Shree Ram

‘संस्कृत की संस्कृति’ : बच्चे का नाम कैसा हो- सुन्दर और सार्थक या नया और निरर्थक?

अनुज राज पाठक, दिल्ली

हमने पिछली बार यादृच्छिक शब्दों के प्रयोग पर और धातु से उत्पन्न शब्दों के बारे में चर्चा की थी। यादृच्छिक शब्दों के प्रयोग से एक प्रसंग याद आया है। आज उस पर भी लगे हाथों चर्चा कर ही लेते हैं।

आजकल माता- पिता के नामों से कुछ- कुछ शब्दांश लेकर बच्चों का नाम रखने का चलन चला है। जैसे- नेहा और अंशुल मिलाकर ‘नेहुल’। अनूप और रीता के बच्चे का नाम ‘अनुरित’। बहुत से लोगों को यह चलन ठीक नहीं लगता। मेरे एक मित्र तो इस चलन पर व्यंग्य करते हुए पूछते हैं, “मान लो माता-पिता का नाम लता और चिन्मय है, तो उनके नामों के कुछ अक्षरों को जोड़ कर बच्चे का क्या नाम रख सकते हैं?”  फिर खुद ही वह विकल्प सुझाते हैं, “चिल, चील, मय, चिता, चिंता, आदि।” अब कल्पना कीजिए आप के पड़ोस में आपके परिचितों में ऐसे ही यादृच्छिक नामों और शब्दों के निर्माण से भाषा में कैसी विसंगतियाँ उत्पन्न होने लगेंगी। बच्चा बड़ा होकर अपने नाम के अर्थ को बस गूगल की सहायता से ढूँढ लेगा, जो अर्थ भी ऐसे ही अनर्थक नामधारी ने लिख दिया होगा।

जबकि इससे पहले जब नामकरण होता था, तो सोच-विचार चलता था। सार्थक नामों की चर्चा होती थी। उसके बाद बच्चे का नाम रखते थे। उदाहरण के लिए भगवान राम का जब नामकरण हुआ तो नामकरण की तय प्रक्रिया अपनाई गई। नाम के अर्थ पर विचार किया गया। ऋषियों ने वह अर्थ सभी को बताया भी कि ‘राम’ अर्थात्, “रमन्ते योगिनोऽस्मिन्निति रामः”। अर्थात् जिस में योगी जन रमण करते हैं, वह ‘राम’ है। जिसमें रम कर सब आनन्दित हो जाते हैं, वह राम हैं। इसलिए लिए राम नाम आज भी अपनी सार्थकता से जगत को राममय करता है। 

और आज, इस सन्दर्भ, प्रसंग के उल्लेख का कारण ये बताना है कि भाषा हमें अपने शब्द बाहुल्य से बहुत स्वतंत्रता देती है। हम नित्य-नवीन शब्दों का निर्माण भी कर सकते हैं। लेकिन वे नाम या शब्द सार्थक होने चाहिए। जैसे- ‘राम’ नाम। इस बाबत संस्कृत भाषा के शब्दों को ही देखें तो वहाँ उनकी कोई कमी नहीं है। संस्कृत में धातुएँ अपना अर्थ लिए रहती हैं। हाँ, हम उनका उपयोग करने की सामर्थ्य न रखते हों, यह अलग बात है। 

वैसे, संस्कृत वांग्मय में यादृच्छा शब्दों के प्रयोग को निकृष्ट माना गया है। संस्कृत अपनी विपुल शब्द राशि से यदृच्छा की स्वतंत्रता देती हुई प्रतीत नहीं होती। इसलिए जब भी शब्द न मिलें, संस्कृत भाषा की तरफ उन्मुख होइए। इससे आप ‘चिन्ता’ में नहीं पड़ेंगे कि बच्चे के लिए सार्थक शब्द कहाँ से लाएँ? अपने बच्चे का सुन्दर सा नाम कैसे रखें? 
—— 
(नोट : अनुज दिल्ली में संस्कृत शिक्षक हैं। #अपनीडिजिटलडायरी के संस्थापकों में शामिल हैं। अच्छा लिखते हैं। इससे पहले डायरी पर ही ‘भारतीय दर्शन’ और ‘मृच्छकटिकम्’ जैसी श्रृंखलाओं के जरिए अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं। समय-समय पर दूसरे विषयों पर समृद्ध लेख लिखते रहते हैं।)

(अनुज से संस्कृत सीखने के लिए भी उनके नंबर +91 92504 63713 पर संपर्क किया जा सकता है)
——-
इस श्रृंखला की पिछली 10 कड़ियाँ 

15 – ‘संस्कृत की संस्कृति’ : शब्द नित्य है, ऐसा सिद्धान्त मान्य कैसे हुआ?
14 – ‘संस्कृत की संस्कृति’ : पंडित जी पूजा कराते वक़्त ‘यजामि’ या ‘यजते’ कहें, तो क्या मतलब?
13 – ‘संस्कृत की संस्कृति’ : संस्कृत व्याकरण की धुरी किसे माना जाता है? 
12- ‘संस्कृत की संस्कृति’ : ‘पाणिनि व्याकरण’ के बारे में विदेशी विशेषज्ञों ने क्या कहा, पढ़िएगा!
11- संस्कृत की संस्कृति : पतंजलि ने क्यों कहा कि पाणिनि का शास्त्र महान् और सुविचारित है
10-  संस्कृत की संस्कृति : “संस्कृत व्याकरण मानव मस्तिष्क की प्रतिभा का आश्चर्यतम नमूना!”
9- ‘संस्कृत की संस्कृति’ : आज की संस्कृत पाणिनि तक कैसे पहुँची?
8- ‘संस्कृत की संस्कृति’ : भाषा और व्याकरण का स्रोत क्या है?
7- ‘संस्कृत की संस्कृति’ : मिलते-जुलते शब्दों का अर्थ महज उच्चारण भेद से कैसे बदलता है!
6- ‘संस्कृत की संस्कृति’ : ‘अच्छा पाठक’ और ‘अधम पाठक’ किसे कहा गया है और क्यों?

सोशल मीडिया पर शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *