Murar-Baji

शिवाजी ‘महाराज’ : मरते दम तक लड़े मुरार बाजी और जाते-जाते मिसाल कायम कर गए

बाबा साहब पुरन्दरे द्वारा लिखित और ‘महाराज’ शीर्षक से हिन्दी में प्रकाशित पुस्तक से

दिलेर खान ने वज्रगढ़ के मचान पर तोपें चढ़ा दीं। भयंकर बमबारी की। गढ़ की चारदीवारी में दरार पड़ गई। किले में मौजूद मराठों ने वीरता की पराकाष्ठा की। लेकिन आखिर खान ने किले पर अख्तियार कर ही लिया (दिनांक 14 अप्रैल 1665)। पहली फतह थी यह खान की। उसके हौसले बुलन्द हुए। अब उसने पुरन्दर पर मोर्चा लगाया। लेकिन वहाँ मुरार बाजी के जवान रात में मुगलों पर छापा मारते और तुरन्त किले में भाग जाते। एक बार उन्होंने रसूल बेग की तोप पर ही छापा मार दिया। उसके सुराख में कील ठोक कर उसे बेकार कर दिया। किले के सफेद बुर्ज पर मराठों का बारूद का भंडार था। वहाँ से 80 मराठा गोलाबारी कर रहे थे। लेकिन तभी अचानक प्रचंड विस्फोट हुआ। बुर्ज की धज्जियाँ उड़ (मई का पहला हफ्ता सन् 1665)। इसके बावजूद मुगल किले में घुस नहीं पाए।

खान ने अब अन्दरूनी किले पर तूफानी हमला करने की सोची। करीब 5,000 पठान एवं बहलियों की टुकड़ी को भेज दिया। यह देख मुरार बाजी अपने 700 जवाँ मर्दों के साथ किले से बाहर आए और मुगलों पर टूट पड़े। उनका जोश आग की लपटों जैसा संहारक था। भयंकर मार-काट मची। मुरार बाजी का हमला और जोश ऐसा खौफनाक था कि पठानों का तेजी से सफाया होने लगा। मराठा हमलावरों का भयानक जोश देख दिलेर खान को भी किले के नीचे की छावनी में लौटना पड़ा। हालाँकि चारों ओर से मोर्चे लगाकर मराठों को कुचल डालने की दिशा में वह कुछ करता, इससे पहले ही मुगलों का कत्लेआम करता मुरार बाजी का प्रलयंकारी समूह खान के सामने नमूंदार हो गया।

अब घनघोर युद्ध छिड़ गया। मुरार बाजी का जोश और तेजी से चलती तलवार। मानो सन्तप्त रुद्र ही तांडव कर रहे थे। शूरता का वह करिश्मा देख खान दंग रह गया। खुश होकर बोला “ऐ बहादुर! तुम्हारी बहादुरी देखकर दिल खुश हुआ। तुम हमारे साथ चलो। हम तुम्हारी कद्र करेंगे।” खान उसे घूस देकर भेदिया बनाना चाहता था। यह समझकर ईमानी, अभिमानी मुरार बाजी के तन-बदन में आग सी लग गई। तलवार नचाकर वह खान की तरफ दौड़े। फिर से हथियार जूझने लगे। तभी खान ने निशाना साधकर तीर छोड़ा। तीर मुरार बाजी के सीने में घुस गया। बाजी धड़ाम से नीचे गिरे। सीधे मीत की गोद में! लेकिन मरते दम तक मुरार बाजी लड़ते रहे। स्वराज्य की खातिर। जाते-जाते मिसाल कायम कर गए। दिलेर खान को बता गए कि स्वराज्य की सुरक्षा कैसे रणधुरन्धरों के हाथ में है।

मुरार बाजी लडाई में काम आए। उनके शव को लेकर मराठे सैनिक पहाड़ी दर्रे में ओझल हो गए। मुरार बाजी का अलौकिक शौर्य देख दिलेर खान ने दाँतों तले उँगली दबा ली थी। वह हैरत से बोला था, “ऐ ख़ुदा। कैसा दिलेर सिपाही पैदा किया था तूने।” मुरार बाजी की मौत से पुरन्दरगढ़ का सिर ही कट गया मानो। फिर भी पुरन्दरगढ़ जूझ रहा था। गढ़ को अजेय बनाया था, भयंकर जीवट से, जिद से लड़ने वाले महावीर चमार जवानों ने। करारे पहाड़ी कोली लोगों ने। राक्षसी शक्ति के धनी रामोशियों और महामर्दानी मावलों ने। नेता की मौत के बावजूद सभी एकदिल से ताकतवर मुगलों का मुकाबला कर रहे थे। मानो एकमुख से कह रहे थे, “मुरार बाजी न रहे तो क्या हुआ? हम उन्हीं की तरह बहादुर हैं। उसी हिम्मत से लोहा ले रहे हैं।” दिलेरखान ने सोचा था कि किले का मुखिया मर जाने से किला आसानी से हाथ आएगा। मगर वह गलती पर था। मराठे एक कदम भी पीछे नहीं हट रहे थे।

सीढ़ियों पर से रक्त के पनाले वह रहे थे। मुरार बाजी की मौत के पूरे 15 दिन गुजर गए। कहाँ तो खान शिवाजी राजे के सभी किले चुटकियों में जीतने की डींग हाँक रहा था। और कहाँ एक पुरन्दर जीतने के लिए उसे एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ रहा था। फिर तो बाकी किले जीतने में उसे सारी उमर ही लगानी पड़ती। पुरन्दर पर लड़ने वाले बहादूरों के नाम तक इतिहास नहीं जानता। उसे तो बस इतना ही मालूम है कि चाहने पर किले की सुरक्षा में खप गए ये बहादुर क्षणमात्र में अमीर बन सकते थे। दिलेर खान इनको ज्यादा तनख्वाह देता। ज्यादा मान देता। लेकिन बेईमानी के खोटे विचार इन शिवसैनिकों को छू भी नहीं पाए।

इधर मिर्जा राजा भी मराठों के घर-बार उजाड़ रहे थे। उनके कई सरदार पूरे मावल प्रदेश में आगजनी, लूटपाट और धर-पकड़ कर रहे थे। आग की लपटों में गाँव के गाँव जल रहे थे। तरुण स्त्री पुरुषों को जबर्दस्ती पकड़कर उनसे बेगार करवाई जा रही थी। सोचने की बात है कि आँख के सामने भरी-पूरी गृहस्थी उजड़ती देख मराठा बहू-बेटियों के दिल पर क्या बीतती होगी? बहू-बेटियों की बेइज्जती देख, घर से बाहर फेंके जाने वाले माँ-बाप, सास-ससुर पर क्या गुजरती होगी? फिर भी मराठा सिर झुक नहीं रहे थे।

ऐसे में, अब दिलेर खान जिद पर उतर आया। पूरी ताकत जुटाकर वह पुरन्दर पर हमले करने लगा। किले को बचाने के लिए महाराज के मर्द मराठे जूझ रहे थे। उनके हमले भी उतने ही जोरदार थे। तोपों, बन्दूकों के धमाके से आसमान गूँज रहा था। दो महीनों की घमासान लड़ाई के बावजूद गढ़ अभी तक मराठों के ही काबू में था। सो, अब मराठों को काबू में लाने के लिए मिर्जा राजा दूसरा नुस्खा सोचने लगे।
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(नोट : यह श्रृंखला #अपनीडिजिटलडायरी पर डायरी के विशिष्ट सरोकारों के तहत प्रकाशित की जा रही है। छत्रपति शिवाजी के जीवन पर ‘जाणता राजा’ जैसा मशहूर नाटक लिखने और निर्देशित करने वाले महाराष्ट्र के विख्यात नाटककार, इतिहासकार बाबा साहब पुरन्दरे ने एक किताब भी लिखी है। हिन्दी में ‘महाराज’ के नाम से प्रकाशित इस क़िताब में छत्रपति शिवाजी के जीवन-चरित्र को उकेरतीं छोटी-छोटी कहानियाँ हैं। ये कहानियाँ उसी पुस्तक से ली गईं हैं। इन्हें श्रृंखला के रूप में प्रकाशित करने का उद्देश्य सिर्फ़ इतना है कि पुरन्दरे जी ने जीवनभर शिवाजी महाराज के जीवन-चरित्र को सामने लाने का जो अथक प्रयास किया, उसकी कुछ जानकारी #अपनीडिजिटलडायरी के पाठकों तक भी पहुँचे। इस सामग्री पर #अपनीडिजिटलडायरी किसी तरह के कॉपीराइट का दावा नहीं करती। इससे सम्बन्धित सभी अधिकार बाबा साहब पुरन्दरे और उनके द्वारा प्राधिकृत लोगों के पास सुरक्षित हैं।) 
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शिवाजी ‘महाराज’ श्रृंखला की पिछली 20 कड़ियाँ 
33- शिवाजी ‘महाराज’ : जब ‘शक्तिशाली’ पुरन्दरगढ़ पर चढ़ आए ‘अजेय’ मिर्जा राजा
32- शिवाजी ‘महाराज’ : सिन्धुदुर्ग यानी आदिलशाही और फिरंगियों को शिवाजी की सीधी चुनौती
31- शिवाजी महाराज : जब शिवाजी ने अपनी आऊसाहब को स्वर्ण से तौल दिया
30-शिवाजी महाराज : “माँसाहब, मत जाइए। आप मेरी खातिर यह निश्चय छोड़ दीजिए”
29- शिवाजी महाराज : आखिर क्यों शिवाजी की सेना ने तीन दिन तक सूरत में लूट मचाई?
28- शिवाजी महाराज : जब शाइस्ता खान की उँगलियाँ कटीं, पर जान बची और लाखों पाए
27- शिवाजी महाराज : “उखाड़ दो टाल इनके और बन्द करो इन्हें किले में!”
26- शिवाजी महाराज : कौन था जो ‘सिर सलामत तो पगड़ी पचास’ कहते हुए भागा था?
25- शिवाजी महाराज : शिवाजी ‘महाराज’ : एक ‘इस्लामाबाद’ महाराष्ट्र में भी, जानते हैं कहाँ?
24- शिवाजी महाराज : अपने बलिदान से एक दर्रे को पावन कर गए बाजीप्रभु देशपांडे
23- शिवाजी महाराज :.. और सिद्दी जौहर का घेरा तोड़ शिवाजी विशालगढ़ की तरफ निकल भागे
22- शिवाजी महाराज : शिवाजी ने सिद्दी जौहर से ‘बिना शर्त शरणागति’ क्यों माँगी?
21- शिवाजी महाराज : जब 60 साल की जिजाऊ साहब खुद मोर्चे पर निकलने काे तैयार हो गईं
20-  शिवाजी महाराज : खान का कटा हुआ सिर देखकर आऊसाहब का कलेजा ठंडा हुआ
19- शिवाजी महाराज : लड़ाइयाँ ऐसे ही निष्ठावान् सरदारों, सिपाहियों के बलबूते पर जीती जाती हैं
18- शिवाजी महाराज : शिवाजी राजे ने जब अफजल खान के खून से होली खेली!
17- शिवाजी महाराज : शाही तख्त के सामने बीड़ा रखा था, दरबार चित्र की भाँति निस्तब्ध था
16- शिवाजी ‘महाराज’ : राजे को तलवार बहुत पसन्द आई, आगे इसी को उन्होंने नाम दिया ‘भवानी’
15- शिवाजी महाराज : कमजोर को कोई नहीं पूछता, सो उठो! शक्ति की उपासना करो
14- शिवाजी महाराज : बोलो “क्या चाहिए तुम्हें? तुम्हारा सुहाग या स्वराज्य?

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