टीम डायरी
भारत का इतिहास रहा है, सौम्यता का प्रदर्शन। उनके साथ भी बड़ा दिल दिखाना, जो उसके साथ बुरा करते हैं। इस चक्कर में तमाम विदेशी लुटेरे हमलावर कालान्तर में भारत के भीतर घुस आए। देश को सैकड़ों सालों तक ग़ुलाम बना कर रखा। भयानक लूट-पाट की। धर्म के नाम पर उत्पात मचाया। क़त्ल-ओ-ग़ारत की। फिर उतने पर भी जी नहीं भरा तो 1947 में ख़ुद को ईमानपसन्द और अमनपसन्द कहने वाले मुस्लिम चरमपन्थी इस देश के कुछ बेशक़ीमती ज़मीनी हिस्से काटकर अपने क़ब्ज़े में ले गए। नया मुल्क़ बना लिया उन्होंने।
उस मुल्क़ से भी उन्हें सन्तोष न हुआ तो और लूटने-खसोटने के इरादे से भारत के भीतर आतंक भड़काने लगे। भारत में छोटे-बड़े हमले कर नए-नए ज़मीनी हिस्सों पर क़ब्ज़ा जमाने की क़ोशिशें करने लगे। चार बार तो सीधी लड़ाई ही लड़ ली। पहली 1948 में, जब कबाइली हमले की आड़ में जम्मू-कश्मीर का एक हिस्सा धोखे से हथिया किया। दूसरी 1965 में, जब मुँह की खानी पड़ी। तीसरी 1971 में जब बांग्लादेश गँवा दिया। और चौथी 1999 में करगिल, जब हिन्दुस्तान की ज़मीन से पीठ दिखाकर भागना पड़ा। मगर उन्होंने सबक नहीं सीखा।
अलबत्ता, भारत ने इतिहास की इन तमाम घटनाओं से सबक सीख लिया है यक़ीनन। इसीलिए क़रीब एक दशक पहले हुक़ूमत सँभालने वाली हिन्दुस्तान की मौज़ूदा सरकार ‘इतिहास बदलने पर आमादा’ है। इसलिए वह इतिहास में की गई गलतियाँ सुधार रही है। मसलन- पहले आतंकी हमलों के बाद आतंक की जड़ों पर प्रहार नहीं किया जाता था। इससे कि अन्तर्राष्ट्रीय सीमा (भारतीय संयम की मर्यादा) का उल्लंघन न हो। लेकिन मौज़ूदा सरकार ने यह हद लाँघ ली। एक बार नहीं, तीन बार। पहले 2016 में उरी हमले के बाद पाकिस्तान के क़ब्ज़े वाले कश्मीर पर ‘सर्जिकल स्ट्राइक’। फिर 2019 में पुलवामा हमले के बाद बालाकोट तक ‘एयर स्ट्राइक’। और अब पहलगाम आतंकी हमले के बाद ‘ऑपरेशन सिन्दूर’। यह अभियान अभी ख़त्म नहीं हुआ है। लगातार जारी है।
भारत के तेवर देखकर इस बार ऐसा लगता है कि इस बार भारत ऐसे संघर्षों में अपना इतिहास बदलने पर आमादा है। उसने बाक़ायदा घोषित तौर ‘ऑपरेशन सिन्दूर’ शुरू किया है। पहले पाकिस्तान के भीतर 100 किलोमीटर पर सिर्फ़ आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया। नौ ठिकानों को 21 हमलों से ध्वस्त किया और आतंकी मारे। साथ ही स्पष्ट किया कि पाकिस्तान अगर ज़वाब कार्रवाई नहीं करता तो वह भी आगे कोई और आक्रामकता नहीं दिखाएगा। लेकिन पाकिस्तान ने ग़लती कर दी। उसने आठ मई की अल-सुबह पहले भारत के 15 नागरिक और सैन्य ठिकानों को निशाना बनाने की क़ोशिश की। ये भी हमले नाक़ाम कर दिए गए।
भारत ने ज़वाबी कार्रवाई में आठ मई को दिन में ही पाकिस्तान के रावलपिंडी, कराची, लाहौर, जैसे शहरों पर हमले किए। पाकिस्तान के 10 एयर डिफेंस सिस्टम (हवाई हमलों से बचाने वाला सुरक्षा कवच) में से छह को नाक़ाम किया। पाकिस्तान ने आठ मई की ही रात भारत के जैसलमेर, जम्मू, पठानकोट, आदि छह-सात शहरों में मानवरहित विमानों (ड्रोन) से हमले किए। लेकिन वे भी नाकाम हो गए। उल्टा उनके दो लड़ाकू विमान भी भारत ने मार गिराए और इसके बाद भारत के लड़ाकू विमान पाकिस्तान में फिर क़हर बरपाने घुस गए हैं।
मतलब पूर्ण युद्ध शुरू हो चुका है, ऐसा मान लेना चाहिए। ऐसे युद्धों में भारत का अब तक इतिहास रहा है कि उसने युद्ध ख़त्म होते ही अपने जीते हुए इलाक़े लौटा दिए हैं। फिर चाहे 1965 का युद्ध रहा हो, या 1971 का। भारत की सेना 1965 में लाहौर तक का इलाक़ा जीत चुकी थी। लेकिन तत्कालीन सोवियत संघ के ताशकन्द में हुए समझौते के बाद वह इलाक़ा पाकिस्तान को लौटा दिया। हालाँकि 1971 में बांग्लादेश को पाकिस्तान से तोड़कर अलग देश बनाने में भारत ने भूमिका निभाई लेकिन अपना कश्मीर का हिस्सा वापस नहीं ले सका।
अलबत्ता, इस बार के मिल रहे संकेतों की मानें तो भारत अब यह ऐतिहासिक ग़लती नहीं दोहराएगा। इस बार युद्ध बढ़ने के बाद भारत ने सिर्फ़ पाकिस्तान के क़ब्ज़े वाले कश्मीर को वापस लेने की कोशिश कर सकता है, बल्कि बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) की मदद कर बलूचों के इलाक़े को पाकिस्तान से अलग कराने का प्रयास भी कर सकता है। भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ते युद्ध उन्माद के बीच जिस तरह बीएलए ने अपनी सक्रियता बढ़ाई है, उससे इस बात की काफ़ी सम्भावना नज़र आती है। यानि इसे दूसरे शब्दों में कहें तो भारत अगर अपना इतिहास बदलने पर आमादा है तो पाकिस्तान ख़ुद ‘अपना भूगोल’ बदलने के रास्ते पर निकल पड़ा है।
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