Mayavi Amba-61

‘मायावी अम्बा और शैतान’ : रैड-हाउंड्स खून के प्यासे दरिंदे हैं!

ऋचा लखेड़ा, वरिष्ठ लेखक, दिल्ली

तनु बाकर ने नकुल की गुस्सैल निगाहों से बचने की कोशिश की। उसकी पीली सी गोल आँखें, चिकनी त्वचा, कोयले जैसे काले बाल और चढ़ी हुई भौंहें उसके चेहरे को तीखापन दे रही थीं।

“हमें वापस जाकर उन लोगों का साथ देना चाहिए —”

“लेकिन हम उनसे लड़ेंगे कैसे? पीतल के गोलों, लोहे की बंदूकों, बेलन, करछी, चम्मचों से? अपने पुराने किस्म के धनुष-बाण, गेंती, कुदाल, फावड़ों और सब्बल से? हजार घोड़ों की नालों और दस हजार कीलों से?”

“हमें तकलीफ पहुँचाने में मैडबुल को अब मजा आने लगा है। वह अब रुकेगा नहीं!” निराशा से भरे लोगों में से एक ने कहा।

“वे चूहों की तरह मर रहे हैं। हम भूख से मरने वाले हैं। मुट्‌ठीभर चावल और दाल के लिए लोग आपस में लड़ रहे हैं। खाने-पीने का सामान खत्म हो गया है या नष्ट हो चुका है। जो बचा है, वह भी ठंड से जम जाएगा क्योंकि जल्दी ही मौसम बदलने वाला है। वे हमें भूख से तड़पाकर मारना चाहते हैं।”

“रैड-हाउंड्स खून के प्यासे दरिंदे हैं। तुमने देखा कि उन्होंने हमारी औरतों के साथ क्या दिया। यहाँ तक कि उन्होंने हमारे बच्चों को भी नहीं छोड़ा।”

“हम बरबाद हो चुके हैं! हमारे परिवार भूखे-प्यासे तड़पेंगे और ठंड से मारे जाएँगे। उन्होंने हमारे गाँव में आने-जाने के सभी रास्ते भी बंद कर दिए हैं।”

“हमने क्या-कुछ बरदाश्त नहीं किया अब तक? आखिर हमारी कितनी और परीक्षा ली जाएगी?”

“भगवान की मर्जी, अब जो भी हो। अभी जब भी उनकी गोलियाँ बरसीं, तो हम उनसे बचने की कोशिश करते रहे। लेकिन अब हम अपने में से कुछ लोगों की कुरबानी दे ही देते हैं। अगर कुछ लोगों का मरना जरूरी ही है और इससे उन्हें शांति मिलती है, उनका गुस्सा कम होता है, तो यही सही। इस तरह कम से कम हम में से बाकी बचे लोगों को कुछ और दिनों की जिंदगी तो मिल जाएगी।”

“धीरज बनाए रखो। हिम्मत से काम लो। अपने गरम कपड़े सँभालकर रखो। भोजन को कम-कम उपयोग करो। हम में से सबको एक-एक रोटी दी गई है। उसे हमें छह दिन तक चलाना है। एक-दो दिन में खत्म नहीं करना है। बचाकर रखना है। नहीं तो सप्ताह के अंत तक हम सब आसानी से, भूख से मर जाएँगे।”

“तुम्हारी बात तो वैसी है, जैसे कोई किसान ऊपरवाले से अरज करता हो कि हे भगवान, फसल कटने से पहले हमारे खेत में टिडिडयों का हमला रोक देना।” नकुल अब भी गुस्से से भरा हुआ था, “हम जल्दी ही जमीन पर चौपायों की तरह रेंगते नजर आने वाले हैं।”

“जबसे हमने अंबा को खोया है, बुरा दौर हमारा पीछा ही नहीं छोड़ रहा है। काश, वह लौट आए।”

“मैंने सुना है, वह जंगल में बूढ़ी डायन के साथ कहीं छिपी है – अपने जैसों की संगत में, आखिरकार – अब शायद सुकून से होगी वह।”

नकुल के शब्द हवा में यूँ तैर गए, जैसे कोई भरी हुई बंदूक सामने लाकर टाँग दी गई हो। ऐसी, जिससे गोली तो एक भी नहीं चली, लेकिन उसके होने मात्र ने सभी के भीतर सिहरन पैदा कर दी।

“लगता है, उसने हमें हमारे हाल पर छोड़ दिया है।” इसके साथ ही अंबा के बारे में दूसरे लोग भी तमाम बातें करने लगे। तीखी बहस की स्थिति बन गई।

“तुम्हें इस वक्त उसकी जरूरत इसलिए है, क्योंकि तुम उसका इस्तेमाल करना चाहते हो। लेकिन बताओ जरा, कि तुमने उसके लिए ऐसा क्या किया है, जो वह अपनी जान जोखिम में डालकर तुम्हें और हम सबको बचाने के लिए यहाँ आए?” बगावती तेवरवाली नकुल की आवाज ने न सिर्फ चल रही बहस पर लगाम लगाई, बल्कि अपने दल के मुखिया को नीचा भी दिखाया। उसने इस वक्त खुलेआम दल के मुखिया तनु बाकर का तिरस्कार किया था, मानो उसे अब उसका कोई डर ही न हो।

लेकिन तनु बाकर ने धीरज से काम लेते हुए बीच-बचाव किया, “यह आपस में लड़ने का समय नहीं है।”

“अगर उसे हमारी सच्चाई पता चली, तो क्या वह यही नहीं कहेगी कि भाड़ में जाओ सब, मुझे क्या?”

गुस्से में नकुल कहना क्या चाहता था, किसी को समझ नहीं आया। सब लोग उसके कड़वाहटभरे बोलों से हैरान थे। अपने-अपने तरीके से उसकी बातों का मतलब निकाल रहे थे। लेकिन बस, एक व्यक्ति था जिसे सब समझ में आ रहा था। वह था, तनु बाकर। आखिर उसी को तो ताने-उलाहने दे रहा था नकुल। उसने नकुल की बातों में छिपी धमकी को पहचान लिया था।

एक समय था, जब नकुल की सुंदरता ने तनु को अपने मोहपाश में बाँध लिया था। उसने इतना सुंदर लड़का इससे पहले कभी नहीं देखा था। इसीलिए दोनों के बीच उम्र के बड़े अंतर के बावजूद वह उसके प्यार में पड़ गया। टूटकर चाहने लगा उसे।

फूल की पंखुड़ी जैसी उसकी नरम त्वचा, मुलायम काले बाल, गहरी भूरी आँखें। पहली नजर में वह उसे ऐसा लगा, जैसे चीनी मिट़्टी का कोई नाजुक सा गहना हो। उस क्षण को याद कर तनु की आँखें भर आईं। वह अब भी उसे पहले की तरह प्यार से सहलाना चाहता था। उसकी घनी काली पलकों के साए में उसके गालों पर हाथ फिराते हुए वक्त बिताना चाहता था। लेकिन सच्चाई ये थी कि वह समय अब बीत चुका था। अभी-अभी तनु को एहसास हुआ था कि नकुल अब पहले जैसा नहीं रहा। वह अब नफरत और पछतावे से भरा हुआ बागी तेवर वाला नकुल था, इस सच्चाई को तनु ने स्वीकार कर लिया था।

