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देखिए वीडियो और बताइए, यह रेलवे को पटरी से उतारने की साज़िश नहीं तो क्या है?

टीम डायरी

नीचे दिया गया वीडियो देखिए। एक लड़का स्टेशन पर खड़ी नई-नवेली (केसरिया रंग वाली ट्रेनें अभी नई ही हैं) वन्देभारत ट्रेन की खिड़की का काँच हथौड़ी से बेख़ौफ़ होकर तोड़ रहा है। इतना ही नहीं, उसका कोई साथी ही होगा, जो इसका वीडियो भी बना रहा है, जिसे सोशल मीडिया पर डालने की हिमाक़त भी कर ली गई। और देखिए, यह ट्रेन भी कोई ऐसी-वैसी नहीं है। वन्देभारत है, जिसे रेलवे के स्टाफ के लोग ‘प्रधानमंत्री की ट्रेन’ कहते हैं। क्योंकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ख़ुद वन्देभारत ट्रेनों में रुचि लेते हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय इनकी निगरानी करता है।   

यह वीडियो देखने के बाद सोचिए और बताइए कि क्या भारतीय रेल को पटरी से उताने की किसी गम्भीर साज़िश का हिस्सा नहीं हैं, ऐसी हरक़तें? वर्ना उपद्रवी तत्त्वों के हौसले इतने कैसे बढ़ सकते हैं कि वे दिन की रोशनी में स्टेशन पर खुलेआम ऐसी हरक़त करें? जबकि ऐसी जगहों पर लोगों की पर्याप्त आवज़ाही होती है। रेल सुरक्षा बल (आरपीएफ), शासकीय रेल पुलिस बल (जीआरपी) के जवान रहते हैं। रेलवे के अधिकारी/कर्मचारी भी होते हैं। 

हालाँकि, इस वीडियो के ज़वाब में सोशल मीडिया पर एक दूसरा वीडियो भी है। किसी के ट्रेन के भीतर का, जिसमें इसी तरह हथौड़ी से तोड़कर कुछ लोग शीशा बदलने की कार्रवाई कर रहे हैं। इस वीडियो को साझा करने वालों का दावा है कि वन्देभारत का शीशा अस्ल में बदलने के लिए तोड़ा गया है। ठीक है। मान लिया कि नीचे वाला वीडियो शीशा बदलने का ही है, पर ऐसे साफ-सुथरे से दिखने वाले शीशे को इस तरह वीडियो बनाकर बदला ही क्यों जा रहा है? 

अलबत्ता, शरारती तत्त्वों की शरारतें तो अस्ल ही हैं न। उनसे किसी का इंकार है क्या? उनके वीडियो भी सोशल मीडिया पर फैलते है, तब उनकी हरक़तें ध्यान में आती हैं? लेकिन कार्रवाई के नाम पर ख़ास कुछ नहीं होता? क्या कारण है? व्यवस्था में झोल कहाँ हैं? कौन ऐसी हरक़तों को हवा देता है? ऐसी घटनाओं की मुक़म्मल जाँच क्यों नहीं हुई? साज़िश करने वालों को बेनक़ाब क्यों नहीं किया गया? उन पर सख़्त कार्रवाई क्यों नहीं हुई? क्या मज़बूरी है? 

ग़ौर कीजिए और ध्यान रखिए, यह वीडियो या ऐसी घटना कोई इक़लौती नहीं है। अभी नौ सितम्बर की बात है। कानपुर के पास कालिन्दी (भिवानी-प्रयागराज) एक्सप्रेस रेलपटरी पर रखे एक सिलेंडर से टकरा गई। वह तो ट्रेन चलाने वालों की समझदारी थी, कोई बड़ा हादसा नहीं। वर्ना हादसे का इंतिज़ाम पूरे थे। क्योंकि ट्रेन में सवार रेलवे के लोगों ने जब उतरकर देखा तो पटरी पर सिलेंडर ही नहीं, माचिस और पेट्रोल से भरी केन भी रखी मिलीं थीं। 

इसके ठीक अगले दिन अजमेर में एक मालगाड़ी रेलपटरी पर रखे सीमेंट ब्लॉक से टकरा गई। वहाँ भी ड्राइवरों की सूझ-बूझ से हादसा होने से बच गया। जबकि तुरन्त की जाँच से पता चला कि सीमेंट ब्लॉक लगभग 70 किलोग्राम वज़नी था। ऐसे में, सहज सोचने वाली बात है कि इतना भारी पत्थर कोई बच्चा, या अकेला युवक भी, उठाकर नहीं ला सकता। ज़रूर यह हरक़त करने वाले एक से अधिक संख्या में रहे होंगे। ऐसी घटनाओं की सूची लम्बी है।

एक जानकारी के मुताबिक, जून-2023 से लेकर अब तक बीते 15 महीनों में ऐसी 22 से अधिक हरक़ते हुईं हैं। इनमें वन्देभारत ट्रेनों पर पथराव तो आम हरक़त हो गई है। जबकि रेलपटरी पर रखी गईं अवांछित वस्तुओं के कारण कई ट्रेने पटरी से उतर भी चुकी हैं। इससे होने वाले कुछ हादसों में लोगों की जान भी गई हैं। इसके बावज़ूद अब तक देशव्यापी संगठित जाँच शुरू नहीं हुई, आख़िर क्यों? आख़िर कौन हैं ये लोग जो ऐसी हरक़तों को अंज़ाम दे रहे हैं? इनके पीछे कौन हैं? इनका मक़सद क्या है? इन सवालों का ज़वाब कैसे मिलेगा, अगर व्यापक जाँच की कार्रवाई नहीं होगी तो? आम आदमी से लेकर सरकारों तक सबको सोचना चाहिए इस बारे में।  

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