भगवान महावीर मानव के अधोपतन का कारण क्या बताते हैं?

अनुज राज पाठक, दिल्ली से, 28/12/2021

भगवान महावीर के शिष्य ने एक बार प्रश्न किया, “गुरुदेव, मनुष्य के अधोपतन का क्या कारण है और उससे अपनी मुक्ति के लिए क्या किया जाना चाहिए?” 

इसका उत्तर देने के बजाय महावीर ने प्रश्न किया, “यदि कोई कमंडलु भारी है और उसमें पानी भी अधिक मात्रा में समा सकता हो, तो क्या वह खाली अवस्था में छोड़े जाने पर डूबेगा?”

“कदापि नहीं,” शिष्य ने उन्हें ज़वाब दिया, “बस, उसमें कोई छिद्र न हो।” 

इसके बाद महावीर बोले, “बिल्कुल इसी तरह मनुष्य में यदि कोई दुर्गुण रूपी छिद्र हुआ, तो समझ लो कि वह भी टिकने वाला नहीं। असत्य भाषण, हिंसा, क्रोध, लोभ, मोह, मत्सर, अहंकार ये सारे दुर्गुण मनुष्य को डुबोने में कारणीभूत हो सकते हैं। इसलिए हमें सदा यह ध्यान में रखना चाहिए कि हमारे जीवनरूपी कमंडलु में कोई दुर्गुणरूपी छिद्र तो जन्म नहीं ले रहा है। यदि हमने उसी समय उसे उभरने नहीं दिया, भर दिया तो जान लो हमारा जीवन निष्कंटक रहेगा।” 

भगवान महावीर की यह बात सुनकर उनके शिष्य को पहले तो विश्वास नहीं हुआ, लेकिन जब उसने इस बात पर गौर किया तो उसे लगा कि उसके गुरू ठीक कह रहे हैं। यदि उसकी दाईं ओर एक छिद्र हो तो क्या उस अवस्था में भी वह तैर सकता है। नहीं, वह डूब जाएगा। और छिद्र बाईं ओर हो तो? छिद्र बाईं ओर हो या दाईं ओर ओर, छिद्र कहीं भी हो, पानी उसमें प्रवेश करेगा और अन्तत: वह डूब ही जाएगा। 

तो यह जान लें कि मानव जीवन भी कमंडलु के समान है। इसलिए भगवान महावीर अपने त्रिरत्नों में तीसरे रत्न के रूप में सद्चरित्र को रखते हैं। चरित्र ऐसा हो, जो पापों से दूर रखे। 

जैन आचार्य चरित्र की व्याख्या करते हुए कहते हैं, “पाप से सब प्रकार के सम्बन्ध का त्याग करना ही सम्यक् चरित्र है। “सर्वथावद्ययोगानां त्यागश्चारित्रमुच्यते।” ये पाप कर्मों से सम्बन्ध ही छिद्र हैं, जो मानव को डुबा देते हैं। 
—-
(अनुज, मूल रूप से बरेली, उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं। दिल्ली में रहते हैं और अध्यापन कार्य से जुड़े हैं। वे #अपनीडिजिटलडायरी के संस्थापक सदस्यों में से हैं। यह लेख, उनकी ‘भारतीय दर्शन’ श्रृंखला की 41वीं कड़ी है।) 
— 
डायरी के पाठक अब #अपनीडिजिटिलडायरी के टेलीग्राम चैनल से भी जुड़ सकते हैं। जहाँ डायरी से जुड़ अपडेट लगातार मिलते रहेंगे। #अपनीडिजिटिलडायरी के टेलीग्राम चैनल से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करना होगा। 
—- 
अनुज राज की ‘भारतीय दर्शन’ श्रृंखला की पिछली कड़ियां… 
40. सम्यक् ज्ञान : …का रहीम हरि को घट्यो, जो भृगु मारी लात!
39. भगवान महावीर ने अपने उपदेशों में जिन तीन रत्नों की चर्चा की, वे कौन से हैं?
38. जाे जिनेन्द्र कहे गए, वे कौन लोग हैं और क्यों?
37. कब अहिंसा भी परपीड़न का कारण बनती है?
36. सोचिए कि जो हुआ, जो कहा, जो जाना, क्या वही अंतिम सत्य है
35: जो क्षमा करे वो महावीर, जो क्षमा सिखाए वो महावीर…
34 : बौद्ध अपनी ही ज़मीन से छिन्न होकर भिन्न क्यों है?
33 : मुक्ति का सबसे आसान रास्ता बुद्ध कौन सा बताते हैं?
32 : हमेशा सौम्य रहने वाले बुद्ध अन्तिम उपदेश में कठोर क्यों होते हैं? 
31 : बुद्ध तो मतभिन्नता का भी आदर करते थे, तो उनके अनुयायी मतभेद क्यों पैदा कर रहे हैं?
30 : “गए थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास”
29 : कोई है ही नहीं ईश्वर, जिसे अपने पाप समर्पित कर हम मुक्त हो जाएँ!
28 : बुद्ध कुछ प्रश्नों पर मौन हो जाते हैं, मुस्कुरा उठते हैं, क्यों?
27 : महात्मा बुद्ध आत्मा को क्यों नकार देते हैं?
26 : कृष्ण और बुद्ध के बीच मौलिक अन्तर क्या हैं?
25 : बुद्ध की बताई ‘सम्यक समाधि’, ‘गुरुओं’ की तरह, अर्जुन के जैसी
24 : सम्यक स्मृति; कि हम मोक्ष के पथ पर बढ़ें, तालिबान नहीं, कृष्ण हो सकें
23 : सम्यक प्रयत्न; बोल्ट ने ओलम्पिक में 115 सेकेंड दौड़ने के लिए जो श्रम किया, वैसा! 
22 : सम्यक आजीविका : ऐसा कार्य, आय का ऐसा स्रोत जो ‘सद्’ हो, अच्छा हो 
21 : सम्यक कर्म : सही क्या, गलत क्या, इसका निर्णय कैसे हो? 
20 : सम्यक वचन : वाणी के व्यवहार से हर व्यक्ति के स्तर का पता चलता है 
19 : सम्यक ज्ञान, हम जब समाज का हित सोचते हैं, स्वयं का हित स्वत: होने लगता है 
18 : बुद्ध बताते हैं, दु:ख से छुटकारा पाने का सही मार्ग क्या है 
17 : बुद्ध त्याग का तीसरे आर्य-सत्य के रूप में परिचय क्यों कराते हैं? 
16 : प्रश्न है, सदियाँ बीत जाने के बाद भी बुद्ध एक ही क्यों हुए भला? 
15 : धर्म-पालन की तृष्णा भी कैसे दु:ख का कारण बन सकती है? 
14 : “अपने प्रकाशक खुद बनो”, बुद्ध के इस कथन का अर्थ क्या है? 
13 : बुद्ध की दृष्टि में दु:ख क्या है और आर्यसत्य कौन से हैं? 
12 : वैशाख पूर्णिमा, बुद्ध का पुनर्जन्म और धर्मचक्रप्रवर्तन 
11 : सिद्धार्थ के बुद्ध हो जाने की यात्रा की भूमिका कैसे तैयार हुई? 
10 :विवादित होने पर भी चार्वाक दर्शन लोकप्रिय क्यों रहा है? 
9 : दर्शन हमें परिवर्तन की राह दिखाता है, विश्वरथ से विश्वामित्र हो जाने की! 
8 : यह वैश्विक महामारी कोरोना हमें किस ‘दर्शन’ से साक्षात् करा रही है?  
7 : ज्ञान हमें दुःख से, भय से मुक्ति दिलाता है, जानें कैसे? 
6 : स्वयं को जानना है तो वेद को जानें, वे समस्त ज्ञान का स्रोत है 
5 : आचार्य चार्वाक के मत का दूसरा नाम ‘लोकायत’ क्यों पड़ा? 
4 : चार्वाक हमें भूत-भविष्य के बोझ से मुक्त करना चाहते हैं, पर क्या हम हो पाए हैं? 
3 : ‘चारु-वाक्’…औरन को शीतल करे, आपहुँ शीतल होए! 
2 : परम् ब्रह्म को जानने, प्राप्त करने का क्रम कैसे शुरू हुआ होगा? 
1 : भारतीय दर्शन की उत्पत्ति कैसे हुई होगी? 

सोशल मीडिया पर शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *