टीम डायरी
दुनिया की सबसे बड़ी खेल प्रतियोगिता ‘ओलिम्पिक’ चल रही है। फ्रांस की राजधानी पेरिस में 24 जुलाई से शुरू हुए ओलिम्पिक खेलों का 11 अगस्त, रविवार काे आख़िरी दिन है। इस दौरान तरह-तरह की तस्वीरें आईं। जीतने की, हारने की, सपने टूटने की, रिकॉर्ड बनने की, इतिहास बदलने की। लेकिन इन्हीं सबके बीच एक तस्वीर ऐसी आई, जो रिकॉर्ड के बनने या इतिहास के बदलने की नहीं, बल्कि इतिहास के ठहर जाने की थी।
देखिए यह वीडियो। कुछ-कुछ माज़रा समझ आ जाएगा।
दरअस्ल, यह वीडियो 1992 में हुए बार्सिलोना ओलिम्पिक का है, 400 मीटर की दौड़ प्रतिस्पर्धा का। तब इस प्रतिस्पर्धा के पदक किन्हीं दूसरे खिलाड़ियों को मिले थे। खिलाड़ियों ने रिकॉर्ड बनाए और तोड़े। लेकिन समय के साथ-साथ सब भुला दिए गए। याद रखा गया तो बस, उस 400 मीटर की दौड़ में हिस्सा लेने वाले ब्रिटेन के धावक डेरेक एंथनी रेडमंड को, जो पदक जीतना तो दूर सेमीफाइनल के दौरान अन्तिम बिन्दु तक भी नहीं पहुँचे थे।
अस्ल में हुआ यूँ था कि इससे चार साल पहले 1988 में सियोल ओलिम्पिक के दौरान डेरेक को चोट के कारण 400 मीटर की ही दौड़ से अपना नाम वापस लेना पड़ा था। तब उन्होंने अपने पिता से वादा किया कि वे चार साल बाद यानि 1992 के ओलिम्पिक में पूरी ताक़त से वापसी करेंगे और इस तरह दौड़ पूरी करेंगे कि सालों-साल तक उन्हें याद रखा जाएगा। उन्हें ख़ुद के सामने भी अपने आप को साबित करना था, जो उन्होंने किया भी।
डेरेक ने रिकॉर्ड समय में 400 मीटर की दौड़ पूरी कर सेमीफाइनल में जगह बना ली थी। इसके बाद सेमीफाइनल में भी उन्होंने तेज रफ़्तार के साथ शुरुआत की। क़रीब 250 मीटर तक वे अन्य प्रतिस्पर्धियों के लिए मज़बूत चुनौती बने हुए थे। मगर तभी उनकी दाहिनी जाँघ की नसों में खिंचाव आ गया। वे लड़खड़ाकर गिर गए। स्टेडियम में मौज़ूद उनके प्रशंसक, समर्थक सन्न रह गए। अन्य सभी खिलाड़ी बची हुई दौड़ पूरी कर चुके थे।
नतीज़ा सबके सामने स्पष्ट था। लेकिन यह कोई नहीं जानता था कि यह अन्तिम नतीज़ा नहीं था। चन्द मिनटों बाद ही लोगों ने देखा कि डेरेक अपनी तक़लीफ़ को नज़रंदाज़ कर लँगड़ाते हुए फिर दौड़ने लगे हैं। वे जानते थे कि अब उनके दौड़ने से वे जीत नहीं सकते। लेकिन उन्हें ख़ुद के सामने अपने आप को साबित करना था। पिता से किया वादा पूरा करना था। इसलिए वे एक पैर से लँगड़ाते हुए, रोते हुए भी लगातार दौड़ते रहे।
स्टेडियम में उस वक़्त डेरेक के पिता जिम भी बैठे हुए थे। बेटे को इस तरह संघर्ष करते देख उनसे भी रहा नहीं गया। वे तमाम नियम-क़ायदों को दरकिनार करते हुए बीच मैदान में आ गए। प्रतिस्पर्धा की निगरानी कर रहे लोगों ने उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने सबको डपटकर दूर कर दिया। बेटे के संघर्ष में कन्धे से कन्धा मिलाकर जिम भी उसके साथ हो लिए। पिता-पुत्र दोनों यूँ ही आगे बढ़ते हुए अन्तिम बिन्दु तक पहुँचे।
वहाँ तक पहुँचते ही डेरेक का धैर्य ज़वाब दे गया। वे पिता के कन्धे पर सिर रखकर फूट-फूटकर रोने लगे। लेकिन उन पिता-पुत्र में से अफ़सोस किसी के चेहरे पर नहीं था। डेरेक ने पिता से किया वादा पूरा कर दिया था। उन्हेांने इस तरह दौड़ पूरी कर ली थी, जिसे सालों-साल तक याद रखा जाने वाला था। उन्होंने खुद के सामने अपने आपको भी साबित कर दिया था। इसीलिए तो स्टेडियम में उस वक़्त मौज़ूद 65,000 दर्शक खड़े होकर डेरेक के लिए तालियाँ बजा रहे थे, न कि उस प्रतिस्पर्धा में जीतकर फाइनल में पहुँचने वाले खिलाड़ियों के लिए।
आज इतने सालों बाद शायद ही किसी को याद हो कि उस रोज़ 400 मीटर की दौड़ का सेमीफाइनल अमेरिका के स्टीव लुइस ने जीता था। अलबत्ता, डेरेक रेडमंड की यादें आज भी हर किसी के ज़ेहन में ताज़ा हैं। क्योंकि डेरेक ने जो किया, वैसे कारनामों पर इतिहास बनता या बदलता नहीं, ठहर जाया करता है। माँ-बाप जब बच्चों के संघर्ष में उनके साथ दौड़ते हैं तो उससे जो कुछ भी हासिल होता है, वहाँ इतिहास ठहर ही जाता है।
अभी इसी शुक्रवार, 13 दिसम्बर की बात है। केन्द्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी लोकसभा… Read More
देश में दो दिन के भीतर दो अनोख़े घटनाक्रम हुए। ऐसे, जो देशभर में पहले… Read More
सनातन धर्म के नाम पर आजकल अनगनित मनमुखी विचार प्रचलित और प्रचारित हो रहे हैं।… Read More
मध्य प्रदेश के इन्दौर शहर को इन दिनों भिखारीमुक्त करने के लिए अभियान चलाया जा… Read More
इस शीर्षक के दो हिस्सों को एक-दूसरे का पूरक समझिए। इन दोनों हिस्सों के 10-11… Read More
आकाश रक्तिम हो रहा था। स्तब्ध ग्रामीणों पर किसी दु:स्वप्न की तरह छाया हुआ था।… Read More