नीलेश द्विवेदी, भोपाल, मध्य प्रदेश
तन सिन्दूरी-मन सिन्दूरी, ऊपर शोभित गगन सिन्दूरी।
सींचा अपने खून से जिसको, वीरों की यह धरा सिन्दूरी।।
(भारत की इस धरती को लाखों-करोड़ों साल से वीरों ने अपने खून से सींचा है। इसकी सुरक्षा, इसके सम्मान के लिए देश के सिन्दूरी गगन की छाँव तले मौज़ूद इसका बच्चा-बच्चा अपना तन-मन सिन्दूरी करने काे तैयार है।)
पंचवटी में जिस दिन गूँजा, सीता का विलाप सिन्दूरी।
उसी समय यह नियत हो गया, दहकेगी लंका सिन्दूरी।।
(मानव इतिहास में नारी की मर्यादा, उसके सम्मान, उसके गौरव की रक्षा के लिए पहला ज्ञात ‘ऑपरेशन सिन्दूर’ श्रीराम ने शुरू किया, रावण के ख़िलाफ़। जिस दिन सीताजी का अपहरण हुआ, उसी दिन यह तय हो गया था कि अब लंका या भविष्य की लंकाएँ, उन्हें छोड़ा नहीं जाएगा। उन्हें सिन्दूरी लपटों के हवाले किया जाएगा।)
छिपकर आए थे वे कायर, खुलकर निकले ‘वीर सिन्दूरी’।
सागर की लहरों पर चलकर, पहुँचे लंका ‘तीर’ सिन्दूरी।।
(रावण-मारीच हों या पाकिस्तानी आतंकी, हमेशा छिपते-छिताते आए। लेकिन उन्हें मुँहतोड़ ज़वाब देने वाले वीर वानर हों या भारत की सेनाओं के मौज़ूदा सैनिक, सबने खुलकर हमला किया। समुद्र जैसी बाधाएँ भी उन्हें रोक नहीं सकी। उनके ‘तीर’ (हथियार), ‘तीर की तरह’ (तेज गति से) लंका-तीर (दुश्मन देश की सीमा में) पहुँचे।)
लंका के ‘लंगूर’ उछलकर, अपने गाल बजाते थे।
कहते थे अपना तो भोजन हैं, ये नर, वानर सिन्दूरी।।
(लंका के राक्षस उस समय भी बड़ी बातें करते थे कि नर-वानर तो हमारा भोजन हैं। ऐसी ही बातें पाकिस्तान से भी की जा रही हैं कि हम भारत की साँसें बन्द कर देंगे, सिन्धु से पानी बहेगा या हिन्दुस्तानियों का खून बहेगा, आदि। और काले के मुँह के लंगूरों के बारे में कहते भी हैं कि वे लाल मुँह वाले बन्दरों को शिकार बनाते हैं, मगर..)
दम्भ था उनका चूर कर दिया, दर्प था उनका दूर कर दिया।
उन्हीं वानरों, उन्हीं नरों ने, कर दी लंका लाल-सिन्दूरी।।
(भारत के वीरों ने रामायण काल से लेकर आज तक हमेशा दम्भी दुश्मनों का दर्प चूर-चूर किया है। जब-जब भी उनके शौर्य को ललकारा गया, उन्होंने दुश्मन देश की धरती को लाल और सिन्दूरी रंगों से रंग डाला है।)
सीता के उज्ज्वल ललाट पर, उभरा फिर वह गर्व सिन्दूरी।
भारत के आँगन-आँगन में, उतरा फिर वह पर्व सिन्दूरी।।
(ऑपरेशन सिन्दूर जैसे अभियानों के तहत हर बार जीत भारत की हुई क्योंकि श्रीराम के समय से आज तक भारतीयों ने धर्म, सत्य और न्याय के लिए युद्ध किया है। ऐसे युद्धों से नारी की मर्यादा को लौटाया है। भारत भूमि के गौरव को बचाया है। इसीलिए इन युद्धों में जीत के बाद पूरे भारत में हमेशा उत्सव मनाया जाता रहा है।)
अन्त नहीं था उस दिन लेकिन, वह तो था आरम्भ सिन्दूरी।
बदले भारत की भाषा का, वह तो था प्रारम्भ सिन्दूरी।।
(सीता का अपहरण कर श्रीराम को चुनौती देने वाला रावण मारा गया, लेकिन राक्षस ख़त्म नहीं हुए। कभी कंस तो, कभी दुर्याधन की सूरत में सामने आते रहे। इसी कारण उस ‘ऑपरेशन सिन्दूरी’ के बाद से भारत की यह नीति निश्चित हो गई कि हम अव्वल तो किसी को छेड़ेंगे नहीं, और हमें छेड़ा गया तो फिर छोड़ेंगे नहीं।)
धरती के कोने-कोने तक, पहुँचा था सन्देश सिन्दूरी।
भारत माता के आँचल से, रखना ज़रा बनाकर दूरी।।
(ऑपरेशन सिन्दूर जैसे अभियान भारत की ओर आँख उठाकर देखने वालों को सीधा उत्तर होते हैं। प्रारम्भिक सी चुनौती होते हैं कि इस तरफ़ आँखें तरेरने की कोशिश भी की तो मिट्टी में मिला दिए जाओगे।)
अन्यथा ‘महारण’ फिर होगा, कुरु समरांगण फिर होगा।
इस धर्म-धरा श्रृंगार हेतु, रण का होगा अवलम्ब सिन्दूरी।।
(ऑपरेशन सिन्दूर की प्रारम्भिक चुनौती से दुश्मन न माने तो फिर ‘महारण’ निश्चित है। उस महारण का ‘अवलम्ब’ यानि आधार भी सिन्दूरी होना तय है। श्रीराम के समय रावण की मृत्यु के साथ ही मामला समाप्त हो गया था। लेकिन श्रीकृष्ण के समय उनके बार-बार समझाने, चेताने पर भी दुर्योधन आख़िर नहीं माना और कुरुक्षेत्र में वैश्विक इतिहास का पहला विश्वयुद्ध ‘महाभारत’ हुआ। उसका तात्कालिक कारण द्रौपदी का अपमान बना।)
तन सिन्दूरी-मन सिन्दूरी, ऊपर शोभित गगन सिन्दूरी।
सींचा अपने खून से जिसको, वीरों की यह धरा सिन्दूरी।।
© नीलेश द्विवेदी
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