प्लांट की सुरक्षा के लिए सब लापरवाह, बस, एंडरसन के लिए दिखाई परवाह

विजय मनोहर तिवारी की पुस्तक, ‘भोपाल गैस त्रासदी: आधी रात का सच’ से, 20/12/2021

सीजेएम कोर्ट के फैसले का पूर्व जिला न्यायाधीश रेणु शर्मा ने अध्ययन किया। इसमें वे बता रही हैं कि यूनियन कार्बाइड में किस कदर तकनीकी खामियां थीं, जिन पर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया। भोपाल प्लांट की डिजाइन में न सिर्फ खामियां थीं बल्कि उसमें सुरक्षा मानकों का भी पालन नहीं किया गया। कोर्ट द्वारा दिए फैसले में यह बात सामने आई कि फैक्टरी में ऐसी किसी तकनीक का इस्तेमाल नहीं किया गया जिससे कार्बाइड प्लांट में गैस लीक होने की जानकारी तत्काल मिल सके। यह पूरी तरह मानव अनुभव पर ही निर्भर थी।

श्रीमति शर्मा के अनुसार फैसले में उल्लेख है कि यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन (यूसीसी) के वेस्ट वर्जिनिया स्थित प्लांट में जो सुरक्षा मापदंड अपनाए गए वे भोपाल के प्लांट में लागू नहीं हुए। जब फैक्टरी खोलने का लाइसेंस दिया गया, तब यह स्पष्ट उल्लेख किया गया था कि प्लांट की डिजाइन और तकनीकी क्षमता, सुरक्षा में कोई त्रुटि नहीं बरती जाएगी और उसके संबंध में सही जानकारी दी जाएगी। यह शर्त भी रखी गई थी कि जहरीली गैस एमआईसी के स्टोरेज के लिए पुख्ता सुरक्षा इंतजाम किए जाएंगे और प्लांट लगाते समय हवा, पानी और मिट्टी में प्रदूषण न हो इसका भी ख्याल रखा जाएगा।

कोर्ट ने माना कि गैस के स्टोरेज टैंक, गैस स्क्रबर और प्लेयर टावर जो सुरक्षा की दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण उपकरण थे, सेफ्टी मैनुअल के अनुरूप काम नहीं कर रहे थे। यूसीसी द्वारा जो मैनुअल एमआईसी गैस के उत्पादन से संबंधित सुरक्षा का दृष्टि से जारी किया गया था, उसका बिल्कुल भी पालन नहीं किया गया। जैसे कि स्टोरेज टैंक को 60 प्रतिशत क्षमता तक भरा जाना चाहिए था जबकि दुर्घटना के समय उसकी क्षमता 80 प्रतिशत थी। वैंट गैस स्क्रबर सेफ्टी डिवाइस घटना के समय काम नहीं कर रहा था। इस बात की जानकारी सुपरवाइजर, प्रोडेक्शन मैनेजर, वर्क्स मैनेजर को थी। वहां कम क्षमता वाला गैस स्क्रबर लगा हुआ था। जितनी गैस रिसी, उसे गैस स्क्रबर कंट्रोल करने की क्षमता नहीं रखता था।

कोर्ट में यह बात भी साबित हुई कि फैक्टरी की रेफ्रिजरेशन यूनिट काम नहीं कर रही थी। गैस रिसने के पहले से ही वह बंद पड़ी हुई थी। इसे बंद करने का आदेश प्रोडक्शन मैनेजर एसपी चौधरी और वारेन वुमर (प्लांट के ओवरऑल इंचार्ज) ने दिया था। इस रेफ्रिजरेशन यूनिट को बंद करने के कारण स्टोरेज टैंक में गैस का दबाव बढ़ा और यह हादसा हुआ। दूसरी ओर यूसीसी के वेस्ट वर्जिनिया स्थित प्लांट में रेफ्रिजरेशन सिस्टम हमेशा चालू रखा जाता था। उसे फैक्टरी चालू होने के बाद से कभी बंद नहीं किया गया। कोर्ट ने यह भी माना कि फ्लेयर टावर (गैस को जलाकर नष्ट करने वाली चिमनी) भी काम नहीं कर रही थी। वह मेटेंनेंस में आउट ऑफ ऑर्डर पड़ी थी। 

फैसले में आया सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह कि यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन (यूएसए) से आए श्री पाल्सन ने पाया था कि कि प्लांट में लापरवाही बरती जा रही है और सुरक्षा की दृष्टि से कई खामियां हैं। इन सभी तथ्यों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि एंडरसन को प्लांट की खामियों की पूरी जानकारी थी। उन्हें दूर करने का उसने कोई प्रयास नहीं किया जिससे यह हादसा हुआ। सीबीआई की ओर से अदालत में पेश सबूतों को देखने से साफ है कि एंडरसन के खिलाफ धारा 304 भाग-2 के अंर्तगत कार्रवाई करने के पर्याप्त आधार हैं।…

हादसे के समय भोपाल के कलेक्टर और एसपी क्या कर रहे थे? जब वॉरन एंडरसन भोपाल आया तो क्या हुआ था? न तो ये सवाल नए थे, न इनके जवाब। फिर भी हादसे की परतें उघड़ने लगी थीं। हादसे का कुसूरवार एक-एक किरदार और ऊंचे ओहदों पर बैठे उनके मददगार निशाने पर आने लगे। जब खबरों में एंडरसन फोकस में आया तो कई लोग लपेटे में आ गए। तत्कालीन कलेक्टर और एसपी तो भोपाल में ही रहते हैं, जो सेवानिवृत्त हो चुके हैं।…  

हादसे के बाद सरकार किसी भी पार्टी की बनी, इन अफसरों की चमड़ी पर कभी कोई आंच नहीं आई। जब गैस हादसा हुआ कांग्रेस की सरकार थी, अर्जुनसिंह मुख्यमंत्री थे। जब हादसे को 25 साल हुए और अदालत का फैसला आया तो प्रदेश में सरकार भाजपा की है, शिवराजसिंह चौहान मुख्यमंत्री हैं।… 

एंडरसन को भगाने के मामले में तत्कालीन कलेक्टर मोतीसिंह और पुलिस अधीक्षक स्वराजपुरी भी कम गुनहगार नहीं हैं। दोनों ने कानून को तक पर रखकर एंडरसन को गैरजमानती अपराध में गलत ढंग से रिहा कर दिया था। अब मोतीसिंह यह कहकर हीरो बनने की कोशिश कर रहे हैं। कि एंडरसन को छोड़ने के लिए उनके पास तत्कालीन मुख्य सचिव (ब्रह्मस्वरूप) फोन आया था। लेकिन कलेक्टर के रूप में श्री सिंह ने अपने अधिकारों: को भूलकर गैरकानूनी फैसला कैसे ले लिया, इस सवाल पर वे चुप क्यों हैं? 

गैस कांड की पहली एफआईआर हनुमानगंज पुलिस ने घटना की रात ही धारा 304-ए, 304, 120-बी, 278, 429, 92 फैक्टरी एक्ट के तहत दर्ज की थी। इन्हीं धाराओं में सात दिसंबर 1984 को एंडरसन को गिरफ्तार किया गया था। पुलिस को इन धाराओं में जमानत का अधिकार नहीं है। यानी ये गैर जमानती अपराध की धाराएं हैं। इसमें जमानत सिर्फ न्यायिक मजिस्ट्रेट ही दे सकते हैं। इसके बावजूद पुलिस ने एंडरसन को मुचलके पर छोड़ दिया।

कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि इस मामले में मोतीसिंह-स्वराजपुरी के खिलाफ धारा 221 के तहत केस दर्ज किया जाना चाहिए। इस धारा के तहत… दोषी पाए जाने पर तीन वर्ष तक के कारावास और जुर्माने अथवा दोनों से दंडित किया जा सकता है।

पूर्व जिला न्यायाधीश रेणु शर्मा का सवाल था कि ऐसी कौन सी परिस्थिति थी, जिसके आधार पर एंडरसन को मात्र निजी मुचलके पर धारा 437 दंड प्रक्रिया संहिता के तहत छोड़ा गया। अगर इन तथ्यों का उल्लेख स्पष्ट रूप से केस डायरी में नहीं किया गया है तो इसके लिए प्रशासन के जिम्मेदार अधिकारियों और व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए। गैर जमानती अपराध में जमानत लेने वाली पुलिस और इसके बाद प्रशासन के अधिकारियों ने एंडरसन को बाइज्जत शासकीय विमान में बिठाकर भोपाल से दिल्ली रवाना करने में सहयोग दिया, उन सभी के खिलाफ क्यों न धारा 221 भारतीय दंड विधान के अंतर्गत कार्रवाई की जाए?
( जारी….)
——
विशेष आग्रह : #अपनीडिजिटलडयरी से जुड़े नियमित अपडेट्स के लिए डायरी के टेलीग्राम चैनल (लिंक के लिए यहाँ क्लिक करें) से भी जुड़ सकते हैं।  
——
(नोट : विजय मनोहर तिवारी जी, मध्य प्रदेश के सूचना आयुक्त, वरिष्ठ लेखक और पत्रकार हैं। उन्हें हाल ही में मध्य प्रदेश सरकार ने 2020 का शरद जोशी सम्मान भी दिया है। उनकी पूर्व-अनुमति और पुस्तक के प्रकाशक ‘बेंतेन बुक्स’ के सान्निध्य अग्रवाल की सहमति से #अपनीडिजिटलडायरी पर यह विशेष श्रृंखला चलाई जा रही है। इसके पीछे डायरी की अभिरुचि सिर्फ अपने सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक सरोकार तक सीमित है। इस श्रृंखला में पुस्तक की सामग्री अक्षरश: नहीं, बल्कि संपादित अंश के रूप में प्रकाशित की जा रही है। इसका कॉपीराइट पूरी तरह लेखक विजय मनोहर जी और बेंतेन बुक्स के पास सुरक्षित है। उनकी पूर्व अनुमति के बिना सामग्री का किसी भी रूप में इस्तेमाल कानूनी कार्यवाही का कारण बन सकता है।)
——-
श्रृंखला की पिछली कड़ियाँ 
7.केंद्र के साफ निर्देश थे कि वॉरेन एंडरसन को भारत लाने की कोशिश न की जाए!
6. कानून मंत्री भूल गए…इंसाफ दफन करने के इंतजाम उन्हीं की पार्टी ने किए थे!
5. एंडरसन को जब फैसले की जानकारी मिली होगी तो उसकी प्रतिक्रिया कैसी रही होगी?
4. हादसे के जिम्मेदारों को ऐसी सजा मिलनी चाहिए थी, जो मिसाल बनती, लेकिन…
3. फैसला आते ही आरोपियों को जमानत और पिछले दरवाज़े से रिहाई
2. फैसला, जिसमें देर भी गजब की और अंधेर भी जबर्दस्त!
1. गैस त्रासदी…जिसने लोकतंत्र के तीनों स्तंभों को सरे बाजार नंगा किया! 

सोशल मीडिया पर शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *