डॉ. शिशिर कुमार यादव, कानपुर, उत्तर प्रदेश से, 4/8/2021
कल से आँखें ख़ुशी से नम हैं। ओलम्पिक में रोज़ाना ही कोई न कोई इतिहास रचा जा रहा है। कल क़तर के एक खिलाड़ी ने न केवल इतिहास रचा, बल्कि मुझे इतिहास की एक घटना याद भी दिला दी। इस खिलाड़ी का नाम है मुताज़ एज़ा बर्शिम।
इस खिलाड़ी ने जो किया, उससे बचपन में पढ़ी सिकन्दर की कहानी याद आ गई। सिकन्दर, जिसे विश्व विजेता का दर्जा मिला था। इतिहास में दर्ज एक ऐसा शासक, जिसके जैसा बनने की कल्पना आने वाले हज़ारों शासकों ने की। लेकिन उस मक़ाम को कोई हासिल नहीं कर पाया। तमाम किस्से हैं, उस सिकन्दर के बारे में। पर एक किस्सा जो मेरे मन में हमेशा के लिए बसा रहा, वह था- पुरु के साथ उसका व्यवहार।
कहते हैं, जब सिकन्दर ने उससे पूछा कि तुम्हारे साथ क्या व्यवहार किया जाए तो पुरु ने एक योद्धा की तरह प्रत्युत्तर में कहा, “जैसा एक योद्धा दूसरे योद्धा के साथ करता है।” इस जवाब से सिकन्दर बहुत ख़ुश हुआ। बताते हैं कि इसके बाद उसने पुरु का जीता राज्य उसे वापस कर दिया और लौट गया।
हम भारतीयों को इस कहानी में पुरु को नायक और वीर के तौर पर पेश किया जाता रहा है, जो कि वे रहे भी होंगे। लेकिन इस घटना ने मेरे मन में सिकन्दर के लिए एक अलग सम्मान पैदा कर दिया। वह मेरे लिए विश्व-विजेता से कहीं अधिक बड़ा हो गया।
बचपन की कहानी जवानी के दौर से गुज़र रही है। मैं हतप्रभ हूँ यह देखकर कि खेल के मैदान में ऐसे ही एक योद्धा ने दूसरे योद्धा को न केवल सम्मान दिया, बल्कि अपनी जीत को साझा कर ओलम्पिक के इतिहास में अपना नाम अमर कर लिया।
क़तर का खिलाड़ी मुताज़ एज़ा बर्शिम, जिसके पास ऊँची कूद में अपने देश के लिए स्वर्ण ले जाने का मौका था। लेकिन बर्शिम ने स्वर्ण पदक लेने के बदले इसे साझा करने का फै़सला किया। क्योंकि इटली के उनके प्रतिद्वन्द्वी गियानमार्को टेम्बरी चोटिल हो गए थे। यह देख बर्शिम ने अपने प्रयासों को स्थगित कर दिया और स्वर्ण पदक साझा करने का ऐलान कर दिया। ऐसा कर उन्होंने ओलम्पिक इतिहास में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में लिखवा लिया।
ऐसा नहीं है कि दोनों के बीच प्रतिस्पर्धा नहीं हुई। दोनों ने तीन प्रयासों में 2.37 मीटर तक की समान ऊँचाई पर छलाँग लगाई। कोई भी एक मिलीमीटर कम नहीं हो रहा था। लेकिन चौथे प्रयास से पहले ही इटली के गियानमार्को टेम्बरी के पैर में चोट आ गई। इसके बाद क़तर के खिलाड़ी मुताज़ के पास मौका था कि वह अकेले ही स्वर्ण का पदक जीत लेते। लेकिन उन्होंने अधिकारियों से बात की और पूछा कि अगर वे इस चौथे प्रयास को न लें तो क्या पदक दोनों में साझा किया जा सकता है। अधिकारियों ने नियम की पुष्टि के साथ सहमति दी और क़तर का यह खिलाड़ी ओलम्पिक इतिहास में सिकन्दर की तरह महान हो गया।
मानवीय मूल्यों और खेल भावना के ऐसे स्वर्णिम आदर्श सिर्फ़ कहानियों में कहे जाते रहे हैं। लेकिन इस खिलाड़ी ने उन्हें आज चरितार्थ कर दिया। आँखें ख़ुशी से नम हैं।
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(डॉ. शिशिर कुमार यादव ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से डिज़ास्टर एंड डेवलपमेंट में पीएचडी की है। फिलहाल वह विकास क्षेत्र में कार्यरत हैं। जीवन में उम्मीद और मानवता बनी रहे, यही उनकी कोशिश है।)
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