टीम डायरी
कहते हैं ‘पद के साथ मद’ यानि घमंड तो आ ही जाता है। और ‘मद’ के प्रभाव में पद के दुरुपयोग की सम्भावनाएँ भी हमेशा रहती हैं। उदाहरण मध्य प्रदेश का ही है, एकदम ताज़ा।
यहाँ एक मंत्री हैं, नरेंद्र शिवाजी पटेल, जिनसे जुड़ी ख़बरें अभी लगातार सुर्ख़ियाँ बन रही हैं। उनके लड़के अभिज्ञान ने अभी 30 मार्च को भोपाल में कुछ लोगों के साथ मारपीट कर दी। मामला पुलिस तक पहुँचा तो वहाँ भी पुलिसवालों को ख़ूब धमकाया। बेटे के पुलिस थाने में पहुँचने की बात मंत्री तक पहुँची तो वे भी वहाँ पहुँच गए। रौब-रुतबा दिखाया और पुत्र को छुड़ा कर ले आए। हालाँकि इस हरकत पर उनकी पार्टी ने कुछ सख़्ती दिखाई। लेकिन वह भी शायद इसलिए कि अभी चुनाव चल रहे हैं और इस विवाद से पार्टी को नुकसान हो सकता है। वरना तो यही मंत्री बीते कुछ महीनों से एक सार्वजनिक उद्यान पर भी कब्जा किए बैठे हैं। इससे वहाँ आने-जाने वालों को दिक्कतें हो रही हैं। मगर पटेल से सवाल पूछने की भी तक़लीफ़ अब तक न पार्टी ने उठाई, न सरकार ने।
इस तरह की बातें कोई नई नहीं हैं। किसी एक शहर, प्रदेश या देश क्या, दुनियाभर में ऐसी करोड़ों मिसालें रोज सामने आती रहती हैं। इंसान तो इंसान, बड़े घरों में पलने वाले कुत्ते-बिल्ली टाइप जानवरों के भी हाव-भाव पर ग़ौर कर लीजिए। अपने घरों के भीतर और बाहर वे हमेशा यूँ रहा करते हैं मानो इन्द्र की पदवी ही मिल गई हो उन्हें। मतलब ये सामान्य बात है, ‘पद के साथ मद’। बिरले ही होते होंगे जो इससे अछूते रह जाएँ।
अलबत्ता ऐसे बिरले लोगों में एक नज़ीर भी मध्य प्रदेश से ही निकलती है। यहाँ उच्च न्यायालय में एक जज साहब हैं। जस्टिस आनन्द पाठक। उन्होंने अपने पद और अधिकारों के सदुपयोग की अब तक अनूठी मिसाल पेश की है। वे जिन मामलों में फ़ैसला सुनाते हैं, उनमें पक्षकारों के लिए साथ-साथ कुछ और शर्तें जोड़ दिया करते हैं। जैसे- एक निश्चित संख्या में पौधे लगाने होंगे। सिर्फ़ पौधे लगाना ही नहीं, उनकी देखभाल भी करनी होगी। उन पौधों की सेहत का पूरा रिकॉर्ड निश्चित समय अन्तराल से ‘निसर्ग’ नामक मोबाइल एप्लीकेशन पर डालना होगा। यह एप्लीकेशन भी जस्टिस पाठक ने ही बनवाई है। ताकि वे निगरानी रख सकें कि उन्होंने जो आदेश दिया है, पक्षकार उसका पालन कर रहे हैंं या नहीं। वे इसके अलावा और भी कुछ अलग क़िस्म के आदेश देते हैं।
उदाहरण के लिए- अनाथालयों, वृद्धाश्रमों, अस्पतालों आदि में जाकर नियमित अन्तराल में सेवा करें। ऐसे स्थलों को आर्थिक मदद दें। अपने हिस्से में आए अर्थदंड की राशि को प्राकृतिक आपदा राहत कोष, सेना के शहीद जवानों के परिजनों आदि तक पहुँचाना सुनिश्चित करें। बताते हैं कि इस तरह के आदेशों के माध्यम से जस्टिस पाठक अब तक चार हजार से अधिक मामलों में 25 हजार से ज्यादा पौधे लगवा चुके हैं। ये अब पेड़ बनकर लहलहा रहे हैं। बड़ी मात्रा में विभिन्न संस्थाओं के लिए उन्होंने आर्थिक मदद की उपलब्धता भी सुनिश्चित की है। जस्टिस पाठक ने यह सिलसिला 2017 में तब शुरू किया था, जब वे मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की ग्वालियर खंडपीठ में पदस्थ थे। तभी से पद के सदुपयोग का उनका सिलसिला जारी है, अनवरत।
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