : इत्तिफाक पर कमजोर सोच वाले लोग भरोसा करते हैं
34- ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : जो गैरजिम्मेदार, वह कमजोर कड़ी

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