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अपने बच्चों को बचा लीजिए, 10 साल में उनकी आत्महत्याएँ दोगुनी हो गई हैं!

टीम डायरी

ये बेहद भयावह आँकड़े हैं। हर माता-पिता को इन आँकड़ों पर चिन्ता होनी चाहिए। इनसे डरना चाहिए। कोशिश करनी चाहिए कि इन आँकड़ों में आज, कल या आगे कभी भी हमारे बच्चे शामिल न हों। हाँ, कोशिश ही करनी पड़ेगी। सिर्फ़ यह मानकर बैठ जाने से हालात नहीं सुधरेंगे कि हमारे बच्चों के साथ कुछ नहीं होगा। क्योंकि आँकड़ों से उभरी तस्वीर के पीछे अभिभावकों की अपेक्षाओं का बढ़ता बोझ भी कहीं-न-कहीं दोषी है। 

आईसी3 (इन्टरनेशनल करियर एंड कॉलेज काउंसिलिंग) के वार्षिक सम्मलन में अभी एक रोज पहले ही रिपोर्ट जारी की गई है। इसमें राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के हवाले से बताया गया है कि 10 साल के भीतर देश में छात्र-छात्राओं की आत्महत्याओं के मामले दोगुने हो चुके हैं। बीते दशक में देश में सब तरह की आत्महत्याओं के मामलों में 2 प्रतिशत की सालाना बढ़त हुई। जबकि छात्र-छात्राओं की आत्महत्या के मामले 4 फ़ीसदी बढ़े हैं। संख्या के हिसाब से 10 साल पहले 6,654 छात्र-छात्राएँ हर साल आत्महत्या करते थे। अब 13,044 बच्चे जान दे रहे हैं। 

इस रिपोर्ट की मानें तो महाराष्ट्र (1,764), तमिलनाडु (1,416), मध्य प्रदेश (1,340), उत्तर प्रदेश (1,060) और झारखंड (824) में सबसे ज़्यादा छात्र-छात्राएँ आत्महत्या करते हैं। उनकी कुल आत्महत्याओं का 49 फ़ीसद इन 5 राज्यों के खाते में गया है। जबकि राजस्थान (571) इस मामले में 10वें पायदान पर है, जहाँ कोचिंग संस्थानों के मुख्य केन्द्र कोटा शहर से अक्सर ही छात्र-छात्राओं की आत्महत्याओं के मामले सुर्ख़ियों में आते हैं। हालाँकि ध्यान देने की बात है कि यह रिपोर्ट 2012 से 2022 तक की है। और कोटा से ऐसे मामलों की चर्चा बीते 1-2 साल में अधिक रही है। 

रिपोर्ट में एक और आँकड़ा है, जिस पर गौर करना चाहिए। ये कि इसी दशक के दौरान देश में 0 से 24 साल तक के बच्चों/किशोरों/युवाओं की आबादी में घटत दर्ज़ की गई है। इसके मुताबिक, इससे पूर्व के दशक में इस वर्ग की आबादी 58 करोड़ 20 लाख थी। वह इस दशक में घटकर 58 करोड़ 10 लाख के आस-पास हो चुकी है।

इसीलिए हम सब पर सवाल उठना अब लाज़िम है कि हम अपने बच्चों से आख़िर चाहते क्या हैं? उन्हें हम उनकी ख़ुशी से ज़िन्दगी जी लेने की गुंज़ाइश क्यों नहीं दे रहे हैं? उन पर हमने डॉक्टर, इंजीनियर जैसे पेशे ही अपनाने का दबाव क्यों बना रखा है? विदेश में जाकर, रहकर मोटी कमाई घर लाने की उनसे उम्मीदें क्यों लगाई हुई हैं? क्या वे हमारे लिए नोट छापने की मशीनें हैं? या हमारे अधूरे सपनों को पूरे करने की ज़िम्मेदारी ढोने वाले जानवर हैं वे? 

सोचिए इस पर!! 

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