‘मायावी अम्बा और शैतान’ : तुम कोई भगवान नहीं हो, जो…

ऋचा लखेड़ा, वरिष्ठ लेखक, दिल्ली

ज्ञान उतना ही पुराना था, जितने पर्वत। यह इतना ही विस्तारित था, जितनी कि वनों में जड़ी-बूटियों की संख्या। उसके मिश्रणों, काढ़ों और घोलों को तैयार करने में त्रुटि की कोई गुंजाइश नहीं थी। कई बार अँगुलियाँ मसल जातीं, माँसपेशियों में तनाव हो जाता, आँखें थक जातीं, फिर भी मेहनत जारी रहती। काम चलता रहता।

यह काम हर बार पर्वत पर नए सिरे से चढ़ने जैसा होता था। खोजना, सीखना, सुखाना, काटना, पीसना, पकाना, जलाना, दोबारा पकाना, पुनर्निर्माण और फिर नई खोज। कुछ ऐसी प्रक्रिया थी। गरम करते समय तापमान की एक-एक डिग्री मायने रखती थी। एक-एक दाने का महत्त्व था। काम में आने वाली सामग्री का तरो-ताजा होना आवश्यक था। अधपकी या बासी सामग्री उपयोग के लायक नहीं होती थी। उसमें पूरी खुराक के खराब होने का खतरा रहता था। सामग्री के ताजा होने का महत्त्व उसने अपने अनुभव से समझा था। शुरू-शुरू में वह जो भी बनाती, वह सब इस अनुभव की कमी के कारण खराब हो जाता था।

तरल दवाएँ बेअसर हो जाती थीं। लेप, मरहम सूख जाते या चट्‌टान जैसे ठोस हो जाते थे। कई बार किन्हीं पौधों को उबाला जाता, तो वे साबुन की लुगदी जैसे हो जाते। कभी किसी पौधे के जलाने से इतना धुएँ का गुबार उठता कि साँसें रुक जातीं। इन परिस्थितियों में यह जानना-समझना मुश्किल हो जाता कि कौन से पौधे के भीतर किसी को नींद में डाल देने की शक्ति है। किसमें पागलपन को ठीक करने की ताकत है। किस पौधे से मौत की नींद सुलाने वाली दवा बन सकती है और कौन सहस्त्रपर्णी पौधा जख्मों को भर देने में सक्षम है।

यह सब कुछ अब भी नाकाम हो सकता था। गलतियाँ अब भी हो सकती थीं। प्रयोगों के दौरान अँगुलियाँ जल सकती थीं। बदबूदार धुएँ के बादल अब भी घेर सकते थे। खाँसी के दौरे अब भी पड़ सकते थे। देर रात तक दवा तैयार करते रहने के दौरान कुछ भी संभव था। इसका कारण ये कि जड़ी-बूटियों में शक्तियाँ तो होती हैं लेकिन आसानी से वे अपने राज नहीं उगलतीँ। उनकी शक्तियों को प्राप्त करने की क्षमता एक उपहार की तरह होती है। जिन्हें यह उपहार मिले, उन्हें महारथी समझिए क्योंकि नीरस माहौल में किए गए कठिन परिश्रम के बाद ही यह हासिल होता है। अनेक वर्षों की तपस्या के बाद जड़ी-बूटियाँ अपने राज उगलती हैं।

खनिज अयस्क पर्वतों से उछलकर अपने आप बाहर नहीं आते। जड़ी-बूटियाँ अपनी ताकत खुद प्रदर्शित नहीं करतीं। इसीलिए उनसे कुछ हासिल कर लेना किसी थके-माँदे, आलसी, कमजोर या कायर व्यक्ति के बूते में नहीं होता। यह सिर्फ वही लोग कर पाते हैं, जिन्हें इसके लिए प्रकृति ने चुना है।

वह भी प्रकृति द्वारा चुने गए चुनिन्दा लोगों में शुमार थी। वह अपने साथ पिछले जन्म का भी कुछ ज्ञान साथ लेकर आई थी। इसीलिए उसे एहसास था कि वह इस काम को कर सकती है, निरन्तरता और अथक परिश्रम के साथ। सहनशीलता तो उसमें बचपन से स्थायी भाव के रूप में थी। अपनी इन्हीं क्षमताओं के बलबूते अब वह पेड़-पौधों, जड़ी-बूटियों में बहते रसों के साथ ही अपनी नसों में बहते खून की ध्वनि को भी सुनना सीखती।

लेकिन तभी सब उलट-पुलट हो गया। एक क्षण पहले हम इस असीम ज्ञान का उपहार मिलने की खुशी में उछल रहे थे। मगर दूसरे ही पल, बिना किसी चेतावनी के एक झटके में सब कुछ हम से छिन गया।

हम खाली रह गए। एक बार जब हमने उसे स्वीकार कर लिया था, तो हम लापरवाही नहीं कर सकते थे। हमारे सामने जो दरवाजे खुल चुके थे, उन्हें हम अधरझूल में नहीं छोड़ सकते थे। हमें उपहार की रक्षा करनी थी।

…“तुम कोई भगवान नहीं हो, जो गर्म पानी पर चल लोगे, नियमों को नरम कर दोगे, उनमें रद्द-ओ-बदल कर दोगे। उन्हें इसकी ज्यादा परवा नहीं, क्योंकि उनको इसकी कीमत नहीं चुकानी होती है। लेकिन तुम….!”

महाओझन की चेतावनी यहाँ स्पष्ट और पुरजोर थी। 

#MayaviAmbaAurShaitan
—-
(नोट :  यह श्रृंखला एनडीटीवी की पत्रकार और लेखक ऋचा लखेड़ा की ‘प्रभात प्रकाशन’ से प्रकाशित पुस्तक ‘मायावी अंबा और शैतान’ पर आधारित है। इस पुस्तक में ऋचा ने हिन्दुस्तान के कई अन्दरूनी इलाक़ों में आज भी व्याप्त कुरीति ‘डायन’ प्रथा को प्रभावी तरीक़े से उकेरा है। ऐसे सामाजिक मसलों से #अपनीडिजिटलडायरी का सरोकार है। इसीलिए प्रकाशक से पूर्व अनुमति लेकर #‘डायरी’ पर यह श्रृंखला चलाई जा रही है। पुस्तक पर पूरा कॉपीराइट लेखक और प्रकाशक का है। इसे किसी भी रूप में इस्तेमाल करना कानूनी कार्यवाही को बुलावा दे सकता है।) 
—- 
पुस्तक की पिछली 10 कड़ियाँ 

52 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : मात्रा, ज़हर को औषधि, औषधि को ज़हर बना देती है
51 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : न जाने यह उपहार उससे क्या कीमत वसूलने वाला है!
50 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : उसे लगा, जैसे किसी ने उससे सब छीन लिया हो
49 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : मात्रा ज्यादा हो जाए, तो दवा जहर बन जाती है
48 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : डायनें भी मरा करती हैं, पता है तुम्हें
47 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह खुद अपना अंत देख सकेगी… और मैं भी!
46 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : उसने बंदरों के लिए खासी रकम दी थी, सबसे ज्यादा
45 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : हाय हैंडसम, सुना है तू मुझे ढूँढ रहा था!
44 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : “मुझे डायन कहना बंद करो”, अंबा फट पड़ना चाहती थी
43 – मायावी अम्बा और शैतान : केवल डायन नहीं, तुम तो लड़ाकू डायन हो

सोशल मीडिया पर शेयर करें
Neelesh Dwivedi

Share
Published by
Neelesh Dwivedi

Recent Posts

‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह रो रहा था क्योंकि उसे पता था कि वह पाप कर रहा है!

बाहर बारिश हो रही थी। पानी के साथ ओले भी गिर रहे थे। सूरज अस्त… Read More

24 hours ago

नमो-भारत : स्पेन से आई ट्रेन हिन्दुस्तान में ‘गुम हो गई, या उसने यहाँ सूरत बदल’ ली?

एक ट्रेन के हिन्दुस्तान में ‘ग़ुम हो जाने की कहानी’ सुनाते हैं। वह साल 2016… Read More

2 days ago

मतदान से पहले सावधान, ‘मुफ़्तख़ोर सियासत’ हिमाचल, पंजाब को संकट में डाल चुकी है!

देश के दो राज्यों- जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में इस वक़्त विधानसभा चुनावों की प्रक्रिया चल… Read More

3 days ago

तो जी के क्या करेंगे… इसीलिए हम आत्महत्या रोकने वाली ‘टूलकिट’ बना रहे हैं!

तनाव के उन क्षणों में वे लोग भी आत्महत्या कर लेते हैं, जिनके पास शान,… Read More

5 days ago

हिन्दी दिवस :  छोटी सी बच्ची, छोटा सा वीडियो, छोटी सी कविता, बड़ा सा सन्देश…, सुनिए!

छोटी सी बच्ची, छोटा सा वीडियो, छोटी सी कविता, लेकिन बड़ा सा सन्देश... हम सब… Read More

5 days ago

ओलिम्पिक बनाम पैरालिम्पिक : सर्वांग, विकलांग, दिव्यांग और रील, राजनीति का ‘खेल’!

शीर्षक को विचित्र मत समझिए। इसे चित्र की तरह देखिए। पूरी कहानी परत-दर-परत समझ में… Read More

6 days ago