दुखी इंसान की उम्र 10 साल कम हो जाती है, सो सुखी कैसे रहें फिनलैंड से सीखिए!

टीम डायरी

दुखी होना और रहना किसी बीमारी से ज्यादा खतरनाक होता है। ऐसा हाल ही सामने आए शोध अध्ययनों से साबित हुआ है। अमेरिका में ‘एजिंग यूएस’ नाम का एक जर्नल प्रकाशित होता है। इसमें अमेरिका की स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी और हॉन्गकॉन्ग की चाइनीज यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का अध्ययन प्रकाशित हुआ है। इसके मुताबिक, अगर कोई इंसान लगातार दुखी रहता है। अकेलापन महसूस करता है। तनाव या अवसाद में रहता है, तो यह स्थिति कई बीमारियों से ज्यादा घातक है। सिगरेट पीने, तम्बाकू खाने की वजह से बनने वाली स्थितियों से भी ज्यादा खतरनाक। इसकी वजह से इंसान की उम्र सामान्य व्यक्ति की तुलना में 10 साल तक कम हो जाती है। मतलब अगर कोई 60 साल में ऊपर जाने वाला है, तो लगातार दुखी रहने से 50 साल में भगवान को प्यारा हो जाएगा। 

तो ये हुई एक बात। जिसका कुल जमा मतलब ये है कि हालात कैसे भी हैं, दिमाग को हमेशा सुकून में रखने की कोशिश करना ही फायदेमन्द है। ‘हरहाल में खुशहाल’ को जीवन का मूल मंत्र बना लेने में ही अक्लमन्दी है। पर अब सवाल ये हो सकता है कि भाई, खुश रहा कैसे जाए? नुस्खा क्या है इसका? अब बाजार में किलो के भाव में तो खुशी मिलती नहीं। जो कोई भी जाए और खरीद लाए? ये सवाल थोड़े मुश्किल लग सकते हैं। पर इनके जवाब इतने मुश्किल भी नहीं हैं। अभी एक हफ्ते पहले ही हर साल की तरह ‘विश्व खुशहाली सूचकांक’ जारी हुआ है। यानी ‘वर्ल्ड हैप्पीनेस इन्डेक्स’। इसके बाद से इससे जुड़ी खबरें लगातार प्रकाशित हो रही हैं। सूचकांक का विश्लेषण हो रहा है कि अमुक देश इस सूचकांक में इतना ऊपर कैसे? अमुक देश इतना नीचे कैसे? वगैरा। 

इन्हीं विश्लेषणों में से एक अभी सोमवार, तीन अप्रैल को प्रकाशित हुआ। देश के एक बड़े अखबार में। इसमें फिनलैंड के निवासियों के हवाले से यह बताया गया है कि वे लोग आखिर खुशहाल कैसे रह पाते हैं। इस बारे में यहीं बताना जरूरी है कि महज 55-60 लाख की आबादी वाला देश फिनलैंड लगातार छह साल से ‘हैप्पीनेस इन्डेक्स’ में पहले पायदान पर बना हुआ है। इस बार भी अव्वल रहा है। और यहाँ के लोगों की मानें तो उनकी खुशहाली का सबसे बड़ा मूल मंत्र ये है कि उन्हें ‘पर्याप्तता’ का अच्छी तरह भान है, ज्ञान है। ‘पर्याप्तता’ मतलब अंग्रेजी ज़बान में ‘सफीशिएंसी’। यानी इन लोगों को पता है कि इनके लिए कब, कितना और क्या पर्याप्त है। 

इसे यूँ समझा जा सकता है कि मान लीजिए, एक परिवार का भरण-पोषण महीने में 50,000 रुपए की कमाई से अच्छी तरह हो जाता है। तो फिनलैंड के लोग फिर इससे आगे और ज्यादा कमाई करने के लिए हाथ-पैर नहीं मारेंगे। इसी तरह, एक गाड़ी से काम चल जाता है, तो घर के सामने दो-चार गाड़ियाँ या गाड़ियों का काफ़िला खड़ा करने की कोशिश नहीं करेंगे। यही नियम अन्य सभी मामलों में वे लागू कर लेते हैं, ऐसा उनका दावा है। तो फिर इससे होता क्या है? होता ये है कि उनके पास पर्याप्त मात्रा में समय भी बचता है। उस समय को वे अपने शौक पूरा करने में खर्च करते हैं। संगीत सुनते हैं। पढ़ते-लिखते हैं। खेलते-कूदते हैं। घूमते-फिरते हैं। दोस्तों और परिवार वालों के साथ वक्त बिताते हैं। आराम करते हैं। प्रकृति का सान्निध्य पाते हैं। और इस सब के नतीजे में खुश रहते हैं। 

यहाँ एक बात और गौर करने लायक है कि फिनलैंड की सरकार ने संगीत को स्कूली पाठ्यक्रम का अनिवार्य हिस्सा बनाया हुआ है, ऐसा भी बताया जाता है। कारण कि वहाँ आम आदमी से लेकर सरकार तक, सभी मानते हैं कि खुश रहने का सबसे सशक्त जरिया संगीत है। दूसरी बात- अपने शौक को पेशा बनाने से भी व्यक्ति बहुत खुश रहता है। इस तथ्य से भी वहाँ के लोग और सरकार अच्छी तरह वाकिफ हैं। इसीलिए वहाँ सरकार की तरफ से लोगों को सिर्फ प्रोत्साहन ही नहीं बल्कि बाकी सभी तरह की मदद की जाती है कि लोग अपने शौक को ही बतौर करियर आगे ले जा सकें। उसे अपना पेश बनाएँ। उससे ‘पर्याप्त’ आमदनी पा सकें। और खुश रह सकें। 

और देखिए, फिनलैंड के लोग खुश हैं। दुनिया में सबसे ज्यादा खुश। कम से कम ‘वर्ल्ड हैप्पीनेस इन्डेक्स’ से तो यही साबित होता है। सो, ये छोटे-छोटे नुस्खे हैं। इन्हें आजमाकर कोई भी खुश रह सकता हेै। कोई भी देश खुशहाल हाे सकता है। अपनी खुशहाल जिन्दगी की उम्र बढ़ा सकता है।

सोशल मीडिया पर शेयर करें
Neelesh Dwivedi

Share
Published by
Neelesh Dwivedi

Recent Posts

भगवान के दर्शन भी ‘वीआईपी’ बनकर, तनकर करेंगे, तो सज़ा के रूप में ज़ेब कटेगी ही!

एक और साल ख़त्म होने को है। बस, कुछ घंटे बचे हैं 2024 की विदाई… Read More

18 hours ago

ध्याान रखिए, करियर और बच्चों के भविष्य का विकल्प है, माता-पिता का नहीं!

अपने करियर के साथ-साथ माता-पिता के प्रति ज़िम्मेदारियों को निभाना मुश्क़िल काम है, है न?… Read More

2 days ago

हमारे राष्ट्रगान में जिस ‘अधिनायक’ का ज़िक्र है, क्या वह ‘भारत की नियति’ ही है?

भारत के राष्ट्रगान ‘जन गण मन...’ से जुड़ी अहम तारीख़ है, 27 दिसम्बर। सन् 1911… Read More

5 days ago

‘मायावी अम्बा और शैतान’ : किसी लड़ाई का फैसला एक पल में नहीं होता

वह रोध था, दुख के कारण आधा पगलाया हुआ सा। अभी जो भी उसके पास… Read More

6 days ago

भारत के लोग बैठकों में समय पर नहीं आते, ये ‘आम धारणा’ सही है या ग़लत?

भारत के लोग आधिकारिक बैठकों में समय पर नहीं आते, यह एक ‘आम धारणा’ है।… Read More

7 days ago

जंगल कम, पेड़ ज्यादा हो गए… मतलब? जंगली जानवरों के घर में इंसान ने घुसपैठ कर ली!

अभी बीते शनिवार, 21 दिसम्बर को केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने एक रिपोर्ट जारी की। ‘भारत… Read More

1 week ago