Sanskrit Grammer

संस्कृत की संस्कृति : “संस्कृत व्याकरण मानव मस्तिष्क की प्रतिभा का आश्चर्यतम नमूना!”

अनुज राज पाठक, दिल्ली

तो भगवान पाणिनि का बनाया हुआ ‘व्याकरण’ आधार के रूप में स्थापित होता चला गया। इसका कारण मात्र यह नहीं था कि व्याकरण के नियमों में अब कोई और सम्भव नहीं था। अपितु ऐसा लगता है कि आचार्य पाणिनि ने व्याकरण ग्रन्थ में सभी नियमों की व्यवस्था करने से पहले पूरे भारतवर्ष का अध्ययन किया था। 

पाणिनि ने अपने व्याकरण नियमों के निर्माण से पूर्व शास्त्र और लोक अर्थात् समाजों की भाषाओं का विषद् और गहन अध्ययन किया। पाणिनि केवल शब्दशास्त्र के जानकर नहीं थे, उन्होंने अपने ग्रन्थ में भूगोल, इतिहास, लोक-व्यवहार के साथ- साथ समस्त वैदिक वांग्मय पर भी दृष्टि डाली है। 

उनके व्याख्याकार आचार्य पतंजलि अपने ‘महाभाष्य’ में आचार्य पाणिनि बारे में कहते हैं , “प्रामाणिक आचार्य ने एकाग्रचित्त होकर बहुत प्रयत्न से सूत्रों का प्रणयन किया है। उन सूत्रों में पारस्परिक सम्बन्ध रूपी सामर्थ्य से मेरे इस (अष्टाध्यायी) शास्त्र में कुछ भी अनर्थक नहीं है।”

कल्पना कीजिए, सदियों तक जिसके बारे में यह कहा जाए कि उसने अपनी पुस्तक में वाक्य और पंक्तियाँ तो छोड़िए, एक शब्द, एक अक्षर भी अनर्थक नहीं लिखा वह कितना अद्भुत और महत्त्वपूर्ण करने वाला रहा होगा।

आधुनिक विद्वान् भी ऐसा कहते पाए जाते हैं। मोनियर विलियम्स लिखते हैं, “संस्कृत व्याकरण उस मानव मस्तिष्क की प्रतिभा का आश्चर्यतम नमूना है, जिसे किसी देश में अब तक सामने नहीं रखा है।” 
—— 
(नोट : अनुज दिल्ली में संस्कृत शिक्षक हैं। #अपनीडिजिटलडायरी के संस्थापकों में शामिल हैं। अच्छा लिखते हैं। इससे पहले डायरी पर ही ‘भारतीय दर्शन’ और ‘मृच्छकटिकम्’ जैसी श्रृंखलाओं के जरिए अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं। समय-समय पर दूसरे विषयों पर समृद्ध लेख लिखते रहते हैं।) 
——-
इस श्रृंखला की पिछली कड़ियाँ 

9. ‘संस्कृत की संस्कृति’ : आज की संस्कृत पाणिनि तक कैसे पहुँची?
8- ‘संस्कृत की संस्कृति’ : भाषा और व्याकरण का स्रोत क्या है?
7- ‘संस्कृत की संस्कृति’ : मिलते-जुलते शब्दों का अर्थ महज उच्चारण भेद से कैसे बदलता है!
6- ‘संस्कृत की संस्कृति’ : ‘अच्छा पाठक’ और ‘अधम पाठक’ किसे कहा गया है और क्यों?
5- संस्कृत की संस्कृति : वर्ण यानी अक्षर आखिर पैदा कैसे होते हैं, कभी सोचा है? ज़वाब पढ़िए!
4- दूषित वाणी वक्ता का विनाश कर देती है….., समझिए कैसे!
3- ‘शिक्षा’ वेदांग की नाक होती है, और नाक न हो तो?
2- संस्कृत एक तकनीक है, एक पद्धति है, एक प्रक्रिया है…!
1. श्रावणी पूर्णिमा को ही ‘विश्व संस्कृत दिवस’ क्यों?

सोशल मीडिया पर शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *