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टीएम कृष्ण विवाद : होली है भाई होली है, संगीत जगत में भी ‘कीचड़ वाली होली’ है!

नीलेश द्विवेदी, भोपाल मध्य प्रदेश

होली आ रही है। देश के कई स्थानों में पाँच दिन का यह उत्सव होलिका दहन के अगले दिन कीचड़ वाली होली से शुरू होता है। फिर पंचमी के दिन रंग वाली होली पर उत्सव का समापन होता है। कीचड़ वाली होली के दिन एक-दूसरे पर काली मिट्‌टी वाला कीचड़ (नाली का नहीं), गोबर, आदि उछालने-फेंकने की परम्परा है। बृज, बुन्देलखंड आदि अंचलों के गाँवों में आज भी इस परम्परा का निर्वाह किया जाता है।

देश में चुनाव भी चल रहे हैं। आम तौर पर नेताओं के लिए लोकतंत्र का यह ‘त्योहार’ कीचड़ वाली होली जैसा होता है। वैसे तो पूरे साल नेता एक-दूसरे पर कीचड़ उछालते रहते हैं। पर चुनाव के समय कीचड़ वाली किच-किच के लिए उन्हें पूरा खुला मैदान मिल जाता है। आम आदमी भी इस ‘कीचड़ोत्सव’ का भरपूर आनन्द लेता है। क्योंकि रास्ता तो अन्त में उसे वही पकड़ना है, जिस पर भीड़ चलती है। भीड़ तंत्र का हिस्सा जो है वह। 

यानि ये दो मौक़े तो ऐसे हुए जिनमें होने वाले ‘कीचड़ोत्सव’ पर किसी को शायद ही शंका हो। मगर ज़नाब, इस बार ‘कीचड़ोत्सव’ में एक नया दाख़िला हुआ है। ऐसे वर्ग का, जिससे जुड़े लोगों के बारे में कोई अमूमन सोच भी नहीं सकता कि वे ऐसा  कुछ करेंगे। ये हैं हमारे देश के मूर्धन्य संगीतकार। शास्त्रीय संगीतकार। दक्षिण भारत के संगीतकार, जो गर्व किया करते हैं कि उन्होंने भारत की सांगीतिक, सांस्कृतिक विरासत बचा रखी है। 

तो साहब मामला यूँ है कि दक्षिण भारत के एक नामी शास्त्रीय गायक हैं टीएम कृष्ण। उम्र अभी 50 के भीतर है इनकी, मगर इन्होंने नाम ख़ूब कमा लिया है। अंग्रेजीदाँ हैं इसलिए अंग्रेजी ज़ुबान के हिसाब से ख़ुद को ‘कृष्णा’ कहते हैं। लेकिन अपन इन्हें ‘कृष्ण’ लिखेंगे क्योंकि ‘कृष्णा’ तो स्त्रीवाचक संज्ञा है। जबकि टीएम कृष्ण हैं क्रान्तिकारी विचारों वाले पुरुष। इनके घनघोर क्रान्तिकारी विचारों के कारण ही ताज़ा कीचड़ोत्सव शुरू हुआ है। 

टीएम कृष्ण को चेन्नई संगीत अकादमी ने साल 2024 का ‘संगीत कलानिधि’ सम्मान देने की घोषणा की है। यह घोषणा होते ही दक्षिण भारतीय संगीतकारों के एक वर्ग ने चेन्नई संगीत अकादमी और टीएम कृष्ण के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया है। इनमें दो शास्त्रीय गायिका बहनों ‘रंजनी-गायत्री’ के नाम सबसे ऊपर हैं। इन्होंने दिसम्बर 2024 में होने वाले संगीत सम्मेलन से नाम वापस ले लिया है। यह चेन्नई संगीत अकादमी का वार्षिक आयोजन है। इस बार इसकी अध्यक्षता टीएम कृष्ण करने वाले हैं। इसमें 25 दिसम्बर को रंजनी-गायत्री का गायन तय था।

रंजनी-गायत्री के अलावा दक्षिण और उत्तर के कुछ अन्य संगीतकारों ने भी टीएम कृष्ण को सम्मान देने का विरोध किया है। इनमें उत्तर भारत के वरिष्ठ बाँसुरी वादक चेतन जोशी भी हैं। फेसबुक, एक्स जैसे मंचों पर इस बाबत अभियान चल रहा है। इस अभियान को कलाकारों, संगीत प्रेमियों की एक ज़मात हवा दे रही है। इसे देखते हुए चेन्नई संगीत अकादमी के अध्यक्ष एन मुरली ने सफाई दी। कहा, “टीएम कृष्ण को सम्मानित करने का निर्णय किन्हीं बाहरी कारकों से प्रभावित नहीं है। बल्कि संगीत में उनके उत्कृष्ट योगदान को ध्यान में रखकर हुआ है।” 

एन मुरली की बात सही भी है। टीएम कृष्ण 12 साल की उम्र से विभिन्न मंचों पर अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे हैं। अभी 48 साल के हो चुके हैं। यानि उनका सांगीतिक करियर 36 साल से ऊपर का हो चुका है। इस अवधि में उन्होने अपनी कला में उत्तरोत्तर महारत ही हासिल की है। अपनी गायकी का लोहा मनवाया है। इस लिहाज़ से यहाँ तक तो सब ठीक ही कहा जा सकता है। मगर जैसा ऊपर कहा, ये घनघोर क्रान्तिकारी विचारों वाले कलाकार हैं। अपने संगीत से समाज में क्रान्ति लाने की ख़्वाहिश रखते हैं। बेहद ऊर्जावान हैं। इसलिए अपने विचार रखने के क्रम में कई बार ऊर्जा के अतिरेक के कारण शब्दों की, व्यक्तित्त्वों की मर्यादा भूल जाया करते हैं। 

इसके कुछ उदाहरण देखिए। वर्ष 2017 में टीएम कृष्ण ने दक्षिण भारतीय संगीत की बेहद सम्मानित शास्त्रीय गायिका एमएस सुबुलक्ष्मी के बारे में कहा, “उन्हें अधिक स्वीकार्यता तब मिली, जब उन्होंने ख़ुद को ‘आदर्श ब्राह्मण महिला’ के रूप में पेश किया। अगर उनकी आवाज गैरउच्च जातियों के बीच से आती तो क्या हम उन्हें उतना सम्मान देते, जितना आज देते हैं?” ऐसे ही दक्षिण भारत में ‘संत’ का दर्ज़ा पा चुके संगीतकार त्यागराज के बारे में उन्होंने कहा, “उन्हें ईश्वर के अवतार जैसा मानना क़तई उचित नहीं। क्योंकि उनकी कई रचनाएँ समाज में जाति और लिंग भेद को बढ़ावा देने वाली रही हैं।” तमिलनाडु में द्रविड़ आन्दोलन के पुरोधा रहे ईवी रामासामी पेरियार के कट्‌टर समर्थक की हैसियत से टीएम कृष्ण कई बार धर्म और ईश्वर जैसी अवधारणाओं को भी चुनौती देते रहे हैं।

सो ज़ाहिर तौर पर अब बारी उनके विरोधियों की आई है। वह भी ऐसे समय जब होली के साथ चुनावी चकल्लस का भी मौसम है। लिहाज़ा, माक़ूल मौक़े पर इस बार ‘संगीत जगत में भी ‘कीचड़ वाली होली’ शुरू हुई है! होली है भाई होली है, बुरा न मानो होली है।’ और माने तो माने बुरा कोई, क्या फ़र्क पड़ना है। होली तो है, चुनाव भी है। ऐसे में ‘कीचड़ोत्सव’ ने अगर सम्मानित समझे जाने वाले संगीतकारों को भी ज़द में ले लिया, तो क्या बड़ी बात!

#TMKrishna #Carnaticmusic

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