सुकून वहाँ नहीं जहाँ हम ढूँढ़ते हैं

रैना द्विवेदी, भोपाल, मध्य प्रदेश से, 25/2/2021

जीवन की आपाधापी। तरक्की के ऊँचे पायदान। खूब पैसा। तमाम सुविधाएँ। लेकिन क्या इन सब को पाकर हम खुश हैं? संतुष्ट हैं? हमारा मन शान्त है?

इन सवालों के ज़वाब अधिकांश लोगों के पास ‘नहीं’ में ही हो सकते हैं। इसीलिए यहाँ फिर सवाल हो सकता है कि आख़िरकार ऐसा क्यों है कि जिन चीजों के पीछे हम भाग रहे हैं। जिन्हें हम कुछ हद तक हासिल भी कर रहे हैं। उन्हें पाकर, उनके लिए कोशिश कर के भी हमें आनन्द क्यों नहीं मिलता? 

इसका ज़वाब इस छोटी सी कहानी में है। बहुत साधारण सा। कि दरअसल, हम वह नहीं कर रहे होते हैं, जो हमारी प्रकृति के अनुरूप होता है। हमने अपने लिए ऐसे लक्ष्य तय कर रखे होते हैं, जो दुनियावी तौर पर सही या अच्छे माने जाते हैं। जबकि शान्ति और संतुष्टि के लिए ज़रूरी, बल्कि सबसे ज़रूरी ये है कि हम अपनी प्रकृति, अपनी नैसर्गिकता के अनुरूप अपने लिए लक्ष्य तय करें। उन्हें हासिल करने लिए अपना श्रम, अपना परिश्रम लगाएँ।

——

(रैना द्विवेदी, गृहिणी हैं। भोपाल में रहती हैं। वे हमेशा की तरह #अपनीडिजिटलडायरी​ के लिए यह कहानी लेकर आई हैं। इसका वीडियो उन्होंने व्हाट्सएप सन्देश के तौर पर भेजा है।)

सोशल मीडिया पर शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *