निकेश जैन, इन्दौर मध्य प्रदेश
पहलगाम में जब 22 अप्रैल को आतंकी हमला हुआ, तब मेरी माँ और बहन वहीं थीं। जहाँ पर्यटकों को मारा गया, वहाँ से महज़ एक किलोमीटर की दूरी पर थीं दोनों। कहने की ज़रूरत नहीं कि जब मैंने उस आतंकी हमले की ख़बर सुनी तो उसके बाद के अगले 48 घन्टे मेरे ऊपर कितने भारी पड़े। कैसी बेचैनी में गुजरे।
मेरी माँ ऊपर चढ़ पाने में सक्षम नहीं हैं, इसलिए वे पहलगाम में ही रह गईं थीं, नीचे। लेकिन जब आतंकी हमला हुआ, तो उन्हें भी सुरक्षा के मद्देनज़र अन्य पर्यटकों के साथ आनन-फानन में वहाँ से भागना पड़ा। इसी दौरान मेरी माँ को एक परिवार मिला, जो बदहवास सा ऊपर की तरफ़ से नीचे भागा आ रहा था। जंगलों की तरफ़ से वे लोग कैसे भी, बचकर आए थे। उनके कपड़े फटे हुए थे। महिलाओं ने माथे की बिन्दियाँ अपने हाथों से पोंछ ली थीं। ताकि उनकी पहचान छिप सके। उन्हें और उनके जैसे कुछ अन्य लोगों की भी मेरी माँ और बहन ने मदद की।
ऐसी और भी कई कहानियाँ हैं। ज़्यादातर डराने वालीं हैं। उनमें से कुछ तो ऐसी हैं, जिन्हें मैं यहाँ लिख भी नहीं सकता। मेरी माँ और बहन के साथ मुझे भी इस यात्रा पर कश्मीर जाना था। मेरी बहन का 50वाँ जन्मदिन मनाने के लिए हम सब लोग वहाँ जाने वाले थे। लेकिन आख़िरी मौक़े पर मेरे पिताजी ने वहाँ जाने से मना कर दिया। उनके साथ घर पर रहने के लिए मैं भी रुक गया। अलबत्ता मैं अगर कश्मीर में, मौक़े पर होता तो यक़ीनन मैं ऊपर पहाड़ी पर भी चढ़ा ही होता और निश्चित रूप से आतंकियों के सामने होता। पर क़िस्मत कहें या कुछ और, ऐसा नहीं हुआ।
उस घटना के बाद दो दिन तक मेरी माँ और बहन अपने होटल में ही बन्द रहीं। इसके बाद ही श्रीनगर हवाई अड्डे से इन्दौर के लिए वापस लौट सकीं। इस घटना से मेरे भीतर इतना गुस्सा है कि पूछिए मत!! हमारे ही देश में हमारी पहचान पूछकर कोई हमें गोली मार दे। यह कैसे हो सकता? ये नहीं होना चाहिए। मैं उम्मीद करता हूँ कि सरकार इस क़ायराना हरक़त का माक़ूल ज़वाब देगी। ज़वाब ऐसा होना चाहिए कि दुनिया उसे याद रखे।
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निकेश का मूल लेख
My mother and sister were just a km from the place where incident happened in Pahalgam on 22nd April. Needless to say last 48 hours have been disturbing and full of anxiety for me.
My mother could not climb so they decided to stay in Pahalgam only and when incident happened they also ran for safety along with others.
My mother met families who came running from the mountain through jungle. Their cloths were torn; females had removed their “bindis”. My mother and sister helped few families.
Horrific stories which she told me that I can’t even write here!
I was supposed to travel with them to celebrate my sister’s 50th birthday in Kashmir but at the last moment my father backed out so I also cancelled my plan to stay with him. If I was there, I bet I would have gone up to the mountain! Call it luck or destiny something was at work.
For 2 days my sister and mother just stayed inside their hotel and this morning they left from Srinagar airport. I am sure I will hear more stories when I meet them at Indore airport in few hours from now.
I am very angry about this whole incident like many of us are. Someone questioned our identity. Not done!
I hope my government will respond in a manner that world will remember it for times to come.
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(निकेश जैन, कॉरपोरेट प्रशिक्षण के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनी- एड्यूरिगो टेक्नोलॉजी के सह-संस्थापक हैं। उनकी अनुमति से उनका यह लेख अपेक्षित संशोधनों और भाषायी बदलावों के साथ #अपनीडिजिटलडायरी पर लिया गया है। मूल रूप से अंग्रेजी में उन्होंने इसे लिंक्डइन पर लिखा है।)
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निकेश के पिछले 10 लेख
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53 – भगवान महावीर के ‘अपरिग्रह’ सिद्धान्त ने मुझे हमेशा राह दिखाई, सबको दिखा सकता है
52 – “अपने बच्चों को इतना मत पढ़ाओ कि वे आपको अकेला छोड़ दें!”
51 – क्रिकेट में जुआ, हमने नहीं छुआ…क्योंकि हमारे माता-पिता ने हमारी परवरिश अच्छे से की!
50 – मेरी इतिहास की किताबों में ‘छावा’ (सम्भाजी महाराज) से जुड़ी कोई जानकारी क्यों नहीं थी?
49 – अमेरिका में कितने वेतन की उम्मीद करते हैं? 14,000 रुपए! हम गलतियों से ऐसे ही सीखते हैं!
48 – साल 2047 तक विकसित भारत का लक्ष्य क्या वाकई असम्भव है? या फिर कैसे सम्भव है?
47 – उल्टे हाथ से लिखने वाले की तस्वीर बनाने को कहा तो एआई ने सीधे हाथ वाले की बना दी!
46 – ‘ट्रम्प 20 साल पहले अमेरिकी राष्ट्रपति बन जाते, तो हमारे बच्चे ‘भारतीय’ होते’!
45 – 70 या 90 नहीं, मैंने तो हफ़्ते में 100 घंटे भी काम किया, मगर उसका ‘हासिल’ क्या?