Pratapgarh

शिवाजी महाराज : खान का कटा हुआ सिर देखकर आऊसाहब का कलेजा ठंडा हुआ

बाबा साहब पुरन्दरे द्वारा लिखित और ‘महाराज’ शीर्षक से हिन्दी में प्रकाशित पुस्तक से

अफजल खान का सिर महाराज ने राजगढ़ को रवाना किया। फतह की खबरें आऊसाहब के पास पहुँच गई। खबरें खुशियों के रंग बिखेरतीं आऊसाहब के पास आ रही थीं। इस खुश-खबर से राजगढ़ मचल उठा। चिन्ता दूर भाग गई। खान का कटा हुआ सिर देखकर आऊसाहब का कलेजा ठंडा हुआ। लेकिन उस सिर का अपमान किसी ने भी नहीं किया। खान का धड़ प्रतापगढ़ के नीचे फैले पालकी के पठार में दफना दिया गया। सिर राजगढ़ की प्रमुख इमारत के दरवाजे के ऊपर ताक में बन्द कर दिया गया। यहाँ हमेशा दिया जलाने का प्रबन्ध किया गया। प्रतापगढ़ के नीचे शिवाजी महाराज ने जो पराक्रम किया था, उसका यह स्मृति-चिहन राजगढ़ के दरवाजे ने अपने माथे पर लगा रखा है।

फिर महाराज ने उसी दिन आदिलशाही पर धावा बोल दिया। शिरवल, सुपे और सासवड पर कब्जे के बाद दौलोजी ने राजापुर बन्दरगाह में खड़े तीन आदिलशाही जहाजों पर कब्जा पाने की कोशिश की। इनमें से दो जहाज भाग गए। एक को मराठों ने जीत लिया। नेताजी ने तड़के वाई पर झपट्‌टा मारा। उस पर कब्जा किया (दिनांक 11 नवम्बर, 1659)। उनके पीछे-पीछे खुद महाराज वाई में दाखिल हुए। दोनों ने तूफानी हमलों की बागडोर संभाली। नेताजी ने सीधे बीजापुर का रास्ता पकड़ा। वहीं, महाराज निकले कोल्हापुर की तरफ। बीच राह के सभी थाने महाराज ने जीत लिए। चन्दनगढ़, वन्दनगढ़, कराड़, कोल्हापुर से लेकर आखिर में पन्हालगढ़, खेलनागढ़ तक बढ़ने का मंसूबा था उनका।

सभी स्थानों पर सेना बहुत कम थी, असावधान थी। ज्यादातर सेना पहले ही अफजल खान के पास भेज दी गई थी। इसी का फायदा उठाना चाहते थे महाराज। इस झंझावात को विश्राम का नाम तक मालूम न था। अवसर भी नहीं था। उधर, नेताजी बीजापुर पर हमला करने वाले हैं, लोग एक-दूसरे को दबी जवान से कह रहे थे। और सच्चाई यह थी कि वह गडग, तिकोटे, हुकेरी, गोकाक, लक्ष्मेश्वर से होते हुए कोल्हापुर की तरफ दौड़ रहे थे। इधर, महाराज ने कोल्हापुर जीता (दिनांक 25 नवम्बर, 1659), तो साढ़े तीन सौ साल के बाद करवीरलक्ष्मी स्वतंत्र हुई थी। कृष्णा, वेणा, उर्मिला और कोयना के बीच का, दक्षिण महाराष्ट्र का प्रदेश आजाद हुआ। यादव, शिलाहारों के पराभव के बाद अब इन नदियों का जल मुक्त हो पाया। अब इन महाराष्ट्र माताओं के हिरदे में पुलक की लहर उठ रही थी।

