किसी को उम्मीद नहीं थी कि अदालत का फैसला पुराना रायता ऐसा फैला देगा

विजय मनोहर तिवारी की पुस्तक, ‘भोपाल गैस त्रासदी: आधी रात का सच’ से, 31/12/2021

किसी को उम्मीद नहीं थी कि अदालत का फैसला 25 साल (अब 37 साल) पुराना रायता ऐसा फैला देगा। मीडिया में जो कुछ भी खुलकर आ रहा था, उससे पहली बार व्यापक रूप से जाहिर हो रहा था कि हादसे के बाद हुए षड्यंत्रों, फायदे के सौदों आपराधिक अनदेखी, केस को कमजोर करने और दोषियों को बचाने क एक लंबा सिलसिला चला था, जिसमें सबने खुशी-खुशी हाथ बटाए थे। ये सारे चेहरे बेनकाब हो रहे थे… 

…एंडरसन की रिहाई के मामले में घिरी यूपीए सरकार ने मंत्री- समूह (जीओएम) के जरिये डैमेज कंट्रोल की कवायद शुरू की है। पहले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जीओएम को तत्काल बैठक करने और 10 दिन में रिपोर्ट देने को कहा। फिर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दबाव में समूह की पहली बैठक 18 जून को तय हो गई। मंत्रीसमूह के अध्यक्ष चिदंबरम ने तारीख की घोषणा की है।…

…1992 के बाद भोपाल गैस त्रासदी पर गठित विभिन्न मंत्री समूहों की 17 बैठकें हो चुकी हैं। इसके मुख्य मुद्दे-गैस पीड़ितों का इलाज, पुनर्वास, यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से जहरीले हटाना, स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराना एवं एंडरसन का प्रत्यर्पण आदि रहे हैं। हालांकि किसी भी मुद्दे का समाधान नहीं हो पाया है। 

मंत्रियों का यह नया झुंड पूरे देश को नासमझ समझने की गलती कर रहा है। कितने नासमझ हैं ये लोग? ये समझते हैं कि पब्लिक कुछ नहीं समझती। अखबारों के पन्नों पर छप रहे विश्लेषण सरल शब्दों और छोटे वाक्यों में बता रहे हैं कि कांग्रेस के कर्णधार तब क्या कर रहे थे और कांग्रेस के कर्णधारों के बाद के कर्णधार क्या रहे हैं?….

इधर देशव्यापी कैम्पेन का असर भी दिखाई देने लगा है। राजस्थान से खबर आई कि वहां जोधपुर में सुप्रीम कोर्ट और सांसदों को केस दुबारा खुलवाने की मांग को लेकर सिर्फ दो घंटे में ही 1,137 लोगों ने पोस्टकार्ड लिख दिए। गैस पीड़ितों को न्याय दिलाने की मुहिम के समर्थन में जयपुर, जोधपुर, कोटा और उदयपुर सहित राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों के लोग एकजुट हो गए हैं। सोमवार को जयपुर, जोधपुर, कोटा, उदयपुर सहित राजस्थान 16,037 पोस्टकार्ड सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और क्षेत्रीय सांसदों को भेजे गए। इनमें केस को फिर से खोलने की मांग की गई।…

विवाद इतना बढ़ने के बाद अब सबसे पहले कमर कसने की बारी मध्यप्रदेश सरकार की थी। इतने साल गुजरने के बाद आए अदालत के फैसले और इस बहाने शुरू हुए मीडिया के धुआंधार कवरेज ने सरकारों की मोटी चमड़ी के किसी कोने में कुछ संवेदनाएं पैदा कीं। उन्हें यकायक अहसास हुआ कि जिम्मेदारों पर कार्रवाई भी की जानी चाहिए।… 

भोपाल में सरकार की नजर सबसे पहले गई स्वराज पुरी पर। पुरी पुलिस महानिदेशक के पद से रिटायर होने के बाद नर्मदा घाटी के बांध विस्थापितों की समस्याओं के हल के लिए बनाए गए शिकायत निवारण प्राधिकरण के सदस्य की कुर्सी पर बिठा दिए गए थे। उनसे उनकी यह कुर्सी छीन ली गई। पिछले कुछ दिनों से टीवी पर 25 साल पुराने उनके दसेक सेकंड के फुटेज दिखाई दे रहे थे। इसमें वे हरी नीली एम्बेसडर कार में एंडरसन को ले जा रहे थे। कैमरापर्सन को देखकर उन्होंने हाथ भी हिलाया था। यह सात दिसंबर के दृश्य थे, जो बोतल में बंद जिन्न की तरह अचानक कहीं से प्रकट हुए और दुनिया ने देखा कि लाशों के ढेर में तब्दील भोपाल का पुलिस कप्तान हजारों बेगुनाहों की मौत के सबसे बड़े जिम्मेदार आदमी का बाइज्जत सारथी बना हुआ है। किसी चैनल की लाइब्रेरी में रखे ये फुटेज टीवी के परदे पर आए और इन महाशय के सितारे अचानक ही गड़बड़ा गए। लेकिन कार्रवाई का तीर चलाने के लिए सरकार का ध्यान पुरी की तरफ अचानक ही नहीं गया। 

इसका किस्सा भी बड़ा मजेदार है। हुआ यूं कि भाजपा के बुजुर्ग नेता सुंदरलाल पटवा की प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई। इसमें किसी पत्रकार ने पटवाजी को पुड़िया दी कि जो पुरी साहब एंडरसन को कार में बिठाकर ले जाते हुए इन दिनों लगातार टीवी पर दिखाई दे रहे हैं, उन्हें आपकी ही सरकार ने ऊंचे ओहदे पर बिठाया हुआ है। यही नहीं उन्हें राज्यमंत्री का दर्जा तक मिला हुआ है। पटवाजी ने यह बात सुन ली। संभव है मुख्यमंत्री को उन्होंने ही कुछ कहा हो, क्योंकि दो दिन के भीतर अचानक पुरी साहब प्राधिकरण से बोरिया बिस्तर समेटते दिखे।.. 

स्वराज पुरी के मामले में सरकार ने सुबह के एक रोचक भूले की भूमिका निभाई। ऐसा भूला जो उसी शाम नहीं लौटा है। उसी महीने की किसी शाम को भी नहीं लौटा। वह साल और दशक भी गुजर गया। फिर एक शाम अचानक आई। भूला हुआ अचानक लौट आया है। वह ठसक से दरवाजे पर खड़ा है। फैसला सुना रहा है। अब जरा पुरी साहब को मिली सौगातों पर भी गौर फरमाइए- एक अप्रैल 2005 से 22 सितंबर 2006 तक करीब डेढ़ साल तक प्रदेश पुलिस के मुखिया के पद पर रहे। 15 अगस्त 2007 को वह सेवानिवृत्त हुए और 14 दिसंबर 2007 को उन्हें प्राधिकरण के सदस्य के रूप में एक साल के लिए नियुक्ति दी गई। 18 दिसंबर 2008 और 13 नवंबर 2009 को उनका कार्यकाल एक-एक साल के लिए बढ़ाया गया। 

यह कार्यकाल कब तक बढ़ता रहता, मध्यप्रदेश के प्रशासनिक शक्तिपीठ- वल्लभ भवन में कोई नहीं जानता। एक फैसले के असर यहां रिक्टर स्केल पर 7.8 के साबित हुए। सितारे उलटे होते हैं तो पूरे ही उलटे होते हैं। अब देखिए, पुरी को सदस्य पद से हटाए जाने के बाद उनसे वीरता पदक वापस लेने की मांग भी उठने लगी है। गैस कांड के दौरान एसपी के रूप में ‘सराहनीय’ सेवाओं के लिए पुरी को राष्ट्रपति की और वीरता पदक मिला था। 

..वैसे सोनियर एडवोकेट राकेश श्रोती चंद उन लोगों में से हैं, जो मानते हैं कि पुरी ने एंडरसन मामले में जो भी किया हो, मगर हादसे के पीड़ितों के बीच उन्होंने गजब की कर्मठता से काम किया था। लीजिए, मैंने पुरी पर अपने किताबी कवरेज को बैलेंस कर दिया है। लेकिन यह भी उनकी लाइफ के दो और सिरे हैं। मतलब मनमोहन देसाई टाइप मूवी का पूरा मसाला।..
( जारी….)
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(नोट : विजय मनोहर तिवारी जी, मध्य प्रदेश के सूचना आयुक्त, वरिष्ठ लेखक और पत्रकार हैं। उन्हें हाल ही में मध्य प्रदेश सरकार ने 2020 का शरद जोशी सम्मान भी दिया है। उनकी पूर्व-अनुमति और पुस्तक के प्रकाशक ‘बेंतेन बुक्स’ के सान्निध्य अग्रवाल की सहमति से #अपनीडिजिटलडायरी पर यह विशेष श्रृंखला चलाई जा रही है। इसके पीछे डायरी की अभिरुचि सिर्फ अपने सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक सरोकार तक सीमित है। इस श्रृंखला में पुस्तक की सामग्री अक्षरश: नहीं, बल्कि संपादित अंश के रूप में प्रकाशित की जा रही है। इसका कॉपीराइट पूरी तरह लेखक विजय मनोहर जी और बेंतेन बुक्स के पास सुरक्षित है। उनकी पूर्व अनुमति के बिना सामग्री का किसी भी रूप में इस्तेमाल कानूनी कार्यवाही का कारण बन सकता है।)
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श्रृंखला की पिछली कड़ियाँ 
14. अर्जुन सिंह ने कहा था- उनकी मंशा एंडरसन को तंग करने की नहीं थी
13. एंडरसन की रिहाई ही नहीं, गिरफ्तारी भी ‘बड़ा घोटाला’ थी
12. जो शक्तिशाली हैं, संभवतः उनका यही चरित्र है…दोहरा!
11. भोपाल गैस त्रासदी घृणित विश्वासघात की कहानी है
10. वे निशाने पर आने लगे, वे दामन बचाने लगे!
9. एंडरसन को सरकारी विमान से दिल्ली ले जाने का आदेश अर्जुन सिंह के निवास से मिला था
8.प्लांट की सुरक्षा के लिए सब लापरवाह, बस, एंडरसन के लिए दिखाई परवाह
7.केंद्र के साफ निर्देश थे कि वॉरेन एंडरसन को भारत लाने की कोशिश न की जाए!
6. कानून मंत्री भूल गए…इंसाफ दफन करने के इंतजाम उन्हीं की पार्टी ने किए थे!
5. एंडरसन को जब फैसले की जानकारी मिली होगी तो उसकी प्रतिक्रिया कैसी रही होगी?
4. हादसे के जिम्मेदारों को ऐसी सजा मिलनी चाहिए थी, जो मिसाल बनती, लेकिन…
3. फैसला आते ही आरोपियों को जमानत और पिछले दरवाज़े से रिहाई
2. फैसला, जिसमें देर भी गजब की और अंधेर भी जबर्दस्त!
1. गैस त्रासदी…जिसने लोकतंत्र के तीनों स्तंभों को सरे बाजार नंगा किया! 

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