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ओलिम्पिक बनाम पैरालिम्पिक : सर्वांग, विकलांग, दिव्यांग और रील, राजनीति का ‘खेल’!

नीलेश द्विवेदी, भोपाल मध्य प्रदेश

शीर्षक को विचित्र मत समझिए। इसे चित्र की तरह देखिए। पूरी कहानी परत-दर-परत समझ में आ जाएगी। हालाँकि उससे पहले सर्वांग, विकलांग और दिव्यांग की संक्षिप्त परिभाषा समझ लेते हैं, नए परिप्रेक्ष्य में। 

सर्वांग : वे लोग, जो शरीर, दिल और दिमाग़ से पूरी तरह दुरुस्त हैं, तन्दुरुस्त हैं। 

विकलांग : ऐसे लोग, जो शरीर के किसी अंग या दिल-दिमाग़ से किसी भी रूप में अक्षम हैं। और वह अक्षमता उनकी क़ाबिलियत को कुन्द कर देती है। उनके आगे बढ़ने में बाधा बन जाती है। 

दिव्यांग : इस श्रेणी वे लोग हैं, जो अपने ऊपर शरीर, दिल या दिमाग़ की किसी भी तरह की अक्षमता को हावी नहीं होते देते। उसे पराजित कर विजेता के रूप में ऊँचे पायदानों पर खड़े होते हैं। 

इसके बाद अब नीचे दी गई पहली पदक तालिका को देखिए। अभी हाल ही में ख़त्म हुए पेरिस पैरालिम्पिक-2024 की पदक तालिका है यह। इसमें 29 पदकों के साथ भारत 18वें स्थान पर नज़र आ रहा है। इन पदकों में भी सात तो स्वर्ण पदक ही हैं, जिन्होंने हमारे दिव्यांग खिलाड़ियों ने जीतकर इतिहास रचा है। यहाँ ग़ौर कीजिए कि इस पैरालिम्पिक में भारत से सिर्फ़ 84 दिव्यांग खिलाडृी ही पेरिस गए थे।  

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स्वर्ण जीतने वाले भारत के दिव्यांगों में एक हैं नवदीप सैनी। उन्होंने भाला फेंक प्रतिस्पर्धा में पदक जीता है। अभी 12 अगस्त, गुरुवार को वे भारतीय पैरालिम्पिक दल के अन्य सदस्यों के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिले थे। प्रधानमंत्री आवास में यह मुलाक़ात हुई। इस दौरान नवदीप ने प्रधानमंत्री को टोपी पहनाने की इच्छा जताई तो उन्होंने बिना समय गँवाए न सिर्फ़ उन्हें रज़ामन्दी दी बल्कि नवदीप ठीक से टोपी पहना सकें, इसलिए वे ज़मीन पर ही बैठ गए। कारण कि नवदीप का क़द सिर्फ़ साढे चार फीट है। यही नहीं, ज़मीन पर बैठे प्रधानमंत्री ने नवदीप से पूछा भी, “लग रहा है न कि तुम बड़े हो।” यह था, प्रतिभा का सम्मान। देखिए वीडियो, नीचे दिया गया है।  

इसके बाद अब नीचे दी गई दूसरी पदक तालिका देखिए। यह पेरिस ओलिम्पिक-2024 में भारत के सर्वांग खिलाड़ियों के प्रदर्शन की कहानी कहती है। पदक तालिका में भारत सिर्फ़ छह पदकों के साथ 71वें स्थान पर है। मतलब दिव्यांग खिलाड़ियों द्वारा जीते स्वर्ण पदकों की संख्या के बराबर भी कुल पदक हमारे सर्वांग खिलाड़ी नहीं जीत सके। जबकि ओलिम्पिक के लिए पेरिस जाने वाले भारतीय खिलाड़ियों की संख्या इस बार 117 थी।   