वाई से कोल्हापुर तक के कई थाने, किले और मुल्क जीतकर महाराज ने पन्हालगढ़ पर हमला किया (दिनांक 26 नवम्बर, 1659)। मराठों का बड़ा ही जोरदार हमला था वह। पन्हालगढ़ में इस टक्कर का मुकाबला करने की तैयारी नहीं थी। किले के शाही किलेदार और सेना ने सपने में भी नहीं सोचा था कि यूँ हमला होगा। वह भी शिवाजीराजे का। गढ़ अपनी मस्ती में खोया हुआ था। इधर, नेताजी पालकर भी बीजापुर के आस-पास के आदिलशाही मुल्क की जमकर धुनाई करने के बाद महाराज की मुहिम में शामिल होने कोल्हापुर, पन्हाला की तरफ मुड़ गए थे। इस पूरी तैयारी के साथ किए गए मराठों के हमलों को पन्हाला सह न सका। सिर्फ दो दिनों के बाद ही आधी रात को पन्हाले पर कब्जा हो गया। मराठों का झंडा पन्हाला पर फहराने लगा। महाराज तब किले की तलहटी में थे। गढ़ जीतने की खुशखबर महाराज की तरफ रवाना हुई। मशालों के उजाले में महाराज गढ़ पर पहुँचे। 

उधर, राजापुर में दौलोजी के हमले से बचकर दो जहाज जब समुन्दर में भाग निकले, तब उन्हें अंग्रेज व्यापारियों पर शुबहा हुआ। उन्हें लगा कि हो न हो, इन्हीं अंग्रेजों ने उन आदिलशाही जहाजों को मराठों से बचने के लिए भाग जाने की सलाह दी है। सो, उन्होंने अंग्रेज व्यापारियों के दो आदमी और कुछ माल पकड़ लिया। इससे अंग्रेज हड़बड़ा गए। लिहाजा, अपने आदमी और माल छुड़ा लेने की गरज से शिवाजी महाराज के पास प्रार्थना-पत्र, आवेदन-पत्र तो भेजने ही चाहिए थे उन्हें। इसके लिए अंग्रेजों के प्रमुख अधिकारी हेनरी रिविंग्टन ने दौलोजी से बात चलाई।

वैसे, हेनरी की मुखियागिरी में टोपीवाले अंग्रेजों ने राजापुर में व्यापारी ठिकाने खोले हुए थे। वहीं, पश्चिम किनारे पर सूरत में ईस्ट इंडिया कंपनी का प्रमुख ठिकाना और कचहरी थी। ये अंग्रेज बहुत महत्वाकांक्षी थे। व्यापार की आड़ में राजनीतिक खेल खेलने और इस मुल्क पर अपनी प्रभुसत्ता कैसे स्थापित की जा सकेगी, इसकी रूपरेखा बनाने में इनके दिमाग व्यस्त रहते थे। लेकिन दौलोजी के दाँव में उलझने के बाद आखिरकार अंग्रेजों को  महाराज की शरण में आना पड़ा। राजापुर के अंग्रेजों ने शीघ्र ही महाराज से नम्रता का करार किया। भविष्य की राजनीति का ख्याल रखते हुए महाराज ने भी अंग्रेजों का माल और आदमी छोड़ देने का हुक्म किया।

दरअसल, शिवाजी की बड़ी इच्छा थी कि जंजीरा के जल दुर्ग पर गेरुआ झंडा फहराए। एक बार जंजीरा के लिए रघुनाथ बल्लाल के साथ सेना भेजी भी थी उन्होंने। लेकिन वह प्रयास असफल रहा। सो, अब उन्होंने अंग्रेजों की नौ-दलीय मदद से जंजीरा और दंडापुरी जीतने की सोची थी। मदद के लिए अंग्रेजों ने हामी भी भरी थी। एक दुश्मन की सहायता से महाराज दूसरे शत्रु को नेस्तनाबूद करना चाहते थे।
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(नोट : यह श्रृंखला #अपनीडिजिटलडायरी पर डायरी के विशिष्ट सरोकारों के तहत प्रकाशित की जा रही है। छत्रपति शिवाजी के जीवन पर ‘जाणता राजा’ जैसा मशहूर नाटक लिखने और निर्देशित करने वाले महाराष्ट्र के विख्यात नाटककार, इतिहासकार बाबा साहब पुरन्दरे ने एक किताब भी लिखी है। हिन्दी में ‘महाराज’ के नाम से प्रकाशित इस क़िताब में छत्रपति शिवाजी के जीवन-चरित्र को उकेरतीं छोटी-छोटी कहानियाँ हैं। ये कहानियाँ उसी पुस्तक से ली गईं हैं। इन्हें श्रृंखला के रूप में प्रकाशित करने का उद्देश्य सिर्फ़ इतना है कि पुरन्दरे जी ने जीवनभर शिवाजी महाराज के जीवन-चरित्र को सामने लाने का जो अथक प्रयास किया, उसकी कुछ जानकारी #अपनीडिजिटलडायरी के पाठकों तक भी पहुँचे। इस सामग्री पर #अपनीडिजिटलडायरी किसी तरह के कॉपीराइट का दावा नहीं करती। इससे सम्बन्धित सभी अधिकार बाबा साहब पुरन्दरे और उनके द्वारा प्राधिकृत लोगों के पास सुरक्षित हैं।) 
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शिवाजी ‘महाराज’ श्रृंखला की पिछली कड़ियाँ 
19- शिवाजी महाराज : लड़ाइयाँ ऐसे ही निष्ठावान् सरदारों, सिपाहियों के बलबूते पर जीती जाती हैं
18- शिवाजी महाराज : शिवाजी राजे ने जब अफजल खान के खून से होली खेली!
17- शिवाजी महाराज : शाही तख्त के सामने बीड़ा रखा था, दरबार चित्र की भाँति निस्तब्ध था
16- शिवाजी ‘महाराज’ : राजे को तलवार बहुत पसन्द आई, आगे इसी को उन्होंने नाम दिया ‘भवानी’
15- शिवाजी महाराज : कमजोर को कोई नहीं पूछता, सो उठो! शक्ति की उपासना करो
14- शिवाजी महाराज : बोलो “क्या चाहिए तुम्हें? तुम्हारा सुहाग या स्वराज्य?
13- शिवाजी ‘महाराज’ : “दगाबाज लोग दगा करने से पहले बहुत ज्यादा मुहब्बत जताते हैं”
12- शिवाजी ‘महाराज’ : सह्याद्रि के कन्धों पर बसे किले ललकार रहे थे, “उठो बगावत करो” और…
11- शिवाजी ‘महाराज’ : दुष्टों को सजा देने के लिए शिवाजी राजे अपनी सामर्थ्य बढ़ा रहे थे
10- शिवाजी ‘महाराज’ : आदिलशाही फौज ने पुणे को रौंद डाला था, पर अब भाग्य ने करवट ली थी
9- शिवाजी ‘महाराज’ : “करे खाने को मोहताज… कहे तुका, भगवन्! अब तो नींद से जागो”
8- शिवाजी ‘महाराज’ : शिवबा ने सूरज, सूरज ने शिवबा को देखा…पता नहीं कौन चकाचौंध हुआ
7- शिवाजी ‘महाराज’ : रात के अंधियारे में शिवाजी का जन्म…. क्रान्ति हमेशा अँधेरे से अंकुरित होती है
6- शिवाजी ‘महाराज’ : मन की सनक और सुल्तान ने जिजाऊ साहब का मायका उजाड़ डाला
5- शिवाजी ‘महाराज’ : …जब एक हाथी के कारण रिश्तों में कभी न पटने वाली दरार आ गई
4- शिवाजी ‘महाराज’ : मराठाओं को ख्याल भी नहीं था कि उनकी बगावत से सल्तनतें ढह जाएँगी
3- शिवाजी ‘महाराज’ : महज पखवाड़े भर की लड़ाई और मराठों का सूरमा राजा, पठाणों का मातहत हुआ
2- शिवाजी ‘महाराज’ : आक्रान्ताओं से पहले….. दुग्धधवल चाँदनी में नहाती थी महाराष्ट्र की राज्यश्री!
1- शिवाजी ‘महाराज’ : किहाँ किहाँ का प्रथम मधुर स्वर….

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