तनु बाकर को अब उसकी चिंता होने लगी थी। नकुल दिन-ब-दिन उसकी अवहेलना करता था। उसके साथ लापरवाहीभरा बरताव करता था। चूहे-बिल्ली की तरह उसके साथ खिलवाड़ करता था। इसमें उसको मजा आता था। तनु उसे कुछ भी बोलता, तो वह गुस्से से होंठ फड़फड़ाने लगता। दोहरे अर्थ वाली अजीब सी बातें करने लगता। उसकी बातों में धमकी का स्पष्ट संकेत होता था। मानो वह चेता रहा हो – मैं चाहूँ तो सबके सामने तुम्हारी पोल खोल सकता हूँ। तुम्हें बरबाद कर सकता हूँ। मुझे मेरी असलियत पर आने को मजबूर न करो। वह म्यान से बाहर आए खंजर की तरह हो गया था, जो किसी को लहूलुहान करने के लिए आतुर था।

तनु को समझ आ गया था कि नकुल अपना विवेक खो चुका है। अब उसे अपनी हरकतों के अंजाम की परवा नहीं रही। और नकुल अपने तौर-तरीकों, बातों से तनु के दिमाग में यही छाप तो छोड़ना चाहता था। उसका तीर निशाने पर लगा था। तनु की घबराहट उसके चेहरे पर झलकने लगी थी। वह चिंता में धीरे-धीरे माथे पर हाथ फेर रहा था। उधर, नकुल उसके चेहरे में उलझन और डर के निशान देखकर कुटिलता से मुस्कुरा रहा था। मानो, तंज कस रहा हो – क्यों डर गए क्या? कैसा लगा? अब यह रोज होगा, आदत डाल लो इसकी! अस्ल में, नकुल ने हमेशा दूसरों की तुलना में अपने ऊपर अधिक दबाव महसूस किया था। और शायद उसी के नतीजे में अब वह दिन-ब-दिन अधिक अस्थिरचित्त होता जा रहा था। अब हालत ये थी कि कोई भी बता नहीं सकता था कि वह आगे क्या करने वाला है। वह बदले की आग में झुलस रहा था। प्रतिशोध की भावना उस पर हावी हो चुकी थी। तनु बाकर पक्के तौर पर समझ गया था कि वह अपनी किस्मत ऐसे आदमी के भरोसे नहीं छोड़ सकता। और यह भी कि अगर वह अभी कमजोर पड़ा, तो उसे इसकी भारी कीमत चुकानी होगी। 

#MayaviAmbaAurShaitan
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(नोट :  यह श्रृंखला एनडीटीवी की पत्रकार और लेखक ऋचा लखेड़ा की ‘प्रभात प्रकाशन’ से प्रकाशित पुस्तक ‘मायावी अंबा और शैतान’ पर आधारित है। इस पुस्तक में ऋचा ने हिन्दुस्तान के कई अन्दरूनी इलाक़ों में आज भी व्याप्त कुरीति ‘डायन’ प्रथा को प्रभावी तरीक़े से उकेरा है। ऐसे सामाजिक मसलों से #अपनीडिजिटलडायरी का सरोकार है। इसीलिए प्रकाशक से पूर्व अनुमति लेकर #‘डायरी’ पर यह श्रृंखला चलाई जा रही है। पुस्तक पर पूरा कॉपीराइट लेखक और प्रकाशक का है। इसे किसी भी रूप में इस्तेमाल करना कानूनी कार्यवाही को बुलावा दे सकता है।) 
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पुस्तक की पिछली 10 कड़ियाँ 

60 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : अब जो भी होगा, बहुत भयावना होगा
59 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह समझ गई थी कि हमें नकार देने की कोशिश बेकार है!
58 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : अपने भीतर की डायन को हाथ से फिसलने मत देना!
57 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : उसे अब जिंदा बच निकलने की संभावना दिखने लगी थी!
56 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : समय खुशी मनाने का नहीं, सच का सामना करने का था
55 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : पलक झपकते ही कई संगीनें पटाला की छाती के पार हो गईं 
54 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : जिनसे तू बचकर भागी है, वे यहाँ भी पहुँच गए है
53 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : तुम कोई भगवान नहीं हो, जो…
52 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : मात्रा, ज़हर को औषधि, औषधि को ज़हर बना देती है
51 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : न जाने यह उपहार उससे क्या कीमत वसूलने वाला है!

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