Self Censorship

रिमोट, मोबाइल, सब हमारे हाथ में…, ख़राब कन्टेन्ट पर ख़ुद प्रतिबन्ध क्यों नहीं लगाते?

टीम डायरी

अभी गुरुवार, 6 मार्च को जाने-माने अभिनेता पंकज कपूर भोपाल आए। यहाँ शुक्रवार, 7 मार्च को रवीन्द्र भवन में हुए नाटक ‘दोपहरी’ में उन्होंने मुख्य भूमिका निभाई। लेकिन उससे पहले मीडिया वालों से बातचीत के दौरान उन्होंने बड़ी महत्त्वपूर्ण बात कही। ऐसी, जो हर किसी के काम की है। हर किसी के लिए ‘रोचक-सोचक’ है।

टेलीविज़न, यूट्यूब और ख़ास तौर पर ओटीटी (ओवर द टॉप) मंचों पर लगातार आ रही ख़राब सामग्री (कन्टेन्ट) के बारे में उनसे एक सवाल किया गया। इस पर उन्होंने कहा, “यह अत्याधुनिक तकनीक का दौर है। आर्टिफिशियल इन्टेलिजेंस (एआई) का समय है। इसमें अब कोई कानून, कोई सरकार, डिजिटल मंचों पर लगातार आने वाली सामग्री (कन्टेन्ट) को उस तरह से प्रतिबन्धित नहीं कर सकती, जैसी पहले सेन्सरशिप के ज़रिए कर दिया करती थी।”

तो फिर रास्ता क्या है? इसके ज़वाब में पंकज जी बोले, “सीधी बात है। रिमोट, माउस, मोबाइल, कंप्यूटर, लैपटॉप, सब तो हमारे हाथ में है। उनका नियंत्रण हमारे पास है। हम ख़ुद ख़राब कन्टेन्ट पर प्रतिबन्ध क्यों नहीं लगाते? जो चीज़ हमें ठीक नहीं लगती, उसे हम देखें ही क्येां? हम वह देखें, वह सुनें, जो हमारी सोच के अनुरूप हो। जो हमारी परिस्थिति पर सही बैठता हो। उन संस्कारों, परम्पराओं के हिसाब का हो, जिनमें हमारा पालन-पोषण हुआ।”

पंकज जी की बात निराधार या बेदम नहीं है। इसका ताज़ा उदाहरण अभी तीन-चार दिन पहले ही सामने आया। एक यूट्यूबर हैं- समय रैना। उनके कार्यक्रम ‘इन्डिया गॉट लेटेन्ट’ में बीते दिनों कुछ अभद्र क़िस्म की बातें हो गईं। ऐसी, जिनका ज़िक्र भी #अपनीडिजिटलडायरी पर उपयुक्त नहीं। अलबत्ता, कुछ लोग इस मसले को पुलिस और अदालत के दायरे में ले गए। मामला सर्वोच्च न्यायालय में पहुँचा तो अदालत ने उन्हें फटकार लगा दी।

इस फटकार का कारण क्या? उनके कार्यक्रम से सम्बन्धित विवादित मामले पर अदालत में सुनवाई लम्बित होने पर भी वे कनाडा में बड़ी बेशर्मी के साथ भारत की अदालती कार्यवाही का मज़ाक बना रहे थे। लिहाज़ा, न्यायाधीशों के ध्यान में जैसे ही यह बात आई, उन्होंने समय रैना को चेतावनी दे डाली, “मर्यादित व्यवहार कीजिए। नहीं तो हमें पता है कि आप जैसे लोगों को उनकी मर्यादा में कैसे लाना है।” हालाँकि सवाल फिर भी अपनी जगह है।

सवाल यह कि कानून, सरकार, अदालतें आख़िर किस-किस को मर्यादा में लाएँगी? और क्या ये पूरी तरह सम्भव भी है? नहीं। इसलिए पंकज जी की बात पर ग़ौर करना ज़रूरी है। ऐसे लोगों का इलाज़ सिर्फ़ हम-आप ही कर सकते हैं। इनसे, इनके कार्यक्रमों से, उनमें परोसी जा रही सामग्री से पूरी तरह एक निश्चित दूरी बनाकर।

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