असफलता झेलने के लिए ख़ुद को पहले से तैयार रखें, इसमें कोई बुराई नहीं

ज़ीनत ज़ैदी, शाहदरा, दिल्ली

आज के दौर में जहाँ हमारे पास सोशल मीडिया पर विज्ञापनों कि भरमार है, वहीं हमारी समझ इतनी छोटी हो गई है कि हम अच्छे और बुरे के बीच में भेद ही नहीं कर पाते। हमारे पास विकल्प ज़्यादा हो गए हैं लेकिन जानकारी कम हो चुकी है। हम अक्सर उसे सच मान लेते हैं, जो हमें सच की तरह दिखाया जाता है। हम जाँच-पड़ताल नहीं करते। ज़रूरत ही नहीं समझते। इस स्थिति को गूगल और चैट जीपीटी जैसे मंच और ख़राब कर रहे हैं। ये सिर्फ़ एक बटन दबाने पर दुनिया भर की जानकारी हमें उपलब्ध कराते हैं। पर क्या आप मानेंगे कि यही हमारे सबसे बड़े दुश्मन भी बन रहे हैं क्योंकि ये हमारी सोचने-समझने की क्षमता को नष्ट कर रहे हैं।

सोशल मीडिया ने विशिष्ट (Specific) विकल्प हमारे मन में बैठा दिए हैंl इनसे हमारी आलोचनात्मक सोच (critical thinking) की धज्जियाँ उड़ गई हैं। इससे अब हमने अपने बच्चों को राय देना तक छोड़ दिया है। उन्हें सही-ग़लत, उचित-अनुचित का फ़र्क बताना लगभग बन्द कर ही दिया है। हमारे पास दलील है कि बच्चे अब अपना भला-बुरा ख़ुद समझ सकते हैं। उन्हें वो काम करने देना चाहिए, जिसमें उनकी रुचि (interest) हो, वग़ैरा। लेकिन क्या यह सोच हमारे लिए सही है? क्या इसके नतीज़े सही ही हो रहे हैं? और सही हो रहे हैं तो यूपीएससी की परीक्षा देने वाले लाखों बच्चे जो इसमें सफल नहीं हो पाते, वे डिप्रेशन के शिकार क्याें होते हैं? कोटा, राजस्थान के कोचिंग संस्थानों में पढ़ने वाले बच्चों की आत्महत्या के मामले अक्सर ही क्यों सुनने में आते हैं?

दरअसल, बच्चों की सोचने की क्षमता भी लगातार कम होती जा रही है। वे सिक्के के दो पहलुओं को देखने और समझने में नाकाम हैं। वे उस चमक को तो देख रहे हैं, जो अपना लक्ष्य हासिल करने के बाद मिलती है, लेकिन वे उसी लक्ष्य को हासिल न करने वालों के हाल से अनजान रहते हैं। वे सिर्फ़ देखते हैं कि हम कामयाब होंगे, क्योंकि हम पूरी कोशिश कर रहे हैं। लेकिन क्या हमेशा ऐसा सच में हो पता है? क्या ये ज़रूरी ही है?

ज़वाब ये बच्चे ही जानें, लेकिन क्या ये बेहतर नहीं होगा कि हम असफलता को झेलने के लिए खुद को पहले ही तैयार रखें? आख़िर वह भी तो एक पहलू है ही? इसे देख-समझ लेने में कोई बुराई नहीं। बल्कि इससे हमारा मानसिक स्वास्थ्य ही ठीक रहेगा, ख़ासकर असफलता की स्थिति में। क्योंकि हम ज़ल्द उस स्थिति से निकलकर नई शुरुआत कर सकेंगे। हालाँकि बात फिर वही कि हमारी सोच को इस तरह से विकसित होने ही नहीं दिया जा रहा है। और इस समस्या की जड़ में है- विज्ञापन और लालच, जो बचपन से ही दिमाग़ों में भरा जा रहा है।

इससे बचने के लिए हमें सिर्फ़ इतना करना होगा कि हम उस वज़ह को जानें, जिसमें हमारी दिलचस्पी का विकास हुआ। थोड़ा सोच-विचार करें। विश्लेषण करें। समझें कि हम जो कर रहे हैं वह क्यों कर रहे हैं, उसके हासिल से हमें खुशी होगी या नहीं, हमें सुकून मिलेगा या नहीं, तो हमारे काम में हमारी सफलता की सम्भावना बढ़ जाएगी। सिर्फ़ यही नहीं, हम तुलनात्मक रूप से ज़्यादा ख़ुश भी रह सकेंगे।

इंसानी दिमाग़ कुछ भी कर सकता है। बस, ज़रूरत है, सही दिशा और प्रेरणा की। 

जय हिन्द। 
——
(ज़ीनत #अपनीडिजिटलडायरी के सजग पाठक और नियमित लेखकों में से एक हैं। दिल्ली के आरपीवीवी, सूरजमलविहार स्कूल में 11वीं कक्षा में पढ़ती हैं। लेकिन इतनी कम उम्र में भी अपने लेखों के जरिए गम्भीर मसले उठाती हैं। उन्होंने यह आर्टिकल सीधे #अपनीडिजिटलडायरी के ‘अपनी डायरी लिखिए’ सेक्शन पर पोस्ट किया है।)
——-
ज़ीनत के पिछले 10 लेख
14- जी-20 के लिए चमचमाती दिल्ली की पर्दों से ढँकी स्याह हक़ीक़त!
13- क्या हम पारसियों और उनके नए साल के बारे में जानते हैं? जान लीजिए, न जानते हों तो!
12- त्यौहार सिर्फ़ अमीरों का ही नहीं, बल्कि हर गरीब का भी होता है, लोगों के बारे में साेचिए
11- भरोसा रखिए… वह क़िस्मत लिखता है, तो वही उसे बदल भी सकता है
10. जिसने अपने लक्ष्य समझ लिया, उसने जीवन को समझ लिया, पर उस लक्ष्य को समझें कैसे?
9- क्या स्कूली बच्चों को पानी पीने तक का अधिकार नहीं?
8- शिक्षक वो अज़ीम शख़्सियत है, जो हमेशा हमें आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करता है
7- हो सके तो अपनी दिनचर्या में ज्यादा से ज्यादा हिन्दी का प्रयोग करें, ताकि….
6- खुद को पहचानिए, ताकि आप खुद ही खुद से महरूम न रह जाएँ
5- अनाज की बरबादी : मैं अपने सवाल का जवाब तलाशते-तलाशते रुआसी हो उठती हूँ

सोशल मीडिया पर शेयर करें
From Visitor

Share
Published by
From Visitor

Recent Posts

‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह रो रहा था क्योंकि उसे पता था कि वह पाप कर रहा है!

बाहर बारिश हो रही थी। पानी के साथ ओले भी गिर रहे थे। सूरज अस्त… Read More

24 hours ago

नमो-भारत : स्पेन से आई ट्रेन हिन्दुस्तान में ‘गुम हो गई, या उसने यहाँ सूरत बदल’ ली?

एक ट्रेन के हिन्दुस्तान में ‘ग़ुम हो जाने की कहानी’ सुनाते हैं। वह साल 2016… Read More

2 days ago

मतदान से पहले सावधान, ‘मुफ़्तख़ोर सियासत’ हिमाचल, पंजाब को संकट में डाल चुकी है!

देश के दो राज्यों- जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में इस वक़्त विधानसभा चुनावों की प्रक्रिया चल… Read More

3 days ago

तो जी के क्या करेंगे… इसीलिए हम आत्महत्या रोकने वाली ‘टूलकिट’ बना रहे हैं!

तनाव के उन क्षणों में वे लोग भी आत्महत्या कर लेते हैं, जिनके पास शान,… Read More

5 days ago

हिन्दी दिवस :  छोटी सी बच्ची, छोटा सा वीडियो, छोटी सी कविता, बड़ा सा सन्देश…, सुनिए!

छोटी सी बच्ची, छोटा सा वीडियो, छोटी सी कविता, लेकिन बड़ा सा सन्देश... हम सब… Read More

5 days ago

ओलिम्पिक बनाम पैरालिम्पिक : सर्वांग, विकलांग, दिव्यांग और रील, राजनीति का ‘खेल’!

शीर्षक को विचित्र मत समझिए। इसे चित्र की तरह देखिए। पूरी कहानी परत-दर-परत समझ में… Read More

6 days ago