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वैसे, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारतीय ओलिम्पिक दल के सभी सदस्यों को भी अपने आवास पर बुलाया। वहाँ उनका हौसला बढ़ाया। लेकिन साथ ही उन्होंने सर्वांगों को आईना भी दिखा दिया। प्रधानमंत्री बोले, “आप में से मैंने देखा है कि इन दिनों काफ़ी लोग मोबाइल पर चिपके रहते हैं।…. रील देखते हैं और रील बनाते हैं?” प्रधानमंत्री ने जब यह बात कही तो खिलाड़ियों के चेहरे देखने लायक थे। नीचे दिए वीडियो में देख सकते हैं।

अलबत्ता, इसी बीच भारतीय हॉकी खिलाड़ियों ने स्पष्ट किया कि उन्होंने ओलम्पिक के दौरान मोबाइल और सोशल मीडिया से पूरी तरह दूरी बनाई हुई थी। ग़ौर कीजिए कि हॉकी टीम ने लगातार दूसरे ओलिम्पिक में काँस्य पदक जीता भी है। ख़ैर, हॉकी खिलाड़ियों की बात सुनने के बाद प्रधानमंत्री ने नसीहत भी दी कि नौजवान ‘जितना हो सके, मोबाइल फोन और रील से दूर रहें। वर्ना ज़्यादा समय इसमें जाता (बर्बाद होता) है।” 

लेकिन खेल को यहाँ भी खत्म न समझें। खेलों में ‘राजनीति का खेल’ भी है। इस सिलसिले में विनेश फोगाट अभी सबसे ज़्यादा सुर्ख़ियाँ बटोर रही हैं। विनेश हरियाणा में कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ रही हैं। कुछ दिनों पहले ओलिम्पिक के दौरान वे ख़ुद से लड़ रही थीं। वहाँ वे फाइनल मुक़ाबले से पहले ही प्रतिस्पर्धा से बाहर हो गईं। वह भी बिना कोई पदक लिए। ऐसा क्यों हुआ? इस बारे मेंं  #अपनीडिजिटलडायरी पर उनसे जुड़े दो लेखों में बताया गया था। नीचे दोनों लेखों के शीर्षक साथ उनका लिंक भी है। पढ़ा जा सकता है। 

पेरिस ओलिम्पिक 2024 : तो क्या ओलिम्पिक में विनेश फोगाट अपनी ही ज़िद से हारीं?  

ओलिम्पिक : विनेश 100 ग्राम वज़न से हारीं, अमन ने वज़न को 100 ग्राम से हराया, क्योंकि…

विनेश ओलिम्पिक से पहले भी लड़ रही थीं। उन्होंने साल  2023 में अपने साथी- बजरंग पूनिया और साक्षी मलिक के साथ दिल्ली में कई दिनों तक धरना-प्रदर्शन किया था। उनकी माँग थी कि भारतीय कुश्ती महासंघ के तत्कालीन अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह को हटाया जाए। इसके लिए उन्होंने खेल रत्न पुरस्कार भी लौटा दिया। आख़िर में बृजभूषण को पद छोड़ना पड़ा। लेकिन इस दावे के साथ कि उनके खिलाफ़ ये खिलाड़ी राजनीति के मोहरे हैं। 

उस वक़्त ये तमाम दावे ख़ारिज़ कर दिए। लेकिन अब विनेश की साथी साक्षी मलिक दुखी हैं। उन्हें लगता है कि विनेश और बजरंग (वे भी कांग्रेस में शामिल हुए हैं) के फ़ैसले ने महिला पहलवानों की आवाज़ को कमज़ोर कर दिया है। सिर्फ़ साक्षी ही नहीं, विनेश के ताऊ और उन्हें कुश्ती के दाँव-पेंच सिखाने वाले महावीर फोगाट भी ख़ुश नहीं हैं। उन्होंने साफ कहा है, ‘विनेश को अपने खेल पर ध्यान पर देना चाहिए था।” 

सच है। ध्यान की ही तो बात है। रील और राजनीति पर अधिक ध्यान की वज़ा से अच्छे भले सर्वांग आजकल विकलांग हुए जाते हैं। जबकि रील और राजनीति से दूरी रखने वाले विकलांग प्रतिष्ठा पा रहे हैं, दिव्यांगों की तरह। क्या इन उदाहरणों से यह साबित नहीं होता? सोचिएगा।

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